आतंकवाद के खिलाफ कांग्रेस का लचर और शर्मनाक रुख

उत्तर प्रदेश में चुनावी हंगामा थमा नहीं कि आतंकी सैफुल्ला के एनकाउंटर से एक नया और चिंतनीय प्रकरण पैदा हो गया है। दरअसल बीते मंगलवार को मध्य प्रदेश के जबड़ी स्टेशन के पास पैसेंजर ट्रेन में एक कम तीव्रता का बम धमाका हुआ, जिसमें लगभग दस लोग घायल हुए। इस बम धमाके की जांच में लगी मध्य प्रदेश पुलिस ने तीन आतंकियों को पिपरिया से गिरफ्तार किया, तो इस धमाके में दस लोगों का नेटवर्क होने की बात सामने आई। खैर, गिरफ्तार  तीन आतंकियों से मिली जानकारी के आधार पर कानपुर से फैज़ल को भी गिरफ्तार कर लिया गया। एक आतंकी सैफुल्लाह के लखनऊ में होने की जानकारी मिली थी, जिसके साथ एटीएस की लम्बी मुठभेड़ चली और उसे मार गिराया गया। कह सकते हैं कि देश के ख़ुफ़िया तंत्र और पुलिस ने एक हद तक सही ढंग से इस मामले को हैंडल किया। लेकिन दुखद यह है कि विपक्षी राजनीतिक दल कांग्रेस इसमें भी अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने से बाज नहीं आ रही।

इशरत जहां को आतंकी साबित न होने देने के लिए कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के दौरान गृहमंत्री रहे चिदंबरम द्वारा किए गए कारनामें अब जगजाहिर हो चुके हैं। बाटला हाउस एनकाउंटर पर सोनिया गांधी के आंसुओं की कहानी कांग्रेस के सलमान खुर्शीद सुना ही चुके हैं। सर्जिकल स्ट्राइक जैसी आतंक के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई पर सवाल उठाने का काम भी कांग्रेस के द्वारा किया गया है। इस प्रकार स्पष्ट है कि सत्ता हो या विपक्ष दोनों ही भूमिकाओं में आतंक के विरुद्ध कांग्रेस रुख बेहद लचर रहा है। ताज़ा मामले में भी कांग्रेस अपने उसी रुख का परिचय दे रही है। आतंकवाद के खिलाफ देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी का यह रुख न केवल शर्मनाक है, बल्कि चिंताजनक भी है।

कांग्रेस की तरफ से पीसी चाको और दिग्विजय सिंह ने आतंकी के मारे जाने के लिए केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। पीसी चाको ने जहां इस एनकाउंटर की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए सबूत की मांग कर डाली तो वहीँ दिग्विजय सिंह तो और दो कदम आगे बढ़ते हुए इसके पीछे मुस्लिम समुदाय से सरकार का भेदभाव बता दिए। दिग्विजय का कहना था कि सरकार मुस्लिमों से भेदभाव कर रही है, जिस कारण वे आतंक की तरफ बढ़ रहे हैं। हालांकि दिग्विजय सिंह से यह पूछा जाना चाहिए था कि आतंकी हमले तो उनकी कांग्रेस की सरकार के समय आज से अधिक हुए हैं, तो क्या कांग्रेस भी मुस्लिमों से भेदभाव करती थी ?

बहरहाल, कितना विचित्र और दुखद है कि देश में संभवतः किसी बड़े आतंकी हमले की योजना बना रहे आतंकियों के मंसूबों को एक हद तक नाकाम करने के लिए ख़ुफ़िया तंत्र और पुलिस को शाबासी देने तथा इस संवेदनशील मसले पर सरकार के साथ खड़े होने की बजाय देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस इस तरह की निकृष्ट राजनीति करने में लगी है। यह दुखद विडंबना है कि एनकाउंटर में मारे गए आतंकी सैफुल्ला के पिता ने तो उसका शव तक लेने से इनकार कर दिया, मगर कांग्रेस एक तरह से उसके बचाव में खड़ी नज़र आ रही है। कहने की आवश्यकता नहीं कि इसके पीछे कांग्रेस का समुदाय विशेष के तुष्टिकरण और ‘विरोध के लिए विरोध करने’ का अपना पुराना एजेंडा है।

वैसे, आतंक के खिलाफ लड़ाई में कांग्रेस के इतिहास पर नज़र डालें तो उसने सदैव इस तरह की लड़ाई को कमज़ोर ही किया है। इशरत जहां, बाटला हाउस जैसे कांग्रेस शासन के दौरान हुए मामलों से लेकर अभी हाल ही में भोपाल जेल से भागे आतंकियों के एनकाउंटर तथा हमारे जवानों द्वारा सीमा पार आतंकी कैम्पों पर की गयी सर्जिकल स्ट्राइक तक कांग्रेस ने आतंक के विरुद्ध सदैव ढुलमुल रुख ही अपनाया है। वहीँ भाजपा का रुख आतंक के विरुद्ध न केवल शब्दों में बल्कि व्यवहार में भी सदैव कठोर नज़र आता है। गौर करें तो इशरत जहां को आतंकी साबित न होने देने के लिए कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के दौरान गृहमंत्री रहे चिदंबरम द्वारा किए गए कारनामें अब जगजाहिर हो चुके हैं। बाटला हाउस एनकाउंटर पर सोनिया गांधी के आंसुओं की कहानी कांग्रेस के सलमान खुर्शीद सुना ही चुके हैं। सर्जिकल स्ट्राइक जैसी आतंक के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई पर सवाल उठाने का काम भी कांग्रेस के द्वारा किया गया है। इस प्रकार स्पष्ट है कि सत्ता हो या विपक्ष दोनों ही भूमिकाओं में आतंक के विरुद्ध कांग्रेस रुख बेहद लचर रहा है। ताज़ा मामले में भी कांग्रेस अपने उसी रुख का परिचय दे रही है। आतंकवाद के खिलाफ देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी का यह रुख न केवल शर्मनाक है, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ देश की लड़ाई को कमजोर करने वाला भी है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)