केन्द्र सरकार की विकासवादी सोच का ही नतीजा है कि विगत कई दशक से बेरोजगारी, बुनियादी सुविधाओं और राजनीतिक दुराग्रह की मार झेल रहे पूर्वांचल को वर्षों से बंद पड़े खाद कारखाना और एम्स के रूप में उम्मीदों की एक नई उपहार मिलने वाला है। इस योजना का सीधा लाभ पूर्वांचल के दस जिलों को होगा। विगत कई सालों से दिमागी बुखार के कहर को झेलता पूर्वांचल के लिए एम्स उम्मीद की एक नयी किरण दिख रही है। वहीं फार्टिलाइजर कारखाना के पुनः चालू होने से बहुत हद तक बेरोजगारी की समस्या समाप्त हो जाएगी। हालांकि यह बात 23 जनवरी 2014 को ही साफ हो गयी थी जब भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने गोरखपुर में आयोजित सभा में इस मुद्दे को उठाया था। उस समय पूर्वांचल के लोगों को आशा की एक नयी किरण दिखी थी।
केन्द्र में भाजपा की सरकार बनते ही इस पर पहल भी शुरू हो गया केन्द्र सरकार द्वारा यहां एम्स और खाद करखाना के लिए बजट भी घोषित कर दिया गया था लेकिन राज्य सरकार ने इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी और योजना को लटकाए रही। लेकिन गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ का प्रसाय और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दृढ़ इच्छा शक्ति के बदौलत आज यह संभव हुआ है।
राज्य सरकार की उदासीनता से लगातार बंद हो रही औद्योगिक इकाइयां
पूर्वांचल उत्तर प्रदेश का सबसे ज्यादा जनसंख्या धनत्व वाला क्षेत्र है। यहां की धरती कृषि के नजरिए से जितनी उर्वर थी राजनीतिक लिहाज से भी उतना ही। अकेले पूर्वांचल से 11 मुख्यमंत्री बने हैं उत्तर प्रदेश में। लेकिन इससे पूर्वांचल के तक़दीर पर कोई असर नहीं पड़ा और यहां लगतार बेरोजगारों की संख्या बढ़ती गयी। कभी अपनी सिल्क की साड़ियों के लिए मशहूर मऊ जिले को कभी ‘पूर्वांचल का मैनचेस्टर’ कहकर पुकारा जाता था, लेकिन आज यह जिला बेरोगारी और गरीबी का दंश झेलने को विवश है। कुछ ऐसी ही स्थिति है मऊ के पड़ोस में बसने वाले आजमगढ़ की बदहाली का मंजर यहां भी दिल दहलाने वाले है। परदहा इलाके में 85 एकड़ में फैली प्रदेश की सबसे बड़ी कताई मिल बंद पड़ी है। किसी जमाने में यहां के बने धागों की देश-विदेश में मांग थी। इस कारखाने से जिले के 5,000 परिवारों का पेट पलता था, लेकिन जब 10 साल पहले यह मिल बंद हुई तो हजारों बेरोजगार हो गए। यहीं से दो किलोमीटर पर बंद पड़ी स्वदेशी काटन मिल का परिसर भी अब खंडहर हो चुका है। बलिया के रसड़ा क्षेत्र के माधवपुर गांव में मौजूद चीनी मिल को सरकार ने जनवरी, 2013 में बंद कर दिया। 500 से अधिक कर्मचारी एक झटके में बेरोजगार हो गए। सरकारी उदासीनता के कारण विगत दस साल में अकेले वाराणसी में पिछले 10 साल के दौरान औद्योगिक क्षेत्रों में चल रही 60 छोटी-बड़ी इकाइयां बंद हो गईं। इसी दौरान गोरखपुर में 80, बलिया में 25, भदोही में 75 और मिर्जापुर में 65, चंदौली में 60 छोटे-बड़े उद्योगों ने दम तोड़ दिया।और यह सब हुआ केवल सरकारी तंत्र की अनदेखी और सत्ता पक्ष की उदासीनता से।लेकिन सपूंर्ण उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पूर्वांचल का मिजाज भी बदल रहा है यहां के लोग सत्ता की रोटेशन प्रणाली से तंग आ चुके हैं। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि पूर्वांचल समेत पूरे यूपी में सपा और बसपा के दिन पूरे हो चुके हैं बस उनकी ताबूत में अंतिम कील लगनी बाकी है।