संदीप सिंह
जब राजग सरकार ने मई, 2014 में सत्ता संभाली थी, उस समय भारत में 30 करोड़ लोग बिजली के बिना जी रहे थे। यह बेहद अफसोस की बात थी कि आजादी के 67 वर्षो बाद भी चौबीस घंटे बिजली महज एक सपना ही था। देश अंधकार में डूबा था। राजग सरकार ने ऊर्जा क्षेत्र पर ध्यान दिया और प्रधानमंत्री के सपने को पूरा करने के लिए ऊर्जा क्षेत्र में गुणवत्ता हेतु सुधार के लिए दीर्घकालिक एवं समग्र नीति पर जोर दिया। भारत की ऊर्जा आपूर्ति के लिए कोयला मुख्य आधार है। इसलिए कोयले के आवंटन को सरल बनाने के लिए सभी कोयला उत्पादक राज्यों की 74 खदानों से राजस्व के 3.44 लाख करोड़ रुपये की प्राप्ति से जुड़ी एक अनुमानित प्रक्रिया भी तैयार की गई। पिछले दो वर्षो में कोयला उत्पादन में बड़ा उछाल देखा गया है। 2014-16 में 7.4 करोड़ टन कोयला उत्पादन हुआ है जो कि समूची 11वीं योजना के वृद्धि संबंधी उत्पाद के बराबर बैठता है। 2015-16 में कोल इंडिया के कुल उत्पादन में 8. 6 प्रतिशत वृद्धि हुई थी जो करीब तीन दशक में सबसे अधिक है। इसके साथ ही, कोयले के बढ़ते उत्पाद के कारण उसके आयात बिल में भी 28,000 करोड़ रुपये से भी अधिक की कमी हुई है। 2014 से बंद पड़े 11,717 मेगावाट क्षमता वाले संयंत्रों को परिवर्तित ई-निविदा के आधार पर री-गैसीफाइड लिक्किफाइड नेचुरल गैस (आरएलएनएफ) की प्राप्ति हुई। नतीजतन, गैस आधारित बिजली संयंत्रों से बिजली उत्पादन में मार्च 2016 में साल-दर-साल 44 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। मांग के अनुसार बिजली उत्पादन में भी वृद्धि हुई है। वर्ष 2008-09 की तुलना में बिजली में कमी की दर भी सबसे कम हुई है। यह दर 11.1 प्रतिशत से घटकर 2.1 प्रतिशत तक आ गई है। बिजली की कमी से अंधकार में डूबे 18,452 गांवों में 2019 तक बिजली पहुंचाने के लिए दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (डीडीयूजीजेवाई) की व्यापक शुरुआत की गई है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इस लक्ष्य प्राप्ति के लिए 1000 दिनों की सीमा रखी थी, हालांकि नियत समय में लक्ष्य पूरा हो पाना कठिन कार्य लगता है। इसके बावजूद, 2800 गांवों तक बिजली पहुंचाने के शुरुआती लक्ष्य की बजाए 7766 गांवों तक बिजली पहुंची।
(लेखन स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, यह पांचजन्य के २९ मई के अंक में प्रकाशित हुआ था)