शिवानन्द द्विवेदी
गांधी का एक सपना था कि अपना भारत स्वच्छ हो। गांधी इस सपने को एक आन्दोलन के नजरिये से देखते थे। उनका मानना था कि सफाई का कार्य जनांदोलन की तरह चलना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य कहेंगे कि गांधी के सपनों समझने में देश ने सत्तर साल लगा दिए। सत्तर साल की बात कहने का आशय यह है कि हमने सफाई को कभी जनांदोलन के नजरिये से देखा ही नही और इसे एक बेहद तुच्छ और छोटे काम के रूप में देखा। सफाई हमारे समाज की मानसिकता में छोटे लोगों का काम बनकर रही गयी। धीरे-धीरे यह मानसिकता बढती गयी और गांधी का सपना दम तोड़ता गया। वैसे तो गांधी सबके हैं और सबके लिए हैं, लेकिन यह भी दुर्भाग्य है कि कुछ लोग, जिनमे राजनीतिक दल भी आते हैं, गांधी को अपनी या किसी ख़ास की जागीर बनाने की भरसक कोशिश किये। वे गांधी के सपनों को तो हासिये पर डालते गये लेकिन गांधी पर अपना अधिकार जरुर जताते रहे। जो गांधी अपना बताते हैं वे गांधी के सपनों को कभी अपना नही बना पाए। गांधी के स्वच्छता अभियान को सत्तर साल बाद अगर एक जनान्दोलन के रूप में देश को बताने के लिए २०१४ तक इन्तजार करना पड़ा। १५ अगस्त-२०१४ को लालकिले की प्राचीर से जब प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने ‘स्वच्छता अभियान’ पर अपना भाषण दिया तो उस भाषण में उन लोगों की आवाज थी, जो हासिये पर थे। मोदी गांधी के उन लोगों की आवाज बनकर बोल रहे थे जिन्हें सफाई जैसे अहम् कार्य करने के बावजूद तुच्छ समझा जाता था। देश को पहली बार ऐसा महसूस हुआ कि सफाई का काम करना कोई तुच्छ काम नही है बल्कि यह देश सेवा के लिए एक समर्पण है। लालकिले के प्राचीर से प्रधानमंत्री वो बोल रहे थे जिसको सुनने की आदत इस देश के तथाकथित बड़े और बुद्धिजीवी कहे जाने वालों को कभी न थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि प्रधानमंत्री बड़े लोगों के लिए नही बल्कि देश की उस जनता की बात बोल रहे थे जो हासिये की जनता थी। कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों ने इसका मजाक भी बनाया लेकिन अपने समर्पण के प्रति अडिग प्रधानमंत्री मोदी ने उसकी परवाह किये बगैर इस अभियान को जारी रखा। गाँधी के सपनों को धरातल तक पहुंचाने का जो संकल्प प्रधानमंत्री मोदी ने लिया वो ऐतिहासिक है।
प्रधानमंत्री के संबोधन में देश के बेटियों की चिंता थी, लिहाजा उन्होंने शौचालय की बात की। उन्होंने कहा कि हर विद्यालय में शौचालय बनाया जाय। प्रधानमंत्री ने यह संकल्प लिया कि २०१९ में जब देश गांधी की १५०वी जयंती मना रहा होगा तो हम देश के हर विद्यालय को शौचालय दे पाने का लक्ष्य हासिल कर चुके होंगे और यही गांधी को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। आज यह काम अप्रत्याशित रूप से आगे बढ़ चुका है और लक्ष्य के करीब पहुँच रहा है। इसके लिए भारत सरकार ने राजनीतिक दलों, गैर सरकारी संगठनों, निगमों और सक्रिय लोगों की भागीदारी से स्वच्छ भारत अभियान को सन् 2019 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा है। स्वच्छ भारत अभियान को सही तरीके से लागू करने के लिए सरकार ने 19 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया है। समिति विभिन्न राज्यों में स्वच्छता और पानी की सुविधा देने के सबसे श्रेष्ठ और आधुनिक तरीकों पर सुझाव देगी। यह सुझाव सस्ते, टिकाउ और उपयोगी होंगे। 2 अक्टूबर 2014 को जब पीएम ने यह अभियान शुरु किया तब उन्हें उनके कैबिनेट मंत्रियों का भी भरपूर सहयोग मिला। इसे जनआंदोलन बनाने के लिए उन्होंने नौ लोगों को सफाई की चुनौती लेने के लिए नामांकित किया, जिनमें प्रियंका चोपड़ा, शशि थरुर, सचिन तेंदुलकर और अनिल अंबानी सहित तमाम नामचीन शामिल हैं। अपनी नवोन्मेषी प्रवृति के लिए विश्व ख्यातिलब्ध प्रधानमंत्री ने जिन लोगों को इस मुहीम में जोड़ा उन लोगों ने न सिर्फ नए लोगों को जोड़ा बल्कि स्वयं झाड़ू लेकर सफाई के लिए उतर गये। देश के इतिहास में पहली बार हुआ कि सफाई किसी ख़ास वर्ग का काम न होकर सबकी जिम्मेदारी जैसी दिखने लगी। खुद प्रधानमंत्री मोदी झाड़ू लेकर एकबार नही बल्कि अनेक बार सड़कों पर उतरे और सफाई को जनांदोलन बनाने में अहम् भूमिका का निर्वहन किया। इस काम के लिए यथोचित बजट भी तय किया गया जो कि राज्य-केंद्र के परस्पर संबधों एवं समझ के आधार पर आवंटित हुआ।
इस पूरे मुहीम में एकबात साफ़ पता चली कि गांधी को गाया तो बहुतों ने है लेकिन अपने नीतियों में अपनाया वर्तमान सरकार ने ही। गांधी के सपनों का भारत बनाने की दिशा में स्वच्छ भारत अभियान एक ऐतिहासिक अभियान बनकर उभरा है, जिसकी तारीफ़ भारत ही नही वरन दुनिया के देश भी कर रहे हैं। निश्चित तौर पर देश के सामने यह संदेश मजबूती से पहुंचा है कि गांधी का सपना ही मोदी का संकल्प है और वे इस संकल्प को पूरा अवश्य करेंगे।