पटेल के बाद अब मोदी ने उठाया सोमनाथ मन्दिर को सजाने का बीड़ा

हिंदुओं की आस्था के प्रमुख मानबिंदु सोमनाथ मंदिर को स्वर्ण से सुसज्जित किया जा रहा है। अब तक 105 किलो सोने से मंदिर के अंदरूनी हिस्से और शिखर को सजाया जा चुका है। यह सोना एक भक्त ने दान में दिया है। सरकार ने इस काम में तेजी लाने के निर्देश दिए हैं। दरअसल, सरकार इस दीपावली तक सोमनाथ मंदिर को सोने से जगमग कर देना चाहती है। ध्यान देने वाली बात यह है कि सोमनाथ को स्वर्णमयी करने के इस महत्त्वपूर्ण कार्य पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विशेष नजर है। बीते दिनों दिल्ली में प्रधानमंत्री निवास पर नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट की बैठक हुई है। मंदिर को भव्यता प्रधान करने की इस परियोजना में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दिलचस्पी से महत्त्वपूर्ण संकेत समाज में जा रहे हैं। एक, भव्य मंदिर की सौगात देकर गुजरात के लोगों को भरोसा दिलाना चाहते हैं कि गुजरात अब भी उनकी प्राथमिकताओं में है। दो, उन्हें हिंदू हितों की चिंता है। तीन, हिंदुओं के आस्था स्थलों को प्रतिष्ठा दिलाने के अपने संकल्प पर भारतीय जनता पार्टी कायम है।

मोदी सरकार की कार्यप्रणाली से साफ़ दिखता है कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिंदू के साथ भेदभाव नहीं होगा। नरेन्द्र मोदी की इस राजनीति का संदेश न केवल समाज में जा रहा है, बल्कि विरोधी राजनीतिक दलों पर भी स्पष्टतौर पर असर दिख रहा है। माकपा मार्क्स द्वारा की गई धर्म की परिभाषा (धर्म अफीम) पर सिर के बल खड़ी होने को तैयार है। प्रकाश करात ने बीते वर्ष केरल में कहा था कि मार्क्स के कहने का आशय यह नहीं था कि धर्म अफीम है। वहीं, कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गाँधी रामभक्त श्री हुनमान के दर्शन कर रहे हैं। जबकि किशोर अवस्था से गुजर रही आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल पंजाब में जाकर कहते हैं कि वह जीते तो अमृतसर को पवित्र शहर का दर्जा देंगे। यह देखकर यकीनन यह कहा जा सकता है कि नरेन्द्र मोदी ने हिंदुओं की भावनाओं का सम्मान करना सबको सिखा दिया है।

इसका एक संदेश यह भी हो सकता है कि भविष्य में अवसर आने पर राममंदिर का निर्माण भी इसी भव्यता के साथ किया जाएगा। यह काम कोई और नहीं कर सकता। इसका सबूत यह है कि पिछले वर्षों में सोमनाथ मंदिर को भव्य रूप प्रदान करने की पहल किसी ने नहीं की। यदि लौहपुरुष सरदार पटेल न होते तब यह भी संभव था कि सोमनाथ मंदिर का निर्माण ही नहीं होता, क्योंकि सेकुलरवाद किसी भी सूरत में मंदिर निर्माण की इजाजत देने के लिए तैयार नहीं था। हम सब जानते हैं कि 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे पहले ज्योतिर्लिंग सोमनाथ पर आक्रांताओं ने कई बार चोट की। सोना-चाँदी लूटा। मंदिर के पुजारियों और भक्तों की हत्याएँ कीं। मंदिर को ध्वस्त किया। ऐतिहासिक प्रमाण बताते हैं कि सोमनाथ मंदिर को 17 बार नष्ट किया गया। लेकिन, हर बार हिंदू आस्था के इस प्रतीक का पुनर्निमाण करा दिया गया। इस इतिहास के कारण सोमनाथ मंदिर के प्रति हिंदू समाज की विशेष भावनाएँ जुड़ी हैं। उल्लेखनीय है कि आजाद भारत में सोमनाथ के पुनर्निर्माण के लिए हिंदू समाज आज तक प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल का आभार मानता है। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के विरोध के बाद भी हिंदुओं की आस्था का मान बढ़ाया था। अब सोमनाथ मंदिर को सोने से सजाकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वर्णिम इतिहास लौटाकर हिंदुओं के दिल में गहरी जगह बनाने का प्रयास कर रहे हैं।

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            प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की राजनीति की विशेषता है कि वह प्रतीकों के जरिए समाज को संदेश देना जानते हैं। यही कारण है कि वह गुजरात में सरदार वल्लभ भाई पटेल की विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा का निर्माण करा रहे हैं। दिल्ली में जिस मकान में भारतरत्न डॉ. भीमराव आंबेडकर रहते थे, वहाँ 100 करोड़ रुपये की लागत से भव्य स्मारक बना रहे हैं। मोदी अपने सबसे महत्त्वपूर्ण स्वच्छता अभियान को महात्मा गांधी को समर्पित कर देते हैं। नेताजी सुभाषचंद्र बोस के दस्तावेजों को डिजीटल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध करा देते हैं। जिन स्वतंत्रतासेनानियों को तीन-चार नामों की चमक के कारण हम भूल गए थे, उन्हें याद करने के लिए ‘जरा याद करो कुर्बानी’ का नारा देते हैं। उनकी राजनीतिक यात्रा पर नजर घुमाने पर ध्यान आता है कि उन्होंने राजनीति का दृश्य ही बदल दिया है। अब तक राजनेता संप्रदाय विशेष के साथ दिखने की होड़ किया करते थे, उन्होंने कभी भी हिंदू भावनाओं की चिंता नहीं की। जबकि नरेन्द्र मोदी ने हिंदू समाज के प्रतीकों को उभारा है। नरेन्द्र भाई मोदी अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए विकास का एजेंडा सामने रखते हैं, लेकिन साथ में अपनी सांस्कृतिक लगाव वाली चमक को भी बनाए रखते हैं।

नरेन्द्र मोदी गंगा स्नान करते हैं और गंगा आरती में शामिल भी होते हैं। लेकिन, यह सब करते हुए, उन्होंने कभी भी दूसरे पंथ का अनादर नहीं किया। किसी संप्रदाय को अपने धर्म से कमतर नहीं बताया। यानी वह साफ संकेत देते हैं कि सबको साथ लेकर चलेंगे, सबका सम्मान करेंगे, लेकिन अपनी आस्थाओं से नहीं डिगेंगे। उनकी प्रतीकों की राजनीति स्पष्ट कहती है कि मोदी के शासनकाल में हिंदू समाज की अनदेखी नहीं होगी। उसे दोयम दर्जे का नहीं समझा जाएगा। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिंदू के साथ भेदभाव नहीं होगा। नरेन्द्र मोदी की इस राजनीति का संदेश न केवल समाज में जा रहा है, बल्कि विरोधी राजनीतिक दलों पर भी स्पष्टतौर पर असर दिख रहा है। माकपा मार्क्स द्वारा की गई धर्म की परिभाषा (धर्म अफीम) पर सिर के बल खड़ी होने को तैयार है। प्रकाश करात ने बीते वर्ष केरल में कहा था कि मार्क्स के कहने का आशय यह नहीं था कि धर्म अफीम है। वहीं, कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गाँधी रामभक्त श्री हुनमान के दर्शन कर रहे हैं। जबकि किशोर अवस्था से गुजर रही आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल पंजाब में जाकर कहते हैं कि वह जीते तो अमृतसर को पवित्र शहर का दर्जा देंगे। यह देखकर यकीनन यह कहा जा सकता है कि नरेन्द्र मोदी ने हिंदुओं की भावनाओं का सम्मान करना सबको सिखा दिया है।

लेखक माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।