केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने कल राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति को मंजूरी दे दी। इस कदम से भारत में बौद्धिक संपदा के लिए भावी रोडमैप तैयार करने में सहायता होगी। इस नीति से भारत में रचनात्मक और अभिनव ऊर्जा के भंडार को प्रोत्साहन मिलेगा तथा सबके बेहतर और उज्जवल भविष्य के लिए इस ऊर्जा का आदर्श इस्तेमाल संभव होगा।
राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति एक विजन दस्तावेज है, जिससे समस्त बौद्धिक संपदाओं के बीच सहयोग संभव बनाया जाएगा। इसके अलावा संबंधित नियम भी तैयार किये जाएंगे। इसके जरिए कार्यान्वयन, निगरानी और समीक्षा से संबंधित संस्थागत प्रणालियों को लामबंद करने के लिए सहायता होगी। नीति से सरकार, अनुसंधान एवं विकास संगठनों, शिक्षा संस्थानों, सूक्ष्म, लघु, मध्यम उपक्रमों, स्टार्ट अप और अन्य हितधारकों को शक्ति संपन्न किया जाएगा, ताकि वे अभिनव तथा रचनात्मक वातावरण का विकास कर सकें।
इस नीति के तहत इस बात पर बल दिया गया है कि भारत बौद्धिक संपदा संबंधी कानूनों को मानता है और बौद्धिक संपदा की सुरक्षा के लिए यहां प्रशासनिक तथा न्यायिक ढांचा मौजूद है। इसके तहत दोहा विकास एजेंडा और बौद्धिक संपदा संबंधी समझौते के प्रति भारत की प्रतिबद्धता प्रदर्शित होती है।
बौद्धिक संपदा अधिकारों का महत्व पूरे विश्व में बढ़ रहा है, इसलिए यह आवश्यक है कि भारत में इन अधिकारों के प्रति जागरूकता बढा़ई जाए। बौद्धिक संपदा अधिकारों के साथ वित्तीय और आर्थिक पक्ष भी जुड़े हुए हैं। इसके लिए घरेलू स्तर पर आईपी फाइलिंग और पेटेंट की वाणिज्यिक स्थिति के बारे में भी जानकारी आवश्यक है।
राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति के मुख्य बिन्दु इस प्रकार हैं –
विजन घोषणा – भारत में सबके लाभ के लिए बौद्धिक संपदा को रचनात्मक और अभिनव आधार मिलता है। भारत में बौद्धिक संपदा से विज्ञान, प्रौद्योगिकी, कला, संस्कृति, पारम्परिक ज्ञान और जैव विविधता संसाधनों को प्रोत्साहन मिलता है। भारत में विकास के लिए ज्ञान मुख्य कारक है।
मिशन घोषणा – भारत में शक्तिशाली, जीवंत और संतुलित बौद्धिक संपदा अधिकार प्रणाली से रचनात्मकता और नवाचार को सहायता मिलती है, उद्यमशीलता को प्रोत्साहन मिलता है तथा सामाजितक-आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा मिलता है। इसके जरिए स्वास्थ्य सुविधा, खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षा को बढ़ाने में मदद मिलती है। अन्य महत्वपूर्ण सामाजिक, आर्थिक और तकनीकी महत्व भी इससे जुड़े हुए हैं।
लक्ष्य – इस नीति के निम्नलिखित सात लक्ष्य हैं –
- बौद्धिक संपदा अधिकार जागरूकता : पहुंच और प्रोत्साहन – समाज के सभी वर्गो में बौद्धिक संपदा अधिकारों के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक लाभों के प्रति जागरूकता पैदा करना।
- बौद्धिक संपदा अधिकारों का सृजन- बौद्धिक संपदा अधिकारों के सृजन को बढ़ावा।
- वैधानिक एवं विधायी ढांचा – मजबूत और प्रभावशाली बौद्धिक संपदा अधिकार नियमों को अपनाना, ताकि अधिकृत व्यक्तियों तथा बृहद लोकहित के बीच संतुलन कायम हो सके।
- प्रशासन एवं प्रबंधन – सेवा आधारित बौद्धिक संपदा अधिकार प्रशासन को आधुनिक और मजबूत बनाना।
- बौद्धिक संपदा अधिकारों का व्यवसायीकरण – व्यवसायीकरण के जरिए बौद्धिक संपदा अधिकारों का मूल्य निर्धारण।
- प्रवर्तन एवं न्यायाधिकरण – बौद्धिक संपदा अधिकारों के उल्लंघनों का मुकाबला करने के लिए प्रवर्तन एवं न्यायिक प्रणालियों को मजबूत बनाना।
- मानव संसाधन विकास – मानव संसाधनों, संस्थानों की शिक्षण, प्रशिक्षण, अनुसंधान क्षमताओं को मजबूत बनाना तथा बौद्धिक संपदा अधिकारों में कौशल निर्माण करना।
इन लक्ष्यों को विस्तृत कार्य प्रणाली के जरिए हासिल किया जाएगा। विभिन्न मंत्रालयों/विभागों द्वारा की जाने वाली कार्रवाई की निगरानी डीआईपीपी करेगा। डीआईपीपी भारत में बौद्धिक संपदा अधिकारों के भावी विकास,कार्यान्वयन, दिशा-निेर्देश और समन्वय करने वाला नोडल विभाग होगा।
राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति ‘रचनात्मक भारत : अभिनव भारत’ के लिए काम करेगी।
स्त्रोत :http://pib.nic.in