एक समय था जब देश को अंतरिक्ष से जुड़े परीक्षण और नए प्रयोग के लिए अमेरिका और रूस के आगे हाथ फैलाकर याचना करना पड़ता था, लेकिन अमेरिका कभी भी भारत को तवज्जो नहीं देता था। और संयोगवश कभी दे भी देता था तो तकनीकी साझा नहीं करता था कुलमिलाकर कहें तो रिमोट कंट्रोल अपने पास ही रखता था। इस मामले में रूस थोड़ा उदार था, लेकिन समय के प्रवाह में कभी-कभी वह भी बह जाता था। गौरतलब है कि जब एक बार रूस भारत को क्रायोजेनिक ईंधन तकनीकी देना चाहा तो अमेरिका ने अड़गा डाल दिया और अंततः भारत के हाथ कुछ नहीं आया शिवाय अफसोस और निराशा के, इस घटना से सबक लेकर भारत ने अपने दम पर स्पेस के क्षेत्र में खुद को स्थापित किया, नई मिसाइल तकनीक विकसित की और अपने समर्पित वैज्ञानिकों के बदौलत क्रायोजेनिक ईंधन तकनीक को भी विकसित किया।अमेरिका का भारत के प्रति यह पूर्वाग्रह अंततः भारत का स्वाभिमान जगाने का काम किया, जिसका सीधा लाभ भारत को हुआ। आज भारत मिसाइल विज्ञान के मामले में इतना विकसित हो गया है कि अब वो भारतीय-रसियन तकनीक से निर्मित मिसाइल ब्रम्होस बेचने के करीब आ गया है। दुनिया के हथियार मार्केट में भारत की यह धमक कई मायनों में खास है। आज विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में देश लगातार प्रगति कर रहा है। और आज स्पेश साइंस में भी आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण विगत दिनों भारतीय अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा सिंगल मिशन में एक साथ 20 सेटेलाइट को प्रक्षेपित करना। भारत के इस कदम से अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा की बादशाहत बहुत हद तक समाप्त हो गयी है। इस प्रक्षेपण से अमेरिका और रूस के बाद भारत अंतरिक्ष की दुनिया की महाशक्ति बन गया है।
इसमें सबसे खास बात है कि 20 में से 17 मिसाइल विदेशी है जिसमें 13 अमेरिका चार कनाडा, जर्मनी और इंडोनेशिया के और भारत के मात्र तीन ही हैं। इस प्रक्षेपित किए गए उपग्रह मे मुख्य उपग्रह काटरेसेट है जिसका वनज 727 किलोग्राम है। जिसका मुख्य कार्य अंतरिक्ष से पृथ्वी की निरानी करना है, यह उपग्रह सब-मिटर रिसाल्यूशन में तस्वीरें खींच सकता है। यह भारतीय वैज्ञनिकों द्वारा विकासित किया गया है। अमेरिकी उपग्रहों में गूगल कंपनी टेरा-बेला द्वारा बनाया गया पृथ्वी की तस्वीरें खींचने वाला उपग्रह भी शामिल है।
इसके पहले भारत ने विश्व की सबसे कम लगात वाले भारत के मंगल मिशन ‘मंगलयान’ को प्रक्षेपित कर दुनिया को चौंका दिया था, जो विकसित देशों के लिए एक उदाहरण साबित हुआ। लेकिन इसरो ने अपने पिछले ही रिकार्ड को ध्वस्त करते हुए पीएसएलवी(पोलर सेटेलाइट लांच व्हीकल) ने 20 उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के बाद नासा से भी सस्ते उपग्रह प्रक्षेपित करने वाली संस्था बन गया है। पीएसएलवी का यह लगातार 35वां सफल मिशन है। इससे पहले रूस सने सिंगल मिशन में 2014 में एक साथ 33 सेटेलाइट और अमेरिका ने 29 सेटेलाइट अंतरिक्ष में भेजे थे। अगर इसरो की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला जाए तो इसरो द्वारा अब तक लगभग 20 अलग-अलग देशों के 57 उपग्रहों को लांच कर चुका है। और इस उपलब्धि के बाद भारत की उपस्थिति अंतराष्ट्रीय उपग्रह बाजार में मजबूती के साथ दर्ज हुई है। 13 लाख करोड़ रुपए के इस बाजार में अकेले अमेरिका की हिस्सेदारी 41 प्रतिशत है तथा भारत की हिस्सेदारी मात्र चार प्रतिशत है, लेकिन इस क्षेत्र में भारत की लगातार उपलब्धियों के बाद बाजार में हिस्सेदारी बढ़ने के भी आसार है। इसरो सेटेलाइट लॉनचिंग से अब तक 660 करोड़ रुपये की कमाई कर चुका है।
अपनी स्थापना के बाद से अनेको परेशानियों से गुजरने वाला यह संगठन कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा, सीमित संसाधनों के बाद भी सफलता की बुलंदियों पर लगातार चढ़ता गया। विगत दो साल पहले मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इस संगठन की गतिविधियों में युगांतकारी परिवर्तन देखने को मिल रहा है। आज यह उपग्रह लांचिंग करने वाला दुनिया का सबसे सस्ता सगठन बनने की ओर है। अगर ऐसा होता है तो भारत नासा को पीछे छोड़कर अंतरिक्ष की दुनिया का बेताज बादशाह बन जाएगा।
(लेखक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी शोध अधिष्ठान में रिसर्च एसोसिएट हैं)