भारतीय सेना देश के दुश्मनों को माकूल जवाब देने की क्षमता से हमेशा युक्त रही है, मगर पिछली संप्रग सरकार ने कभी सेना को पूरी तरह से खुली छूट नहीं दी। लेकिन, मोदी सरकार के आने के बाद से सेना के हाथ देश के दुश्मनों को जवाब देने के लिए खुल गए हैं। इसका उदाहरण हम म्यांमार के सैन्य अभियान से लेकर पाकिस्तान पर हुई दोनों सर्जिकल स्ट्राईकों तथा कश्मीरी आतंकियों के सफाए तक में देख सकते हैं। निस्संदेह इन सब वीरताओ का श्रेय सेना को जाता है, मगर दृढ़ इच्छाशक्ति परिचय देने के लिए मोदी सरकार भी सराहना की पात्र है।
जम्मू-कश्मीर में इन दिनों भारतीय सेना आतंकियों के खिलाफ अत्यंत कठोर रुख अपनाए हुए है। सरकार की तरफ से पूरी छूट मिलने के बाद जवानों के हौसले बुलंद हैं और वे आतंकियों के लिए कहर की तरह साबित होते नज़र आ रहे। जवानों पर जब-तब कायराना हमले कर बिल में दुबक जाने वाले आतंकियों को खोज-खोज कर ख़त्म करने की कारगर रणनीति सेना ने अपनाई हुई है।
इसी रणनीति पर चलते हुए पिछले दिनों हमारे जवानों ने चौबीस घंटे के अंदर दस आतंकियों को ढेर कर दिया, जिनमें कि हिजबुल मुजाहिद्दीन का स्थानीय कमांडर सबज़ार अहमद बट भी शामिल था। इन दसों आतंकियों को बीते दिनों अलग-अलग जगहों पर ख़त्म किया गया। छः आतंकियों को जवानों ने जंगल के बीच घेरकर मारा तो जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में तीन आतंकियों ने सेना के जवानों पर हमला बोला और मारे गए। इसके बाद हिजबुल कमांडर सबज़ार अहमद भट्ट को भी मार गिराया गया।
गौरतलब है कि बुरहान वानी के मारे जाने के बाद सबज़ार को हिजबुल का कमांडर बनाया गया था। ऐसे में, सबजार का मारा जाना सेना के लिए आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक बड़ी सफलता माना जा रहा है। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि जम्मू-कश्मीर में भारतीय सेना आतंकियों की नकेल कसने के लिए पूरी सख्ती के मूड में नज़र आ रही है।
इसके अलावा पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद और पाकिस्तानी सेना को जवाब देने के मामले में भी हमारे जवानों ने अद्भुत क्षमता का प्रदर्शन किया है। नौशेरा में अत्याधुनिक हथियारों के जरिये दूर से ही जिस तरह से हमारे जवानों ने पाकिस्तानी चौकियों को तबाह किया है, वो काबिले तारीफ़ है।
ऊपर-ऊपर पाकिस्तान भले ऐसे किसी हमले को न स्वीकारे, मगर अंदर ही अंदर तो ये उसके लिए बड़ी चेतावनी की तरह साबित हुआ होगा। पिछली सर्जिकल स्ट्राइक जवानों ने उसकी सरहद में घुसकर की थी; अबकी अपनी सरहद में रहकर ही उसे हिला दिया है। साथ ही, इस अभियान का वीडियो जारी करके जवानों ने पिछली सर्जिकल स्ट्राइक के समय सबूत मांगने वाले देश के विपक्षी दलों की बोलती भी बंद कर दी है।
गौरतलब है कि हाल के दिनों में जम्मू-कश्मीर में सेना के जवानों पर पाकिस्तानी सेना और पाक प्रेरित आतंकियों की तरफ से हमला काफी बढ़ता दिख रहा था। आए दिन जहाँ एक तरफ पाकिस्तानी सेना संघर्ष विराम का उल्लंघन करती तो दूसरी तरफ इसकी आड़ में आतंकी जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ कर आतंक का तांडव मचाते। इस स्थिति के मद्देनज़र अब जवानों ने पूरी योजना के साथ इन दोनों मोर्चों पर ही प्रहार किया है। पाकिस्तानी चौकियों को ध्वस्त कर जहाँ पाकिस्तानी सेना को चेतावनी दी है, वहीं आतंकियों का सफाया करके उन्हें भी कठोर सन्देश दिया है।
दरअसल हमारी सेना इस तरह की क्षमता से युक्त हमेशा रही है, मगर संप्रग सरकार ने कभी सेना को पूरी तरह से खुली छूट नहीं दी। इस कारण कश्मीर के अंदरूनी आतंकियों से लेकर पाकिस्तान की नापाकियों तक का मुंहतोड़ जवाब हमारे जवान नहीं दे पाते थे। मगर, मोदी सरकार के आने के बाद कम से कम इतना बदलाव तो अवश्य हुआ है कि अब सेना के हाथ देश के दुश्मनों को जवाब देने के लिए खुल गए हैं।
इसका उदाहरण हम म्यांमार के सैन्य अभियान से लेकर पाकिस्तान पर हुई दोनों सर्जिकल स्ट्राईकों तथा कश्मीरी आतंकियों के सफाए तक में देख सकते हैं। निस्संदेह इन सब वीरताओ का श्रेय सेना को जाता है, मगर दृढ़ इच्छाशक्ति परिचय देने के लिए मोदी सरकार भी सराहना की पात्र है।
आतंकियों के साथ-साथ सरकार की सख्ती कश्मीर के अलगाववादी नेताओं पर भी है। उनको मिलने वाली सुरक्षा और सुविधाओं आदि में तो सरकार गत वर्ष ही कटौती की पहल कर चुकी है; और अब एक स्टिंग में इन अलगाववादी नेताओं के पाकिस्तान से संबंधों के उजागर होने के बाद इनपर और शिकंजा कसता जा रहा है।
एक टीवी चैनल द्वारा किए गए इस स्टिंग में हुर्रियत कांफ्रेंस के एक अलगाववादी नेता को यह कहते हुए देखा और सुना गया कि उन्हें कश्मीर में अशांति फैलाने के लिए पाकिस्तान से हवाला के जरिये पैसे भेजे जाते हैं। यह अलगाववादी नेता यह भी स्वीकारता नज़र आया कि वे पत्थरबाजी से लेकर आगजनी तक तमाम तरीकों के द्वारा कश्मीर में अशांति फैलाते हैं। इस स्टिंग के बाद तत्काल राष्ट्रीय जांच एजेंसी द्वारा नईम खान समेत कई अलगाववादी नेताओं की जांच-पड़ताल शुरू कर दी गयी है।
स्पष्ट है कि सरकार और सेना द्वारा कश्मीर के पाक प्रेरित आतंकियों से लेकर अलगाववादियों तक प्रति जो उपर्युक्त नीतियाँ अपनाई जा रही हैं, आज के समय में जम्मू-कश्मीर में शांति और प्रगति का वातावरण स्थापित करने के लिए फिलहाल यही उचित मार्ग है।
अगर पिछली सरकारों द्वारा पहले ही जम्मू-कश्मीर के अलगाववादियों समेत पाक प्रेरित आतंकियों के प्रति इस प्रकार के कठोर रुख का परिचय दिया गया होता तो आज स्थिति इतनी खराब न हुई होती। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण ये है कि आज़ादी के बाद ज्यादातर समय देश की सत्ता पर काबिज़ रही कांग्रेस सरकारों ने जम्मू-कश्मीर को अपनी तुष्टिकरण की राजनीति के एक औजार की तरह ही इस्तेमाल किया और कठोर रुख अपनाने से बचती रहीं। सेना के हाथ बांधे रखीं। यही कारण है कि आज कश्मीर के हालात उथल-पुथल भरे हैं।
बहरहाल, मौजूदा सरकार ने जम्मू-कश्मीर को नुकसान पहुंचाने वाले तत्वों पर अंकुश लगाने के लिए कठोर रुख अपना लिया है तथा सेना को खुली छूट दे दी है। उम्मीद की जा सकती है कि सरकार और सेना के इन प्रयासों से जम्मू-कश्मीर के हालात सुधरेंगे तथा धरती की जन्नत कहा जाने वाला राज्य विकास की राह पर चल सकेगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)