दिल्ली में आम आदमी पार्टी को सत्ता में आए दो वर्ष हो चुके हैं। इन दो वर्षों के कार्यकाल के दौरान दिल्ली की राजनीति में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं। दो साल के कार्यकाल के आधार पर यदि केजरीवाल सरकार का मूल्यांकन करें तो बेहद निराश करने वाली स्थिति नज़र आती है। यह बात तो जगजाहिर है कि केजरीवाल के अभी तक के कार्यकाल का अधिकाधिक समय केंद्र सरकार और दिल्ली के पूर्व उप-राज्यपाल नजीब जंग से बेजा टकराव करने में ही बीता है। लेकिन, मुख्यमंत्री केजरीवाल द्वारा इरादतन किए जाने वाले इस टकराव का सर्वाधिक नुकसान दिल्ली की जनता को हुआ है।
दो सालों में आम आदमी पार्टी की सरकार ने काम कम और फिजूल का ड्रामा ज्यादा किया है। मसलन, प्रधानमंत्री की डिग्री पर बेजा हंगामा खड़ा करना हो अथवा आप विधायकों की गिरफ्तारी का मामला हो, केजरीवाल बिना बात केंद्र सरकार पर ऊल-जुलूल आरोप लगाते रहे हैं। चुनाव पूर्व स्वच्छ राजनीति का दावा करने वाले केजरीवाल भ्रष्टाचार, यौन शोषण जैसे गंभीर आरोपों से घिरे अपने विधायकों की गिरफ्तारी के विरोध में उनके साथ पूरी निष्ठा के साथ खड़े नज़र आए।
दरअसल, एक के बाद एक बवंडर खड़ा करना दिल्ली के मुख्यमंत्री का प्रमुख शगल हो गया है। आम आदमी पार्टी के क्रियाकलापों को देखकर तो यही लगता है कि उसका मन अब दिल्ली तथा दिल्ली का विकास करने में कम और ओछी राजनीति करने में ज्यादा है। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी दिल्ली की जनता से जो वादे करके सत्ता की सीढ़ियाँ चढ़ी थी, आज उन वादों को जैसे भूल ही चुकी है। गौरतलब है कि भ्रष्टाचार, बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और महिलाओं की सुरक्षा का राग चुनाव के दौरान केजरीवाल आलापते रहते थे, लेकिन जो उम्मीद दिल्ली की जनता ने उनसे लगाई, मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने उन उम्मीदों को अपनी राजनीतिक चेष्टाओं के द्वारा छिन्न –भिन्न करके रख दिया है। इसी क्रम में अगर हम आम आदमी पार्टी का 70 बिंदुओं वाला चुनावी घोषणापत्र देखें और वर्तमान में सरकार के कामकाज को उसके समानांतर रखकर तुलना करें, तो केजरीवाल सरकार अपने घोषणापत्र में किये गये वादों से काफी पीछे नजर आती है।
आज दिल्ली में सड़को की हालत बदतर है। हैरतअंगेज़ है कि सरकार बनने के पश्चात् एक भी डीटीसी की नई बस चलाने में सरकार सफल नहीं हो पाई है। जनता को बेहतर चिकित्सा सुविधा मिले यह हर राज्य की सरकार का दायित्व होता है, लेकिन केजरीवाल इस क्षेत्र में काम कम, स्वप्रचार ज्यादा करते नजर आयें हैं। जिस मोहल्ला क्लिनिक का ढिंढोरा पिटते आम आदमी पार्टी के नेता थकते नहीं हैं, उनके आकड़े केजरीवाल सरकार के दावों की पोल खोल रहें हैं। सच्चाई यह है कि सरकार अभीतक महज सवा सौ के करीब ही मोहल्ला क्लिनिक खोलने में सफल हो पाई है। ऐसे ही महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर केजरीवाल ने लंबे–चौड़े वादे किये थे, किन्तु यह वादे चुनावी सभा तक सिमट कर रह गये। जब भी दिल्ली में सुरक्षा की बात आती है, तो केजरीवाल ‘दिल्ली पुलिस उनके अधीन नहीं है’ बोलकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं। लेकिन, ध्यान देने योग्य बात यह है कि चुनाव के समय केजरीवाल ने बसों में सीसीटीवी कैंमरे लगवाने की बात की थी, पर उनकी सरकार अभी तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठा पाई है। आज भी दिल्ली का युवा वर्ग केजरीवाल फ्री वाईफाई वाले वादे को रटता नजर आता है, लेकिन इस वादे पर भी केजरीवाल सरकार द्वारा कुछ विशेष नहीं किया गया है।
आम आदमी पार्टी स्वराज और भ्रष्टाचार मुक्त भारत का झंडा बुलंद किये हुए चुनाव मैदान में उतरी थी। केजरीवाल पर दिल्ली की जनता ने भरोसा जताते हुए सत्तर विधानसभा सीटों में से 67 सीटें उनकी आम आदमी पार्टी की झोली में डाल दीं। मगर, दिल्ली की जनता ने जिस भरोसे के साथ केजरीवाल को दिल्ली की कमान सौपी थी, आज केजरीवाल अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं के आगे उस भरोसे की तिलांजलि दे चुके हैं। इन दो सालों में आम आदमी पार्टी की सरकार ने काम कम और फिजूल का ड्रामा ज्यादा किया है। मसलन, प्रधानमंत्री की डिग्री पर बेजा हंगामा खड़ा करना हो अथवा आप विधायकों की गिरफ्तारी का मामला हो, केजरीवाल बिना बात केंद्र सरकार पर ऊल-जुलूल आरोप लगाते रहे हैं। चुनाव पूर्व स्वच्छ राजनीति का दावा करने वाले केजरीवाल भ्रष्टाचार, यौन शोषण जैसे गंभीर आरोपों से घिरे अपने विधायकों की गिरफ्तारी के विरोध में उनके साथ पूरी निष्ठा के साथ खड़े नज़र आए। बात यहीं समाप्त नहीं होती, केजरीवाल ने इन विधायकों की गिरफ्तारी की तुलना कभी आपातकाल से की तो, कभी समूचे संघीय ढांचे पर ही सवाल उठा दिए।
उप-राज्यपाल एक संवैधानिक व सम्मानजनक पद होता है, लेकिन इस पद की गरिमा को ठेस पहुंचाने में केजरीवाल ने कोई कसर नहीं छोड़ी। दरअसल, इन दो वर्षों के कार्यकाल में केजरीवाल अपने वादों को पूरा करने के लिए काम करने की बजाय सिर्फ हवा-हवाई मुद्दों को तिल से ताड़ बनाते आयें है। और जब भी उनसे दिल्ली में विकास न होने की बात पूछ दी जाती है, तो वे ‘केंद्र सरकार काम नहीं करने दे रही’ का रटा हुआ मनगढ़ंत पाठ सुना देते हैं। स्पष्ट है कि नाटकीय कारनामे के लिए ख्यातिनाम केजरीवाल अपने इस कार्यकाल में फिजूल के हंगामे में अधिक समय नष्ट किये हैं। केजरीवाल की राजनीतिक पैतरेबाजी के चलते दिल्ली की जनता खुद को ठगा हुआ ही महसूस कर रही है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)