विगत दिनों गोवा में संपन्न ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में जिस तरीके से भारत ने पाक को अलग-थलग करने की अपनी कूटनीति का प्रदर्शन किया, वो बेहद शानदार और दूरगामी प्रभाव वाला कदम माना जा सकता है। पिछली सरकारों ने भी पाकिस्तान को वैश्विक रूप से अलग-थलग करने के लिए प्रयास किए थे, लेकिन वे प्रयास न के बराबर ही सफल रहे। लेकिन, मोदी सरकार की पाक को वैश्विक तौर पर अलग-थलग करने की नीति बड़े ही बेहतर ढंग से आगे बढ़ती दिखाई दे रही है। गौर करें तो ब्रिक्स सम्मेलन में भी पाकिस्तान को दक्षिण एशिया में ही नहीं, विश्व स्तर पर अलग-थलग करने की नीति पर यह सरकार कूटनीतिक अंदाज में बढ़ती दिखाई दी। प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्राओं को लेकर विपक्षी दल हंगामा मचाते आये हैं, लेकिन ढाई वर्षों के बाद मोदी की यही यात्राएं रंग ला रही है।
ब्रिक्स के साथ ही हुए बंगाल की खाड़ी के निकटवर्ती देशों के संगठन ‘बिम्सटेक’ के सम्मेलन के द्वारा भी भारत ने दक्षिण एशिया में एक ऐसे विकल्प के निर्माण पर बल दिया है, जिससे पाकिस्तान की मौजूदगी विश्व पटल पर धुंधली-सी हो जाए। बता दें कि बिम्सटेक के सदस्य देशों में पाकिस्तान शामिल नहीं है। अतः मोदी सरकार ने बड़े ही कूटनीतिक ढंग से ब्रिक्स सम्मेलन में पाकिस्तान की सदस्यता वाले सार्क देशों को आमंत्रित करने की बजाय बिम्सटेक के सदस्य देशों को बुला लिया। इस तरह इस सम्मेलन में पाकिस्तान बड़े ही कूटनीतिक ढंग से एशिया समेत पूरे विश्व समुदाय से अलग-थलग करने में मोदी सरकार को कामयाबी मिली तथा न केवल वैश्विक महाशक्तियां बल्कि अधिकांश एशियाई देश भी भारत के साथ ही खड़े दिखाई दिए।
ब्रिक्स सम्मेलन में ब्राजील ने जिस तरह मोदी सरकार को एनएसजी और आतंकवाद के मुद्वे पर समर्थन देने की बात कही, उसे देखकर यह लगता है कि मोदी सरकार अपनी विदेश नीति से धीरे-धीरे सबको साधती जा रही है। इस सम्मेलन से पहले ब्राजील भी एनएसजी के मुद्वे पर भारत का विरोध कर रहा था। ब्रिक्स के साथ ही हुए बंगाल की खाड़ी के निकटवर्ती देशों के संगठन ‘बिम्सटेक’ के सम्मेलन के द्वारा भी भारत ने दक्षिण एशिया में एक ऐसे विकल्प के निर्माण पर बल दिया है, जिससे पाकिस्तान की मौजूदगी विश्व पटल पर धुंधली-सी हो जाए। बता दें कि बिम्सटेक के सदस्य देशों में पाकिस्तान शामिल नहीं है। अतः मोदी सरकार ने बड़े ही कूटनीतिक ढंग से ब्रिक्स सम्मेलन में पाकिस्तान की सदस्यता वाले सार्क देशों को आमंत्रित करने की बजाय बिम्सटेक के सदस्य देशों को बुला लिया। इस तरह इस सम्मेलन में पाकिस्तान बड़े ही कूटनीतिक ढंग से एशिया समेत पूरे विश्व समुदाय से अलग-थलग करने में मोदी सरकार को कामयाबी मिली तथा न केवल वैश्विक महाशक्तियां बल्कि अधिकांश एशियाई देश भी भारत के साथ ही खड़े दिखाई दिए। पाकिस्तान प्रेमी चीन भी ब्रिक्स सम्मेलन में आतंकवाद के मुद्वे पर पाकिस्तान का कोई बचाव न कर सका बल्कि उसे भी भारत के सुर में सुर ही मिलाना पड़ा। जो यह सूचित करता है कि कहीं न कहीं भारत चीन को भी अपना समर्थन करने के लिए मजबूर करने में कामयाब होता जा रहा है।
मोदी सरकार ब्रिक्स सम्मेलन और भारत और रूस के बीच डिफेंसए एनर्जीए इन्फ्रास्ट्रक्चरए स्पेसए साइंस और रिसर्ज से जुडें़ विभिन्न सेक्टरों में कई अहम समझौते हुए हैं, जो दोनों देषों के वर्षों पुराने रिश्तों और सामारिक संबंध के लिए बहुत ही आवश्यक कहा जा सकता है। आतंकवाद पर दोनों देश एकता का रूख करते हुए विभिन्न क्षेत्रों पर सहयोग बढ़ाने पर जोर दिए हैं। रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने आतंकवाद पर भारत का साथ देने का वायदा किया है। भारत और रूस के बीच एयर डिफेंस समझौते पर भी हस्ताक्षर हुआ। एयर डिफेंस सिस्टम एस-400 ट्राइअम्फ लंबी रेंज की क्षमता वाले होते है, जिससे भारत इन मिसाइलों के द्वारा दुश्मनों के विमानों और मिसाइलों को 400 किलोमीटर तक के दायरे में मार गिराने में सफल हो सके होगा। निश्चित तौर पर इससे भारत की सामारिक क्षमता बढ़ जाएगी।
भारत दक्षिण एशिया में आतंकवाद से पीड़ित है, जिसके लिहाज से रूस के साथ रक्षा क्षेत्र में हुए इस समझौते से अपनी ताकत में इजाफा करके आसानी से पाकिस्तान को जवाब दे सकेगा। रूस ने एक बार फिर विश्व-पटल पर दिखा दिया है कि भारत के साथ उसके रिश्ते वर्षों पुराने है, जो तत्काल में किसी मुद्वे को लेकर भटकने वाले नहीं। कुल मिलाकर कहें तो बीते ढ़ाई सालों में भारत की विदेश नीति, कूटनीति और रक्षा नीति ने बेहद मजबूती का परिचय और दूरदर्शिता का परिचय दिया है। भारत जिस तरीके से विश्व स्तर पर अपनी नीति में कामयाब हो रहा है, यह साबित करता है कि आने वाले समय में भारत विश्व के सामने एक विराट शाक्ति के रूप में सामने आयेगा।
(लेखक पत्रकारिता के छात्र हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)