प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विद्युत उत्पादन की लागत घटाने के लिए घरेलू कोयले के उपयोग में लचीलेपन की इजाजत देने को अपनी मंजूरी दे दी है।उपर्युक्त प्रस्ताव का उद्देश्य कार्य कुशल उत्पादक केंद्रों में घरेलू कोयले के इष्टतम उपयोग में लचीलेपन की अनुमति देना है, जिससे कि बिजली उत्पादन की लागत घट सके और इसके साथ ही राज्य वितरण कंपनियों की बिजली खरीद लागत में कमी संभव हो सके। इस तरह का लचीलापन कोयले से बिजली बनाने और उपकरणों की क्षमता के साथ-साथ परिवहन लागत के अनुकूलन में मददगार साबित होगा।
इससे देश के विद्युत क्षेत्र में दक्षता बढ़ाने, प्राकृतिक संसाधनों के इष्टतम उपयोग और समग्र रूप से आर्थिक लाभ हासिल करने को नई गति मिलेगी। इससे कोयला ढुलाई की लागत घट जाएगी और इसके साथ ही ढुलाई में इस्तेमाल होने वाली ऊर्जा की बचत भी होगी। यही नहीं, इससे रेलवे नेटवर्क में भीड़-भाड़ को समाप्त करना भी संभव हो सकता है। यह भी एक अपेक्षाकृत ज्यादा पर्यावरण अनुकूल व्यवस्था हो सकती है क्योंकि कम कोयले के उपयोग से ज्यादा विद्युत का उत्पादन हो सकेगा और इसके साथ ही कोयले की ढुलाई के लिए तय की जाने वाली दूरी को अनुकूलित किया जा सकेगा।
यह प्रस्ताव भारत सरकार की ‘उदय’ योजना के अनुरूप है, क्योंकि इसमें भी अक्षम संयंत्रों के बजाय कार्यसक्षम संयंत्रों और कोयला खदानों से दूर स्थित संयंत्रों के बजाय कोयला खदानों के बिल्कुल निकट स्थित (पिट हेड) संयंत्रों के लिए काफी उदारता के साथ कोयले की अदला-बदली की इजाजत देने की परिकल्पना की गई है, ताकि कोयले ढुलाई की लागत को न्यूनतम किया जा सके और इस तरह बिजली की लागत घटाई जा सके।
उपर्युक्त प्रस्ताव में यह उल्लेख किया गया है कि व्यक्तिगत राज्य उत्पादक केंद्रों के समस्त दीर्घकालिक कोल लिंकेजों को आपस में जोड़ दिया जाएगा और उन्हें संबंधित राज्य/राज्य द्वारा नामित एजेंसी को सौंप दिया जाएगा। इसी तरह व्यक्तिगत केंद्रीय उत्पादक केंद्रों (सीजीएस) के कोल लिंकेजों को आपस में जोड़ दिया जाएगा और उन्हें सीजीएस का स्वामित्व रखने वाली कंपनी को सौंप दिया जाएगा, ताकि अंतिम इस्तेमाल करने वाले उत्पादक केंद्रों के बीच कोयले का कारगर उपयोग संभव हो सके।
अत: ऐसे में राज्य के स्वामित्व वाले निकायों के उत्पादक केंद्रों, अन्य राज्य विदयुत निकायों के संयंत्रों, केंद्रीय उत्पादक केंद्रों का स्वामित्व रखने वाली कंपनी और आईपीपी इत्यादि के बीच इस तरह के कोयले के उपयोग में लचीलापन संभव हो पाएगा।
जहां तक राज्य/केंद्रीय उत्पादक संयंत्रों में कोयले के इस्तेमाल का सवाल है, इसके तहत संयंत्र की दक्षता, कोयला ढुलाई लागत, पारेषण प्रभार और विद्युत की कुल लागत को निर्णायक पैमाना माना जाएगा।
राज्य को सौंपे गए कोयले का इस्तेमाल निजी उत्पादक केंद्रों में करने के मामले में प्रतिस्थापित कोयले के जरिये हासिल होने वाली बिजली की खरीदारी निजी क्षेत्र के प्रतिस्पर्धी संयंत्रों के बीच बोली के आधार पर की जाएगी, जिसके तहत कोयले के स्रोत, कोयले की मात्रा, बिजली की मात्रा और बिजली की प्राप्ति के लिए वितरण केंद्र के बारे में अग्रिम तौर पर संकेत दिया जाएगा।
सभी हितधारकों के साथ सलाह-मशविरा करने के बाद केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण राज्य अथवा राज्यों को सौंपे गए कोयले का इस्तेमाल अपने खुद के उत्पादक केंद्रों, अन्य राज्य उत्पादक केंद्रों, सीजीएस और आईपीपी में करने की कार्यप्रणाली जारी करेगा। इसी तरह सीजीएस का स्वामित्व रखने वाली कंपनी द्वारा कोयले का इस्तेमाल खुद के अपने संयंत्रों अथवा किसी अन्य कार्यसक्षम संयंत्र में करने की कार्यप्रणालियां भी केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण द्वारा जारी की जाएंगी।
पृष्ठभूमि: कोयला देश में विद्युत उत्पादन का मुख्य स्रोत है। मोटे तौर पर कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों की दो श्रेणियां ये हैं: (i) पिट हेड आधारित संयंत्र, जो कोयला खदानों के निकट स्थित होते हैं (ii) लोड सेंटर आधारित संयंत्र, जो लोड केंद्रों के निकट स्थित होते हैं। कोयले से बिजली बनाने के मामले में विभिन्न विद्युत संयंत्रों के क्षमता स्तर अलग-अलग होते हैं, जो उनकी प्रौद्योगिकी, इकाई की क्षमता इत्यादि पर निर्भर होते हैं। वर्तमान में ऐसी स्थितियां देखने को मिल रही हैं कि कार्यसक्षम विद्युत संयंत्रों को तो कोयले की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है, जबकि कुछ अन्य विद्युत केंद्रों में क्षमता का कम उपयोग होने के कारण उनके पास पर्याप्त मात्रा में कोयला उपलब्ध है।
स्त्रोत:http://pib.nic.in/