शम्भु नाथ चौधरी
वहां बेशुमार तालियां बजीं। उसके जवाब में यहां बेहिसाब छातियां पीटी जा रही हैं। वहां भारत की लोकतांत्रिक परंपराओं का बखान हुआ, बदले में यहां रुदनगान हो रहा है। सोशल मीडिया पर शोकमग्न लोगों के स्टेटस देख लीजिए। शोक ऐसे मना रहे हैं, जैसे यूएस कांग्रेस में भारत की इज्जत की मिट्टी पलीद हो गई हो! तालियां बजा लिया करो, सेहत ठीक रहेगी।
जिन्होंने वहां बजी तालियों के लिए यहां तालियां बजाईं, उन्हें एक झटके में भक्त की संज्ञा से नवाज दिया जा रहा है। क्यों भाई? वहां भाषण देनेवाला शख्स हमारा या तुम्हारा प्रधानमंत्री नहीं है क्या? दिक्कत यही है, तुम उसे कभी प्रधानमंत्री के रूप में देखते ही नहीं। बल्कि देखना ही नहीं चाहते। वे प्रधानमंत्री हैं, हम उन्हें प्रधानमंत्री के तौर पर देखते हैं। हम उन्हें यूएस कांग्रेस में भारत के नेता के तौर पर देखते हैं। कूटनीति की धरातल पर उन्होंने देश को जो जीत दिलाई, उसपर तालियां बजाते हैं। इतनी सी बात पर तुम हमें भक्त करार देते हो। चलो ठीक है, कोई गल नहीं। पर, तुम कभी भारत के नागरिक, भारत के भक्त के तौर पर ही तालियां बजा लिया करो। इससे और कुछ होगा न होगा, थोड़ी कसरत हो जाएगी, सेहत ठीक रहेगी।
तुम्हारी दिक्कत क्या है पार्टनर? तुम्हारी दिक्कतें समझ में आने लगी हैं। तुम्हें वह कभी प्रधानमंत्री के तौर पर दिखता ही नहीं। तुम हमेशा उसे ऐसे ‘ मोदी’ के तौर पर देखते हो, जो तुम्हारे लिए ‘ अस्पृश्य’ है। तुम चाहते हो कि तुम्हारी तरह दुनिया भी उसे ‘अस्पृश्य ‘ समझे। तुम कभी अपनी ख्वाहिश के घेरे से बाहर निकल ही नहीं पाते। तुम्हारी ख्वाहिश हमेशा यही रहती है कि दुनिया उसे तुम्हारी नजरों से देखे।दुनिया के नजारे वही नहीं जो तुम्हारी नजरें देखा करती हैं। तुम्हारी नजरों के पार भी कई नजारे हैं। जिस यूएस ने भी कभी उसे अस्पृश्य करार दिया था, उसने भी समझदारी का चश्मा पहन लिया है। तालियों की जिस आवाज पर तुम बेचैन हो रहे हो, वह उसी यूएस से आई हैं, जिसने उसकी एंट्री तक पर बैन लगा दी थी।
टेलिप्रॉम्प्टर देखकर पढ़ा तो जाहिल हो गए क्या? तुम्हें तालियों के पीछे भी कोई साजिश नजर आने लगी है। तुम यू-ट्यूब खंगालकर दिखाने लगते हो कि देखो यूएस कांग्रेस में नेहरू, राजीव और नरसिम्हा राव के भाषण पर भी तालियां बजीं थीं। अरे यार, इससे कौन इनकार कर रहा है कि तब भी तालियां बजी थीं। फर्क सिर्फ इतना है कि वो तालियां तब बजी थीं और ये तालियां अब बजी हैं। वो तब की बात है। ये अब की बात है। तब तुम उन तालियों पर तालियां बजा नहीं पाए और अब इन तालियों के जवाब में अपनी छातियां कूट रहे हो। तुम इन तालियों को झूठा बताने के लिए टेलिप्रॉम्प्टर की तस्वीर धड़ाधड़ अपनी दीवारों पर चस्पा किए जा रहे हो। बता रहे हो कि मोदी इतनी फर्राटेदार अंग्रेजी नहीं बोल सकता। अरे भैए, इसके पहले भी फर्राटेदार बोलनेवाले तमाम नेताओं ने कागज देखकर ही भाषण पढ़ा था। विलायत से पढ़कर आए राजीव ने भी कागज देखकर पढ़ा था और विलायत के विश्वविद्यालयों में पढ़ाने का मौका पाने वाले ज्ञानी अर्थशास्त्री डॉ मनमोहन सिंह ने भी कागज देखकर ही अंग्रेजी में लेक्चर दिया था। दरअसल, ऐसे खास मौकों पर ज्यादातर भाषण पूर्वनिर्धारित स्क्रिप्ट के अनुसार ही दिए जाते हैं। यह सावधानी इसलिए कि कोई ऐसी लफ्ज न निकल जाए, जिससे देश की पॉलिसी और सोच समझकर लिए गए स्टैंड पर अर्थ का अनर्थ हो जाए। अब मोदी ने टेलिप्रॉम्प्टर की मदद से क्या पढ़ा, तुम उसे अनपढ़-जाहिल बताने की कोशिश में जुट गए हो।
वो कल की बात थी, ये आज की बात है -खुद के दिलासे के लिए, तुमने तालियों के जवाब में छातियां पीटने की झूठी वजहें तलाश ली हैं। सच यही है कि यूएस से तालियों की जो आवाज आई है, वह एक बेहतरीन और संतुलित भाषण के लिए बजी हैं। ये तालियां भारत के प्रधानमंत्री के भाषण के लिए बजी हैं। ये तालियां उसके लिए बजी हैं, जो आज भारत का प्रधानमंत्री है। जो तालियां कल बजी थीं, वो कल की बात है। हमारी बात मानो। आज के लिए तुम भी तालियां बजा लो, ताकि कल की खातिर फिर अफसोस न हो। पहले ही कह चुका हूं कि तालियां बजा लोगे तो कसरत हो जाएगी। सेहत ठीक रहेगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )