केरल की वामपंथी हिंसा पर ‘असहिष्णुता गिरोह’ की शर्मनाक ख़ामोशी !

केरल में बढ़ती हिंसा इस बात का सबूत है कि वामपंथ से बढ़कर हिंसक विचार दूसरा कोई और नहीं है। वामपंथी विचार घोर असहिष्णु है। असहिष्णुता इस कदर है कि वामपंथ को दूसरे विचार स्वीकार्य नहीं है, अपितु उसे अन्य विचारों का जीवंत रहना भी बर्दाश्त नहीं है। इस विचारधारा के शीर्ष विचारकों ने अपने जीवनकाल में हजारों-लाखों निर्दोष लोगों का खून बहाकर उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। जिस वामपंथी नेता ने विरोधियों का जितना रक्त बहाया, उसे उतना ही अधिक महत्त्व दिया गया है। दरअसल, वामपंथी विचारधारा के मूल में हिंसा है, जिसका प्रकटीकरण वामपंथ को मानने वालों के व्यवहार में होता है। तानाशाही प्रवृत्ति की इस विचारधारा ने भारत में मजबूरी में लोकतांत्रिक व्यवस्था को स्वीकार किया है। यही कारण है कि लोकतांत्रिक मूल्यों में इनकी आस्था दिखाई नहीं देती है। भारत के जिस हिस्से में यह विचार शक्तिशाली हुआ, वहाँ इसने हिंसा और तानाशाही का नंगा नाच खेला। केरल के वर्तमान हालात इस बात के गवाह हैं।

सवाल उठता है कि वामपंथी विचारधारा के कार्यकर्ताओं की इस पशुता पर देश का राष्ट्रीय मीडिया खामोश क्यों है ? असहिष्णुता का बवंडर खड़ा करने वाले तथाकथित प्रगतिशील भी चुप्पी साध कर बैठे हुए हैं ? क्या यह हत्याएं सहिष्णुता की श्रेणी में आती हैं ? क्या इन घटनाओं का विरोध नहीं किया जाना चाहिए ? क्या इन घटनाओं पर इसलिए चुप्पी साधकर रखी गई है, क्योंकि इन घटनाओं में कम्युनिस्ट विचारधारा के लोगों की संलिप्तता है ? केरल में आए जंगलराज पर यह खामोशी बताती है कि इस देश का विचारधारा विशेष का बौद्धिक धड़ा कैसे दोमुंहेपन से ग्रस्त है।

केरल में वामपंथी विचारधारा से शिक्षित कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता और नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी से संबंध रखने वाले निर्दोष लोगों को अपनी हिंसा का शिकार बना रहे हैं। राष्ट्रवादी विचार के प्रति आस्था रखने वाले परिवारों और व्यक्तियों को बेरहमी से मौत के घाट उतारा जा रहा है। यहाँ तक कि मासूम बच्चों और महिलाओं के प्रति भी कम्युनिस्ट पार्टी के लोग अत्यंत अमानवीय व्यवहार कर रहे हैं।

कोझीकोड में घटी घटना की ह्रदय-विदारकता ऐसी है कि किसी भी संवेदनशील व्यक्ति की आत्मा को रुला दे। दिसंबर में राष्ट्रवादी विचार से संबंध रखने वाले एक समूचे परिवार को आग के हवाले कर दिया। उस परिवार को घर में बंद करके बाहर से आग लगा दी गयी। इस हादसे में भाजपा की मंडल कार्यकारिणी के सदस्य 44 वर्षीय चादयांकलायिल राधाकृष्णन, उनके भाई और भाभी की मौत हो गयी। इससे पूर्व केरल में ही एक परिवार कार से कहीं जा रहा था। वह परिवार भी संघ का स्वयंसेवक परिवार था। उनकी गाड़ी को वामपंथी विचार के लोगों ने रोका और उनके दस महीने के बच्चे को पैरों से पकड़ कर गाड़ी से खींचा और सड़क पर फेंक दिया।

सवाल उठता है कि वामपंथी विचारधारा के कार्यकर्ताओं की इस पशुता पर देश का राष्ट्रीय मीडिया खामोश क्यों है ? असहिष्णुता का बवंडर खड़ा करने वाले तथाकथित प्रगतिशील भी चुप्पी साध कर बैठे हुए हैं ? क्या यह हत्याएं सहिष्णुता की श्रेणी में आती हैं ? क्या इन घटनाओं का विरोध नहीं किया जाना चाहिए ? क्या इन घटनाओं पर इसलिए चुप्पी साधकर रखी गई है, क्योंकि इन घटनाओं में कम्युनिस्ट विचारधारा के लोगों की संलिप्तता है ? केरल में आए जंगलराज पर यह खामोशी बताती है कि इस देश का विचारधारा विशेष का बौद्धिक धड़ा कैसे दोमुंहेपन से ग्रस्त है। इस बुधवार को कन्नूर में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता मुल्लाप्रम एजुथान संतोष की हत्या सीपीआई-एम के कार्यकर्ताओं ने उस वक्त कर दी जब वह रात में अपने घर में अकेले थे। भाजपा ने इस घटना के खिलाफ रोष व्यक्त किया है। बुद्ध और गांधी के देश में इस वैचारिक हिंसा पर राष्ट्रीय मीडिया और बुद्धिजीवियों की खामोशी न केवल चिंताजनक है, बल्कि निंदनीय भी है। इन घटनाओं के लिए केरल की कम्युनिस्ट सरकार से केंद्र सरकार को जवाब तलब करना चाहिए।

(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)