वादे करना और उसे अगले चुनाव तक भुला देने की कला में कांग्रेस माहिर है। इसी का नतीजा है कि पुल हो या सड़क, साक्षरता कार्यक्रम हो या उच्च शिक्षा, पेयजल हो या सिंचाई सभी मामलों में देश पिछड़ता गया। हां, इस दौरान चुनावी वादों को पूरा करने वाली योजनाओं के जरिए भ्रष्ट नेताओं-नौकरशाहों-ठेकेदारों की कोठियां जरूर खड़ी हो गईं।
गंगा जल लेकर कर्जमाफी का वादा कर सत्ता में आई कांग्रेस पार्टी का असली चाल-चरित्र उजागर होने लगा है। किसानों की कर्जमाफी के लक्षण तो नहीं दिख रहे हैं, उल्टे उन्हें तीन-तीन दिन से यूरिया के लिए लाइन में खड़ा रहना पड़ रहा है। कांग्रेस के सत्ता में आते ही मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में जमाखोर व बिचौलिए सक्रिय हो गए हैं। जो यूरिया भाजपा के शासन काल में किसानों को सरलता से उपलब्ध थी उसी यूरिया के लिए अब किसान लाठी खा रहे हैं।
किसानों के लिए यूरिया की किल्लत के बीच ठेकेदारों के गोदामों से हजारों कट्टे खाद बरामद हो रही है। अपनी कमी छिपाने के लिए जब कांग्रेसी सरकारों ने केंद्र सरकार पर बदले की भावना से काम करने का आरोप लगाया तब केंद्र सरकार ने आंकड़े जारी कर स्पष्ट कर दिया है कि तीनों राज्यों में मांग की तुलना में ज्यादा यूरिया भेजी जा चुकी है। स्पष्ट है, यूरिया का स्टॉक भ्रष्टाचारियों के हाथ लग चुका है।
कांग्रेस के लिए सत्ता ऑक्सीजन का काम करती है। जिस प्रकार मनुष्य ऑक्सीजन के बिना जीवित नहीं रह सकता उसी प्रकार कांग्रेस सत्ता के बिना जी नहीं सकती। यही कारण है कि सत्ता के लिए कांग्रेस किसी भी हद तक जा सकती है। कर्ज माफी के वादे के बल पर तीन राज्यों में जीत हासिल करने वाली कांग्रेस अब 2019 के लोक सभा चुनाव को कर्ज माफी के वादे पर लड़ने का एलान कर चुकी है लेकिन वही कांग्रेस यह नहीं बता रही है कि पहले जिन राज्यों में किसानों की कर्जमाफी का वादा किया गया था उस पर कितना अमल किया गया। यहां पंजाब और कर्नाटक का उदाहरण प्रासंगिक होगा।
डेढ़ साल पहले कर्ज माफी के बड़े-बड़े वादे कर पंजाब में सत्ता में आई कांग्रेस पार्टी अब तक अपने चुनावी वादे पर अमल नहीं कर पाई है। पंजाब में किसानों को कर्ज के बोझ से मुक्ति दिलाने के लिए 90,000 करोड़ रूपये की जरूरत है जबकि पंजाब सरकार ने बजट में महज तीन हजार करोड़ रूपये का प्रावधान किया है। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि पंजाब में अब तक तीन हजार करोड़ रूपये का भी कर्ज माफ नहीं किया गया है। कमोबेश यही हालत कर्नाटक की भी है।
कर्नाटक में सिद्धारमैय्या के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार ने कर्जमाफी का ऐलान किया था लेकिन राज्य सरकार इसे पूरा कर पाती इस बीच विधानसभा चुनावों का ऐलान हो गया। चुनाव प्रचार के दौरान जनता दल (एस) ने बड़े जोर-शोर से सिद्धारमैय्या के शासनकाल में हुई किसानों की आत्महत्या का मुद्दा उठाया और वादा किया कि उसकी सरकार बनने के 24 घंटे के भीतर किसानों का कर्ज माफ कर दिया जाएगा। लेकिन एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व में जनता दल (एस) सरकार गठन के छह माह बाद भी कर्जमाफी लागू नहीं कर पाई है। कर्नाटक के सहकारिता मंत्री के मुताबिक पांच जुलाई 2018 को मुख्यमंत्री द्वारा घोषित की गई 44000 करोड़ रूपये की कर्ज माफी का लाभ केवल 800 किसानों को मिल सका है।
बढ़ते किसान असंतोष के बीच सरकार ने किसानों को 52 शर्तों के साथ आवेदन भरने को कहा है ताकि अधिकांश किसान कर्जमाफी के दायरे से बाहर हो जाएं। इसी का नतीजा है कि पिछले छह महीने में कर्नाटक में चार सौ से अधिक किसान कर्ज बोझ के कारण आत्महत्या कर चुके हैं। स्पष्ट है, शपथ लेते ही किसानों के कर्जमाफी संबंधी आदेश जारी करने वाली कांग्रेसी सरकारों की कथनी और करनी में जमीन आसमान का अंतर है। कांग्रेस के लिए यह कोई नई बात नहीं है। यह उसका असली चरित्र है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)