भारत ने अंतरिक्ष की दुनिया में एक कदम और बढ़ाते हुए सोमवार को इतिहास रच दिया। दरअसल, इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) ने दोबारा इस्तेमाल लायक स्वदेशी स्पेसशटल को सोमवार को लांच कर दिया। इसे करीब सुबह सात बजकर पांच मिनट पर एक खास प्रक्षेपण यान (आरएलवी) को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से लांच किया गया।
6.5 मीटर लंबे ‘विमान’ जैसे दिखने वाले यान का वजन 1.75 टन है। RLV-TD का मुख्य लक्ष्य पृथ्वी की कक्षा में सैटेलाइट को पहुंचाना और फिर वायुमंडल में लौट आना है। इसे दोबारा प्रयोग में लाएजा सकने वाले रॉकेट के विकासकी दिशा में एक बहुत प्रारंभिककदम बताया जा रहा है।
आपको बता दें कि फिर से इस्तेमाल किए जासकने वाले प्रक्षेपण यान के विचार को बड़े देश खारिज कर चुके हैं, लेकिन इंजीनियरों का मानना है कि उपग्रहों को कक्षा में पहुंचाने की लागत को कम करने का यही उपाय है।
यह स्पेस शटल रियूजेबल लॉन्च व्हीकल-टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर (RLV-TD) से लॉन्च होगा। लॉन्च व्हीकल स्पेस शटल को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित कर एक एयरक्राफ्ट की तरह वापस पृथ्वी पर लौट आएगा तथा इसे दोबारा इस्तेमाल किया जा सकेगा। इसरो के वैज्ञानिकों का मानना है कि रियूजेबल लॉन्च व्हीकल की मदद से इस इस तरह के अभियान में लगने वाले कुल खर्च का 10 गुना तक कम किया जा सकेगा। रियूजेबल टेक्नोलॉजी की मदद से स्पेस में भेजे जाने वाले पेलोड की कीमत 2000 डॉलर/किलो (1.32 लाख/किलो) तक कम हो जाएगी। व्हीकल के एडवान्स्ड वर्जन को स्पेस के मैन्ड मिशन में यूज किया जा सकेगा।
70 किमी ऊपर जाएगा शटल
RLV-TD की ये हाइपरसोनिक टेस्ट फ्लाइट होगी। शटल की लॉन्चिंग रॉकेट की तरह वर्टिकली होगी। इसकी स्पीड 5 मैक (साउंड से 5 गुना ज्यादा) होगी। शटल को स्पेस में 70 किमी ऊपर ले जाया जाएगा। शटल को कक्षा में स्थापित करने के बाद लॉन्च व्हीकल 180 डिग्री मुड़कर बंगाल की खाड़ी में लैंड करेगा।
तैयार करने में लगा 6 साल का समय
यह पहली बार होगा जब किसी शटल को लॉन्च करने के बाद लॉन्च व्हीकल बंगाल की खाड़ी में बने वर्चुअल रनवे पर लैंड करेगा। इस रनवे को समुद्र तट से करीब 500 किमी दूर बनाया गया है। इसरो के वैज्ञानिकों ने बताया कि लॉन्च व्हीकल RLV-TD को पानी पर तैरने के लिहाज से डिजाइन नहीं किया गया। वैज्ञानिकों ने बताया कि 45 किमी की ऊंचाई पर पहुंचने के बाद बूस्टर अलग हो जाएंगे और व्हीकल शटल को 70 किमी तक ले जाएगा। फिलहाल ये टेस्टिंग है। पहली फ्लाइट का वजन 1.7 टन है और इसको तैयार करने में करीब 6 साल का समय लगा।
क्या है RLV-TD?
RLV-TD अमेरिकन स्पेस शटल की तरह ही है। RLV-TD के जिस मॉडल का एक्सपेरिमेंट किया जाएगा, वह इसके अंतिम रूप से 6 गुना छोटा है। RLV-TD का फाइनल वर्जन बनने में 10-15 साल का समय लगेगा।
अमेरिकी व्हीकल्स से सबसे ज्यादा बार भेजे गए शटल
अभी तक स्पेस शटल भेजने वाले देश अमेरिका के लॉन्च व्हीकल का इस्तेमाल करते रहे हैं। इन व्हीकल्स का कुल 135 बार इस्तेमाल हुआ है और 2011 में रिटायर कर दिया गया।
इसरो ने तय समय से पहले शुरू किया काम
इसरो ने इस स्पेस शटल के लिए 15 साल पहले सोचा था। लेकिन इस पर काम 5 साल पहले ही शुरू कर दिया है। 6.5 मीटर लंबे प्लेन की तरह दिखने वाले स्पेसक्राफ्ट का वजन 1.75 टन होगा। स्पेस शटल और क्ररुङ्क-ञ्जष्ठ पर शिप्स, सैटेलाइट और रडार से नजर रखी जाएगी।
स्त्रोत:rajasthanpatrika