पुष्कर अवस्थी
दुर्दांत आतंकी और हिजबुल का कमांडर बुरहान की मिजाज पुर्सी में 23 24 25 ……30 31 32 की संख्या वाली जो गिनती चल रही है ये सिर्फ गिनती नहीं है, बल्कि यह कश्मीर से गए हुए वो कुछ लोग हैं, जिन्हे आतंकी के समर्थन करने के एवज में भारतीय सेना ने उनके सही ठिकाने पर भेजा है। मेरा ख्याल है की इनकी संख्या अभी और बढ़ेगी और फिर एक खतरनाक सन्नाटे की तरह रुक जाएगी। असल में, बुरहान के जनाजे में शुरआती भीड़ गयी थी वो गलती से चली गयी थी, उसकी संख्या को लेकर बैचैन होने के कोई जरुरत नहीं है। कश्मीर में पिछले दो दशकों से दस्तूर रहा है कि आतंकवादी के जनाजे निकलते थे, उसमे शामिल भीड़, भारत के विरुद्ध नारेबाजी करती थी और फिर सुरक्षा में लग, पुलिस और सेना के जवानों को पत्थरों से मार-मार कर अपने होने का एहसास कराते थे। ऐसा इसलिए होता था क्योंकि पहले भारतीय सेना और वहां की पुलिस पर प्रतिक्रिया स्वरूप किसी भी तरह की दंडात्मक कार्यवाही पर पाबन्दी थी, लिहाजा पुलिस और सेना सुरक्षात्मक नीति अपनाते हुए पत्थर खा लेती थी और मौका ऐ वारदात से सुरक्षित निकल जाने में ही बेहतरी समझती थी। सही माने में देखा जाये तो कश्मीर के माहौल को राजनैतिक अपंगता और आतंकवादी अराजकता से उनके गठजोड़ ने इस हाल में पहुंचा दिया है जहाँ अलगाववादियों को पत्थर मारने की और पुलिस एवं सेना को पत्थर खाने की एक आदत सी पड़ गयी थी।
कश्मीर का अलगावादी नेतृत्व अब अपने वजूद को बचाने के लिए, पाकिस्तान, ISIS की मदद से, फिर इकट्ठा हो कर बड़ी आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देंगे और शेष भारत में उनके समर्थक सरकार पर शांति, भाईचारा और मानवतावाद के नाम पर दबाव बनाने का प्रयास करेंगे। यह लोग अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी भारत को निरंकुश दिखाने का प्रयास करेंगे। सीमापार से ये आतंकवाद को बढ़ावा देने की साजिश रचेंगे और सीमा के अन्दर इनके समर्थन में तथाकथित बुद्धिजीवी, पत्रकार मानावाधिकार के नाम पर देश में इनके लिए माहौल बनाने का काम करेंगे। कुछ मीडिया समूह एवं कुछ लेखक-पत्रकार इस काम में जुट गये हैं।
चूँकि शुरुआत से माहौल ही ऐसा था कि जब किसी आतंकी का जनाजा उठा, तो अलगाववादी भीड़ ने अपनी आदत के अनुसार भारत को गालियां देने और पुलिस व सेना पर पत्थर मारने का अपना पुराना कार्यक्रम फिर शुरू कर दिया। उनको रुकने की चेतावनी भी दी गयी लेकिन उन्होंने सुरक्षा कर्मियों को घेरकर मारने का अपना कार्यक्रम बदस्तूर जारी रखा। उपद्रवियों को इसका बात का जरा भान नहीं था कि अब दिल्ली का निजाम बदल चुका है। यहीं पर सेना की चेतावनी को अनसुना कर देने में कश्मीरी उपद्रवियों से चूक हो गयी। चूँकि उन्हें बदले भारतीय नेतृत्व और दिल्ली के बदले मिजाज की कोई खोज खबर ही नहीं थी। शुरू में जब गोली चली तो भीड़ को लगा कि सेना डरी हुयी है और बचाव में हवाई फायर कर रही है। उससे उनकी और हिम्मत खुल गयी और वो जोर शोर से सामने आ गये और सेना पर पत्थरों की बारिश के बीच हैंड ग्रीनेड फेंकने लगे।
जैसे ही पत्थरो के बीच पहला हैंड ग्रीनेड सेना के बीच गिरा और वह फूटा वैसे ही सेना की बन्दूको का मुंह जमीन और हवा से हटकर सीधे पत्थर और हैंडग्रीनेड चलाती आतंकवादियों का समर्थन करती भीड़ की तरफ हो गया और फिर गिनती शुरू हो गयी। शुरू में जब दो चार गिरे तब भी भीड़ अपने उन्माद में यह नहीं समझ पायी कि यह भारतीय सेना उपद्रवियों पर गोली नहीं चली रही है बल्कि वो आतंकवाद के समर्थन में खड़े हर शख्स को आतंकवादी समझ कर गोली चला रही है। इसके बाद भगदड़ मच गयी और सेना एवं पुलिस ने उनको बिखर जाने का पूरा मौक़ा दिया ताकि अलगाववादियों के समर्थकों को यह मौका दे की वह यह समझ सके की दिल्ली बदल गयी है।
अभी कश्मीर की घाटी में अलगाववादी ताकतें सकते में है। उनके साथ शेष भारत और पाकिस्तान में उनके समर्थक भी सकते में है। दोनों ही तरफ के अलगावादी एवं आतंकवादी समर्थक, बदले हुए हालात में, उसका फायदा उठने के लिए अपनी रणनीति में मूलभूत बदलाव लाने की कोशिश में जुटे हुए है और इस बीच तब तक, वह बुरहान को एक ‘नायक’ के रूप में बेचने की जद्दोजहत में लगे रहेंगे। यह कश्मीर का अलगावादी नेतृत्व अब अपने वजूद को बचाने के लिए, पाकिस्तान, ISIS की मदद से, फिर इकट्ठा हो कर बड़ी आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देंगे और शेष भारत में उनके समर्थक सरकार पर शांति, भाईचारा और मानवतावाद के नाम पर दबाव बनाने का प्रयास करेंगे। यह लोग अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी भारत को निरंकुश दिखाने का प्रयास करेंगे। सीमापार से ये आतंकवाद को बढ़ावा देने की साजिश रचेंगे और सीमा के अन्दर इनके समर्थन में तथाकथित बुद्धिजीवी, पत्रकार मानावाधिकार के नाम पर देश में इनके लिए माहौल बनाने का काम करेंगे। कुछ मीडिया समूह एवं कुछ लेखक-पत्रकार इस काम में जुट गये हैं।
यह सब तो होगा ही लेकिन उसके साथ वह भी होगा जो भारत में पिछले 69 साल से नहीं हुआ है। भारत एक हाथ से अलगावादियों को पुचकारेगा और दूसरे हाथ से चुन चुन कर उनके समर्थन की आवाजों को आतंकवादियों की गोली समझ कर ढेर करता रहेगा। मोदी नेतृत्व की सरकार एक सत्य को स्वीकार कर चुकी है कि भारत में सूडो सेक्युलर और कट्टर इस्लामियों की कुंजी कश्मीर में है, लिहाजा वहीँ से उनको देश तोड़ने की खुराक भी मिलती है जिसे बुद्धजीविता, अभिव्यक्ति की आज़ादी और मानवतावाद के नाम पर देश और दुनिया में बेचा जाता है। मोदी जी अच्छी तरह से जानते है कि यदि शेष भारत में सूडो सेकुलरो और कट्टर इस्लामियों को मुर्दा करना है तो कश्मीर को शांत करना पड़ेगा और उसके लिए वहां कुछ कठोर कार्रवाई भी करनी पड़े तो यह कीमत देने को भी तैयार है। फिलहाल तो इस सरकार के रहते छद्म सेक्युलरों, अलगाववादियों, आतंकियों के बुरे दिन आ गये हैं।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)