जिस तरह से हाल के दिनों में आम आदमी पार्टी के दफ्तर में कुमार विश्वास ने अपनी सक्रियता बढ़ाई उसके बाद उनपर हमले और तेज हो गए हैं। एक तरफ तो दिल्ली के पूर्व जल मंत्री कपिल मिश्रा हर दिन खुलासों का दावा करते घूम रहे हैं। कभी एसीबी के दफ्तर तो कभी सीबीआई के दफ्तर, ऐसे में पार्टी के वरिष्ठ नेता कुमार विश्वास के खिलाफ मोर्चा खोलकर आम आदमी पार्टी एक और संकट मोल ले रही है।
दिल्ली की आम आदमी पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। पार्टी अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी खोई जमीन को वापस पाने की है। पार्टी के नेता होने की वजह से अरविंद केजरीवाल पर यह जिम्मेदारी है कि वो पार्टी में जारी घमासान पर काबू पाने की कोशिश करें या जिम्मेदार लोगों पर कठोर कार्रवाई करें। लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है, बल्कि इस तरह के संदेश निकल रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल भी पार्टी में जारी कलह के लिए जिम्मेदार हैं।
पार्टी की स्थापना के पहले से अरविंद केजरीवाल के सहयोगी रहे कुमार विश्वास को लेकर आम आदमी पार्टी में जिस तरह से शह और मात का खेल खेला जा रहा है उससे पार्टी को नुकसान ज्यादा है, लाभ कम है। पिछले दिनों कुमार विश्वास को विश्वास में लेने के लिए पार्टी ने उनको राजस्थान में चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी थी। लगा था कि कुमार को पार्टी ने मना लिया है। लेकिन उसके बाद से जिस तरह से कुमार विश्वास पर सियासी हमले हो रहे हैं या उनको गद्दार बतानेवाले पोस्टर लगाए जा रहे हैं, उससे तो यह साफ है कि ‘कुमार’ संकट खत्म नहीं हुआ है।
अरविंद केजरीवाल के खास दिलीप पांडे ने जिस तरह से कुमार विश्वास पर निशाना साधा था, उससे तो यह साफ हो गया था कि पार्टी में कुमार के विरोधियों को पार्टी के ही शीर्ष नेतृत्व से शह मिल रही है। पहले भी जब अमानतुल्ला को पार्टी से निलंबित किया गया था, तब भी यही माना गया था कि उसने भी कुमार पर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के कहने पर ही हमला किया था। बाद में यह साबित भी हुआ जब अमानुतल्ला को पार्टी से निलंबित होने के बावजूद विधानसभा की महत्वपूर्ण कमेटियों का सदस्य बनाया गया।
जिस तरह से हाल के दिनों में आम आदमी पार्टी के दफ्तर में कुमार विश्वास ने अपनी सक्रियता बढ़ाई उसके बाद उनपर हमले और तेज हो गए हैं। एक तरफ तो दिल्ली के पूर्व जल मंत्री कपिल मिश्रा हर दिन खुलासों का दावा करते घूम रहे हैं। कभी एसीबी के दफ्तर तो कभी सीबीआई के दफ्तर, ऐसे में पार्टी के वरिष्ठ नेता कुमार विश्वास के खिलाफ मोर्चा खोलकर आम आदमी पार्टी एक और संकट मोल ले रही है। यह सही है कि कुमार विश्वास कोई जमीनी नेता नहीं है, दिल्ली से लेकर देशभर में उनका कोई जनाधार नहीं है; लेकिन उन्होंने पार्टी को खड़ा करने में अरविंद के साथ कंधा से कंधा मिलाकर काम किया है। जितनी और जिस तरह की क्षमता थी, उससे पार्टी को समर्थन दिया।
एक जमाना था, जब पार्टी में कुमार और मनीष की जोड़ी की तूती बोलती थी। कहा भी जाता था कि दिल्ली में हापुड़-पिलखुवा के नेताओं की चल रही है। लेकिन कालांतर में क्या हुआ इसके बारे में खुलासा हो नहीं पाया है। मीडिया में अगर तस्वीरों का विश्लेषण करें या फिर बयानों को जोड़कर देखें तो कुमार और मनीष में एक तरह का खिंचाव सा दिखता है।
मैंने पहले भी लिखा था कि आम आदमी पार्टी में नंबर दो की लड़ाई चल रही है। उस वक्त मेरे इस निष्कर्ष पर पहुंचने की अपनी अलग वजह थी जो मैंने इस स्तंभ के पाठकों के सामने रखे थे। उन वजहों के अलावा अब कुछ अन्य वजह भी इसमें जुड़ गए हैं। कुछ लोगों का मानना है कि कुमार विश्वास लगातार बीजेपी से संपर्क में हैं और वो आम आदमी पार्टी की सरकार को गिराने के लिए षडयंत्र कर रहे हैं। एकाध बेवसाइट ने इस तरह की खबरें भी छापी थीं।
अब यहां सवाल उठता है कि बीजेपी क्यों दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार को गिराना चाहेगी। आम आदमी पार्टी की सरकार खुद ही हर दिन नए संकट मोल ले रही है । उसके करीब दो दर्जन विधायकों का मसला चुनाव आयोग के समक्ष है, जहां सुनवाई पूरी हो चुकी है और कभी भी पक्ष या विपक्ष में फैसला आ सकता है। ऐसे माहौल में बीजेपी अपने सर पर बदनामी क् यों लेना चाहेगी।
अब से छह महीने बाद दिल्ली की तीन राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव होना है। कांग्रेस के तीनों मौजूदा सदस्य परवेज हाशमी, डॉ कर्ण सिंह और जनार्दन द्विवेदी का कार्यकाल खत्म हो रहा है। अनुमान है कि अगर सबकुछ ठीक रहा तो इन तीनों सीटों पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार चुनाव जीतेंगे। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राज्यसभा की इन तीन सीटों को लेकर ही पार्टी में अंदरखाने महात्वाकांक्षा की जंग जारी है। पार्टी के एक धड़े के नेताओं को लगता है कि कुमार विश्वास जितना कुछ भी कर रहे हैं, वो सब राज्यसभा की सीट के लिए कर रहे हैं, लिहाजा उनको पार्टी से निकलवाने की सियासत चल रही है।
कुमार विश्वास महात्वाकांक्षी हैं। इसमें बुराई भी नहीं है, हर किसी को अपनी तरह से महात्वाकांक्षा पालने का हक है। कुमार के अलावा अन्य कई नेताओं की नजर भी राज्यसभा की सीट पर है। इस वजह से पार्टी में अंत:पुर वाली सियासत चल रही है। हर कोई अपनी गोटी सेट करने में लगा है, पार्टी और कार्यकर्ता की चिंता नेपथ्य में चली गई है। इसमें संभव है कि कुमार विश्वास भी लगे हों। और इन तीन सीटों की खींचतान से पार्टी का नुकसान हो रहा है और इसके नेतृत्व पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। केजरीवाल को इन सवालों से मुठभेड़ करना होगा, अन्यथा वो इतिहास के बियाबान में खो जाएंगें।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)