आऱ एस़ एऩ सिंह
मेरा यह मत है कि मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि रक्षा क्षेत्र में हथियारों की खरीद में खुलापन और ईमानदारी स्थापित करने में रही है। यह अभूतपूर्व
इसलिये है क्योंकि रक्षा सौदों में बेईमानी की शुरुआत आज़ादी मिलने के उपरान्त ही शुरू हो गई थी। इसकी शुरुआत कृष्ण मेनन के द्वारा ब्रिटेन से जीप की खरीद में हुई थी। समय के साथ व्यवस्था इस तरह बिगड़ गई कि हथियार दलालों के तार हुकूमत के हर हिस्से तक पहुंच गये। ऐसा भी एक वक्त आया कि एक प्रधानमंत्री के दो बेटे, दो अलग देशों से लड़ाकू विमान के सौदे में अपने वर्चस्व का सरकारी तंत्र पर इस्तेमाल कर रहे थे।
वर्तमान सरकार के आने से पूर्व स्थिति बहुत गंभीर हो चुकी थी। तीनों सेनाओं के प्रमुखों के चयन में हथियार दलालों की अहम भूमिका हो गई थी। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व रक्षामंत्री ए के एन्टनी के कार्यकाल में एक थल सेना के प्रमुख को उम्र विवाद के बहाने हटाया गया ताकि दलालों के द्वारा सुनियोजित कड़ी बनी रहे। इसी क्रम में नौसेना अध्यक्ष एडमिरल जोशी को अपने पद से इस्तीफा देने पर मजबूर किया गया। लेकिन इस्तीफा हासिल करने के लिए पाप भरा रास्ता/षड्यंत्र का जाल बिछाया गया। नौसेना के करीब तेरह युद्धपोतों पर दुर्घटनायें हुईं, जिनमें तीन पनडुब्बियां भी शामिल थीं। आश्चर्य की बात यह है कि जैसे ही एडमिरल जोशी ने इस्तीफा दिया और नये नौसेना अध्यक्ष ने कार्यभार संभाला, सारी दुर्घटनायें बन्द हो गईं। जैसे कि सारे तथाकथित युद्धपोतों में विश्वकर्मा स्वयं विराजमान हो गये। यकीनन वे दुर्घटनायें नहीं, बल्कि पूर्वनियोजित विध्वंश का शिकार थे। हथियार के दलालों के इस खतरनाक खेल और बढ़ती पैंठ का ज्वलंत उदाहरण है कि किस तरह एक वायुसेना के प्रमुख अगस्तावेस्टलैंण्ड हेलिकॉप्टर सौदे में दलालों के शिकंजे में आ गये। ये दलाल केवल विदेशी नहीं थे, अपितु इसमें राजनीतिज्ञ और भारतीय अधिकारी भी थे। इसी तरह नौसेना के तेल टैंकर की खरीद में भी वही जाल सामने आ रहा है। इन दोनों सौदों में एक पहलू सामान्य है कि इन सौदों के तार इटली से जुड़े हुए हैं। जब समस्या इतनी गंभीर हो कि सेना अध्यक्षों का चयन हथियारों के दलाल करने लगें तो जाहिर है कि सारी ‘कमांड की कड़ी’ चरमरा जाती है और सेनायें नैतिक तौर पर खोखली हो जाती हैं। आज भारत दुनिया में सऊदी अरब के बाद हथियार आयात करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है। पश्चिमी देशों के हथियार उद्योग भारत पर निर्भर हैं। इसी संदर्भ में हथियार माफिया, यह मानी हुई बात है कि लड़ाइयां भी करवाते हैं, और लड़ाई होने का भय और उसी अनुसार लड़ाई का वातावरण भी पैदा करते हैं।
मोदी सरकार इन दलालों से निज़ात दिलाने का पुरजोर प्रयत्न कर रही है। यह कार्य इतना आसान नहीं है। यह केवल देशभक्त नेतृत्व ही कर सकता है। इतिहास गवाह है कि नैतिकता के बिना कोई भी सेना अच्छे से अच्छे हथियार होने के बावजूद नाकामयाब हुई।
(लेखक प्रख्यात रक्षा विशेषज्ञ हैं, यह लेख पांचजन्य के २९ मई के अंक में प्रकाशित हुआ था )