ब्रिगेडियर (रि.) आरपी सिंह
23 मई, 2016 को चाबहार बंदरगाह के विकास को लेकर तेहरान में भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच हुआ ऐतिहासिक त्रिपक्षीय समझौता नई दिल्ली के लिए रणनीतिक रूप से बहुत बड़ी उपलब्धि है। चाबहार ईरान के सिस्तान और बलूचिस्तान इलाके में अरब सागर के मकरान तट पर स्थित है। पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह भी चाबहार के दक्षिण-पूर्व छोर से सिर्फ 72 नॉटिकल मील की दूरी पर स्थित है। दोनों हिन्द महासागर में सीधी पहुंच प्रदान करते हैं। एक तरफ भारत ईरान के चाबहार बंदरगाह के विकास में सीधी मदद कर रहा है, जबकि चीन 2002 से ही ग्वादर बंदरगाह के विकास में वित्तीय मदद कर रहा है। इससे यूरेशिया में एक नए तरह का कूटनीतिक खेल शुरू हो गया है। चीन और भारत, दोनों अफगानिस्तान और मध्य एशिया से नजदीकी संबंध बनाना चाहते हैं। ग्वादर बंदरगाह का विकास मार्च 2015 में हुए चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर समझौते के तहत किया जा रहा है। यह कॉरिडोर जब पूरी तरह तैयार हो जाएगा तब पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह और चीन के शिनजियांग प्रांत में काश्गर के बीच रेल, सड़क और तेल तथा गैस पाइपलाइन के जरिए संपर्क स्थापित हो जाएगा। 1भले ही चीन और पाकिस्तान को ऐसा लगा हो कि उन्होंने ग्वादर बंदरगाह और शहर का विकास कर भारत पर रणनीतिक रूप से बढ़त हासिल कर ली है, लेकिन यह सच है कि चाबहार समझौते ने उनके प्रभाव को बेअसर कर दिया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि चाबहार समझौता एक गेम चेंजर साबित होगा। खासकर अफगानिस्तान के लिए, क्योंकि उसे भारत आने का एक वैकल्पिक रास्ता मिल गया है। अब उसे पाकिस्तान जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। भारत चाबहार बंदरगाह के विकास के लिए 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर निवेश करेगा। यह बंदरगाह जब बनकर तैयार हो जाएगा तब इंटरनेशनल नार्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट (आइएनएसटीसी) से भारत सीधे जुड़ जाएगा। यह कॉरिडोर भारत को ईरान, मध्य एशिया, रूस और यूरोप से जहाज, सड़क और रेल मार्ग से जोड़ देगा। चाबहार बंदरगाह के विकास के लिए 2002 में तत्कालीन वाजपेयी सरकार के दौरान ही भारत और ईरान के बीच समझौता हुआ था, लेकिन 2004 में जब संप्रग सरकार सत्ता में आई तब ईरान के खिलाफ अमेरिका द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों सहित विभिन्न कारणों से इस परियोजना में विलंब होता गया। बाद में आई नरेंद्र मोदी की सरकार ने इस समझौते को प्राथमिकता दी।ईरान का दूसरा बंदरगाह बंदर अब्बास है। अभी ईरान का 85 प्रतिशत समुद्री व्यापार इसी के जरिये होता है। यह काफी व्यस्त रहता है। दूसरी ओर चाबहार उच्च क्षमता वाला बंदरगाह है। वर्तमान में इसकी वार्षिक क्षमता 25 लाख टन से बढ़ाकर 1.25 करोड़ टन करने की योजना है। बंदर अब्बास के विपरीत चाबहार बंदरगाह एक बार में एक लाख टन से अधिक भारी मालवाहक जहाज को संभाल सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि चाबहार को आइएनएसटीसी से संबद्ध करने की दीर्घकालिक योजना है। आइएनएसटीसी न सिर्फ भारत को ईरान और अफगानिस्तान से जोड़ेगा, बल्कि रूस, अजरबैजान, कजाखिस्तान, आर्मेनिया, बेलारूस, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान, ओमान, यूक्रेन, बुल्गारिया और पश्चिमी यूरोप के दूसरे देशों से भी संपर्क स्थापित करा देगा। यह रणनीतिक रूप से पाकिस्तान को मात दे देगा।एक बार शुरू होने के बाद चाबहार बंदरगाह परियोजना (सीपीपी) ग्वादर बंदरगाह परियोजना (जीपीपी) के प्रभाव को क्षीण कर देगी। भले ही पाकिस्तान और चीन जीपीपी की सफलता को लेकर काफी आशान्वित हैं, लेकिन बलूचिस्तान में उग्रवाद और उत्तरी क्षेत्र तथा पाक अधिकृत कश्मीर में बढ़ती अशांति के कारण चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर की सुरक्षा और व्यावहारिकता को लेकर चिंताएं बरकरार हैं। हालांकि चाबहार बंदरगाह का विकास वाणिज्यिक उद्देश्यों को ध्यान में रखकर किया जा रहा है, लेकिन यह अरब सागर और फारस की खाड़ी में पाकिस्तान और चीनी नौसेना की गतिविधियों की निगरानी में सहूलियतें प्रदान करेगा। 2015 में नरेंद्र मोदी जब मध्य एशिया के देशों के दौरे पर गए थे तब उन्होंने ओमान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, अशकाबाद समझौते (ओआइटीयूएए) की आधारशिला रखी थी। ओआइटीयूएए एक ऐसी बहुविध परियोजना है जिसकी मदद से इन देशों से प्राकृतिक गैस को पहले चाबहार बंदरगाह तक लाया जाएगा और फिर वहां से एलएनजी पाइपलाइन के जरिए भारत लाया जाएगा। चाबहार बंदरगाह समझौते के साथ ही मोदी ने फरजाद बी गैस फील्ड का रोडमैप भी प्रस्तुत किया है। इस गैस फील्ड की क्षमता 9.7 टिलियन क्यूबिक फीट है। लाल सागर, स्वेज नहर और भूमध्यसागर से होकर गुजरने वाले मौजूदा हिन्द महासागर-यूरोपियन परिवहन मार्ग की तुलना में अनुमान है कि चाबहार आधारित आइएनएसटीसी की दूरी 40 फीसद कम हो जाएगी। इससे भारतीय व्यापार की लागत 30 फीसद कम हो जाएगी। हाल ही में भारत ने आइएनएसटीसी के लिए तुर्कमेनिस्तान का नाम प्रस्तावित किया है। चाबहार बंदरगाह ने मुंद्रा बंदरगाह के जरिये ईरान से गैस के आयात की संभावनाओं के द्वार भी खोल दिए हैं। 1अफगानिस्तान में अपने हितों की रक्षा के लिए भारत को वहां तक पहुंच बनाने के लिए एक व्यावहारिक रास्ते की तलाश थी। अब ईरान ने इस कमी को पूरा कर दिया है। नरेंद्र मोदी के दौरे के दौरान ईरान के साथ और पूर्व में अफगानिस्तान के साथ हुए विभिन्न समझौते समुद्री सुरक्षा सहित भारत की ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करेंगे। दरअसल चाबहार समुद्री परिवहन के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान पर स्थित है। जापान, कोरिया, चीन और ताइवान सहित दक्षिण पूर्व और उत्तर एशियाई देशों की हाइड्रोकार्बन संबंधी जरूरतों का एक बड़ा हिस्सा इसी रास्ते होकर जाता है। मोदी भारत की समुद्री पहुंच को फारस की खाड़ी और प्रशांत महासागर के मध्य के क्षेत्रों तक बढ़ाना चाहते हैं। मोदी अपने एक साल के कार्यकाल में ही हिन्द और प्रशांत महासागर, खासकर विवादास्पद दक्षिण चीन सागर में भारत की समुद्री सुरक्षा को मजबूत करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन और जापानी प्रधानमंत्री से सहयोग का वादा प्राप्त कर चुके थे। बांग्लादेश, भूटान, इंडिया, नेपाल ट्रेड एंड ट्रांसपोर्ट एग्रीमेंट और अब आइएनएसटीसी, ओआइटीयूएए और टीटीए से जुड़कर भारत विश्व में विकास का मुख्य केंद्र बनने के मुहाने पर खड़ा है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, यह लेख दैनिक जागरण में २८ मई को परकाशित हुआ था)