पीएम मोदी का 5 देशों का दौरा कई मायनों मे महत्वपूर्ण है। निश्चित तौर पर अफगानिस्तान, कतर, स्विट्जरलैंड,अमेरिका एवं मेक्सिको का ये दौरा भारतीय विदेश नीति को मजबूत करने और भारत की वैश्विक स्वीकार्यता बढ़ाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने दौरे की शुरुआत रणनीतिक और आर्थिक लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हेरात शहर स्थित सलमा डैम के उद्घाटन से की। भारत द्वारा 1700 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित इस डैम को अफगान सरकार ने भारत- अफगानिस्तान मैत्री बांध का नाम दिया है।
यह डैम अफगानी जनता का 30 साल पुराना सपना था। उद्घाटन के अवसर पर दिये अपने सम्बोधन मे प्रधानमंत्री मोदी ने अफगानिस्तान को भविष्य मे भी उसके विकास और जरूरत के लिए हर संभव मदद का वायदा किया। इस अवसर पर अफगानी सदर अशरफ गनी ने प्रधानमंत्री मोदी को अफगानिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘अमीर अमानुल्ला सम्मान’ से नवाजा। प्रधानमंत्री का यह दूसरा अफगान दौरा था। इससे पहले उन्होने दिसम्बर में काबुल का दौरा किया था और भारत द्वारा नवनिर्मित अफगानी संसद भवन का उद्घाटन किया था।
अफगानिस्तान के एक दिवसीय दौरे के बाद प्रधानमंत्री का हवाई काफिला कतर की राजधानी दोहा पहुंचा। क़तर के प्रधानमंत्री अब्दुल्ला बिन नासेर बिन खलीफा अल थानी ने स्वयं हवाईअड्डे पहुंच कर प्रधानमंत्री की आगवानी की। उनका प्रधानमंत्री का आगवानी के लिए आना इस बात को दर्शाता है की कतर भारत को अपने नए और बड़े आर्थिक साझेदार के तौर पर देखना चाहता है। खाड़ी देशों मे चले सत्ता परिवर्तन की लहर और ISIS द्वारा तेल उत्पादक देशों पर कब्जे ने वैश्विक स्तर पर तेल के दाम को गिराने का काम किया, जिससे कतर सहित कई गल्फ देशों के निर्यात आधारित आय मे भारी कमी होने लगी। इसने तमाम खाड़ी देशों को आय के दूसरे साधन तलाशने पर मजबूर किया।
कतर सहित अन्य अमीर खाड़ी देश अपने पूंजी का निवेश दूसरे संभावना वाले देशों मे करने को इच्छुक हैं। कतर हमारा सबसे बड़ा तरल प्राकृतिक गैस निर्यातक देश है जिससे हम तकरीबन 65 फीसदी गैस आयात करते हैं। हालांकि, आयात जरूरत के हिसाब से बढ़ता- घटता रहता है। ऐसे मे उसे भारत के बड़े बाजार और तेल की मांग को देखते हुए हमारी बड़ी जरूरत है। हमे भी सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिहाज से कतर के समर्थन की सख्त जरूरत है।
कतर 47 देशों के गल्फ इस्लामिक मुल्कों के समूह का एक महत्वपूर्ण और अगुआ देश है। कतर का समर्थन हमें पाकिस्तान की गीदरभभकी की नकेल कसने में भी बड़ा मददगार कदम साबित होगा। हालांकि, कतर के पाक से अपने अलग रिश्ते हैं जिसका आधार धार्मिक विरासत है। प्रधानमंत्री मोदी ने वहां के अमीर व्यापारियों और प्रवासी भारतीयों को लुभाने की भरसक कोशिश की है। उन्होने भारतीय मजदूरों के साथ शाम का नाश्ता किया, इससे उन कामगारों मे भारी उत्साह का संचार देखने को मिला।
मोदी ने वहां के उद्योगपतियों के साथ एक उच्चस्तरीय बैठक भी की है जिसमें उन्होने निवेशकों से बदले माहौल मे निवेश का आमंत्रण दिया है। उनका आमंत्रण कितना रंग लाएगा यह तो आने वाला वक्त बताएगा, फिलहाल तो कतर ने भारत को हाथों हाथ लिया है। तकनीकी कौशल, स्वास्थय और पर्यटन सहित सात समझौतों पर दोनों देश समझौता को राजी हुए हैं।
प्रधानमंत्री का कतर दौरा शेख तमीम के पिछले वर्ष भारत दौरे के दौरान दिये गए निमंत्रण के परिप्रेक्ष्य मे हो रहा है। कतर और भारत दोनों को एक दूसरे की जरूरत है और दोनों मुल्क इस बात को बखूबी जानते हैं. कतर दौरे के बाद प्रधानमंत्री के द्विपक्षीय दौरे सबसे अहम पर्यटन और टैक्सचोरों के लिए सचमुच स्वर्ग स्विट्जरलैंड की राजधानी जिनेवा पहुंचें। वहां उनकी मुलाकात वहां के राष्ट्रपति जोहान स्नाइडर अमान से होनी है। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति जोहान से मिलकर भारतियों द्वारा जमा काला धन का मुद्दा उठाएंगे जो मोदी सरकार का महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा था जिसके आधार पर उन्हें आम चुनाव में भारी जनादेश मिला था।
प्रधानमंत्री की कोशिश है कि स्विस सरकार से पर्यटन के विकास को लेकर उनका अनुभव साझा करने सहित काला-धन, टैक्स सूचना आदान -प्रदान सहित अन्य मसौदों पर बात आगे बढ़े। गौरतलब है कि स्विस सरकार के आमदनी का मुख्य स्रोत पर्यटन और टैक्स चोरी से संबन्धित कर है।
इसके बाद प्रधानमंत्री का बहुप्रतिक्षित अमेरिका का दौरा होगा। शपथ ग्रहण के बाद से उनका यह चौथा परंतु पहला द्विपक्षीय अमेरिका दौरा होगा। यह दौरा अन्य दौरों से अलग है। इस बार प्रधानमंत्री अमेरिका के राजकीय अतिथि होंगे और 8 जून को अमेरिकी संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करेंगे। अमेरिकी संसद के अध्यक्ष पॉल द्वारा प्रधानमंत्री को आमंत्रित किया गया था।
प्रधानमंत्री का व्हाइट हाउस मे राष्ट्रपति ओबामा के साथ भोज का भी कार्यक्रम है। प्रधानमंत्री का अमेरिकी सदर से यह अंतिम आधिकारिक मुलाकात होगी। इस दौरे से भारत को बहुत उम्मीद करने कि जरूरत नहीं है, क्योंकि ओबामा का कार्यकाल नवंबर मे समाप्त हो रहा है ऐसे मे उनके लिए कोई बड़ा फैसला करना मुश्किल होगा। सिवाय NSG (परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह) मे भारत को शामिल करने संबन्धित समझौते के 4 वर्षीय कार्यकाल मे महज दो वर्ष का कार्यकाल ही कामकाज के लिहाज से महत्वपूर्ण होता है, बाकी के दो वर्ष अगले राष्ट्रपति के बारे मे सोचने मे बीत जाता है। फिर भी इस दौरे के अपने सांकेतिक महत्व हैं।
बीते 2 सालों मे भारत और अमेरिका ने अपने सम्बन्धों को काफी मजबूती प्रदान की है। हाल ही मे अमेरिकी रक्षा मंत्री एशन कार्टर के भारत दौरे पर थे, उनके दौरे के दौरान दोनों देश लोगीस्टिक एग्रीमेंट संधि पर सहमत हुए जिसके तहत भारत और अमेरिका एक दूसरे की जमीन का इस्तेमाल तेल भरने, सैनिकों के विश्राम, चिकित्सा सेवा सहित अन्य लाभ के लिए कर सकेंगे। भारत एक उभरती अर्थव्यवस्था और बड़ा बाजार है, जो अमेरिका को काफी लुभाता है। दोनों एक बड़े और पुराने लोकतांत्रिक देश हैं। इसलिए अमेरिका के लिए भारत आर्थिक और रणनीतिक लिहाज से काफी मुफीद है। अपनी यात्रा के अंत मे प्रधानमंत्री एक दिन के लिए लैटिन अमेरिकी देश मैक्सिको जाएंगे।
मोदी 30 साल बाद मे मैक्सिको जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री होंगे। यहां वो राष्ट्रपति पेना नीटो से मुलाकात करेंगे और सुस्त चल रहे सम्बन्धों को नयी दिशा देने की कोशिश करेंगे। मैक्सिको उस क्षेत्र मे हमारा अच्छा साझेदार हो सकता है। गौरतलब है कि ये लैटिन अमेरिकी देश हमेशा से उपेक्षित रहे हैं। यह देश देर से आजादी प्राप्त करने के बावजूद काफी तेज विकास करने मे सक्षम रहा है, ऐसे में मैक्सिको से द्विपक्षीय व्यापार को और बढ़ाने का अच्छा मौका है। इन दौरों का दक्षिण एशिया क्षेत्र में काफी प्रभाव पड़ेगा, खासकर पाकिस्तान के सेहत पर। वैसे भी, भारत का हर एक कदम पाकिस्तान के पेट में गुदगुदी पैदा करता है। यहां देखने वाली बात है कि भारत की अफगानिस्तान और ईरान से बढ़ते ताल्लुकात हमारे हमशाया मुल्क पाकिस्तान को जरा भी रास नहीं आ रहे हैं।
भारत द्वारा अफगानिस्तान और ईरान से बढ़ रहे आर्थिक और स्वाभाविक दोस्ती को पाकिस्तान खुद को दक्षिण एशिया में अलग-थलग करने की साजिश के तौर पर देखता है। पाकिस्तान को भारतीय प्रधानमंत्री का गल्फ देशों का दौरा भी काफी खटक रहा है। इससे पहले भी प्रधानमंत्री मोदी का यूएई, सऊदी अरब दौरा और वहाँ के सरकारों द्वारा भारत को हाथो-हाथ लिया जाना पाकिस्तानी मीडिया और अवाम को नागवार गुजरा था। और तो और सऊदी अरब द्वारा भारतीय प्रदधानमंत्री को सऊदी अरब के सबसे बड़े सम्मान से नवाजे जाने से पाकिस्तान का मोदी को लेकर पुराना घाव और गहरा हो गया। जो भी हो, इतना तो कहा ही जा सकता है कि भारतीय विदेश नीति के लिए ‘फील गुड’ जैसी स्थिति है। बकियों का पता नहीं. हमें अपने कदम फूंक-फूंक कर रखने होंगे तभी आएंगे भारत के अच्छे दिन।
(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के छात्र हैं)