हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा के चुनावी नतीजों ने देशव्यापी प्रसार का ख्वाब देखने वाली आम आदर्मी पार्टी को दिल्ली तक समेट दिया। ईमानदार और वैकल्पिक राजनीति का वादा करने वाली आम आदमी पार्टी अब शायद ही दिल्ली से बाहर चुनाव जीतने का दंभ भरे। दिल्ली में भी उसका जनाधार तेजी से खिसक रहा है।
पंजाब, गोवा, गुजरात, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश के बाद अब हरियाणा और महाराष्ट्र में भी आम आदमी पार्टी को करारी शिकस्त मिली है। साल भर पहले पार्टी ने हरियाणा में विधानसभा चुनाव पूरे दमखम से लड़ने का ऐलान किया था और नवीन जयहिंद को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भी घोषित कर दिया था। इसके बावजूद आम आदमी पार्टी ने विधानसभा की 90 में से 46 सीटों पर ही अपने उम्मीदवार उतारे।
आप नेता इसके लिए चाहे जो बहाने बनाएं लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि आप के गिरते ग्राफ के चलते अधिकतर लोगों ने आम आदमी पार्टी से किनारा करना ही बेहतर समझा। गौरतलब है कि आप आदमी पार्टी ने लोक सभा चुनाव में जन नायक जनता पार्टी से गठबंधन किया था लेकिन करारी शिकस्त मिलने के बाद विधानसभा चुनाव में पार्टी ने अकेले उतरने का फैसला किया।
दिल्ली से सटे हरियाणा में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए पार्टी लगातार कोशिश कर रही थी। हरियाणा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का गृहराज्य भी है। इसके बावजूद जनता का मूड भांपकर चुनाव प्रचार करने में न तो मुख्यमंत्री ने उत्साह दिखाया और न हीं पार्टी के दूसरे वरिष्ठ नेताओं ने।
देखा जाए तो गोवा और गुजरात में मिली पराजय के बाद से ही आम आदमी पार्टी के नेताओं ने पार्टी को राष्ट्रीय फलक पर ले जाने की योजना स्थगित कर दिया था। इसीलिए पार्टी ने महाराष्ट्र में केवल 24 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार एक उम्मीदवार को छोड़कर पार्टी के सभी उम्मीदवार अपनी सीटों पर 1000 मत भी हासिल नहीं कर सके जिससे उनकी जमानत जब्त हो गई।
सबसे बड़ी विडबंना यह रही कि दोनों राज्यों में पार्टी को नोटा से भी कम मत मिले। हरियाणा में आप को 0.48 प्रतिशत मत मिले जबकि नोटा के तहत पड़े मतों को प्रतिशत 0.53 था। महाराष्ट्र में तो पार्टी की और दुर्गति हुई। आप को जहां 0.11 प्रतिशत मत मिले वहीं नोटा विकल्प चुनने वालों का अनुपात 1.31 प्रतिशत रहा।
दरअसल जनता आम आदमी पार्टी की हकीकत जान गई है। ईमानदार और वैकल्पिक राजनीति का वादा करने वाली पार्टी अपने चुनावी वादों को पूरा करने में बुरी तरह नाकाम रही। दिल्ली विधानसभा चुनाव में 70 में से 67 सीट जीतने वाली पार्टी व्यवस्था परिवर्तन के नारे को हकीकत में नहीं बदल पाई। जैसे-जैसे पार्टी अपने मूल सिद्धांतों से हटी वैसे-वैसे पार्टी के संस्थापक सदस्य उससे अलग होते गए। जिस अरविंद केजरीवाल को ईमानदारी की मूर्ति बताया गया उसी अरविंद केजरीवाल पर भ्रष्टाचार के अनेक आरोप लगे हैं।
दूसरी पार्टियों पर पैसे लेकर टिकट देने का आरोप लगाने वाले अरविंद केजरीवाल खुद टिकट देने के बदले वसूली करने लगे। लोक सभा चुनाव के दौरान पश्चिमी दिल्ली लोक सभा सीट से बलबीर सिंह जाखड़ को टिकट देने के बदले छह करोड़ रूपये रिश्वत लेने का आरोप खुद बलबीर सिंह के बेटे ने लगाया जिसका तार्किक जवाब अरविंद केजरीवाल नहीं दे पाए। इससे पहले राज्य सभा के दिल्ली कोटे की तीनों सीटों के चुनाव के समय उम्मीदवारों के चयन पर अरविंद केजरीवाल पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे थे।
सबसे गंभीर आरोप सुशील गुप्ता को टिकट देने पर लगे थे। गौरतलब है कि सुशील गुप्ता राज्य सभा का टिकट मिलने से पहले कांग्रेस पार्टी के सक्रिय सदस्य थे और केजरीवाल के खिलाफ धरना–प्रदर्शन आयोजित कर चुके थे। लेकिन आम आदमी पार्टी में शामिल होने के महज 35 दिन बाद केजरीवाल ने सुशील गुप्ता को राज्य सभा का टिकट दे दिया।
उस समय विरोधियों ने ही नहीं केजरीवाल के नजदीकी सहयोगियों ने भी सीट के बदले नकद लेन-देन का आरोप लगाया था। केजरीवाल के मंत्रियों पर भी भ्रष्टाचार, बलात्कार, विरोधियों के धमकाने जैसे गंभीर आरोप लग चुके हैं। इन्हीं कारणों से पार्टी अपनी राजनीतिक जमीन खोती जा रही है। ऐसे में पार्टी को दिल्ली में भी हार का मुंह देखना पड़ सकता है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)