महात्मा गांधी की हत्या के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जिम्मेदार ठहराने के अपने बयान पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अपनी स्थिति तय नहीं कर पा रहे हैं। एक तरफ, सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में राहुल गांधी ने दावा किया है कि उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को एक संगठन के तौर पर कभी भी जिम्मेदार नहीं बताया है। उन्होंने संघ से जुड़े कुछ लोगों पर महात्मा गांधी की हत्या करने का आरोप लगाया था। वहीं दूसरी तरफ, न्यायालय के बाहर वह गर्जन-तर्जन कर रहे हैं कि संघ को लेकर दिए बयान पर वह कायम हैं और संघ की विचारधारा के खिलाफ उनकी लड़ाई जारी रहेगी। राहुल गांधी को समझना चाहिए कि विचारधारा की लड़ाई लडऩा अच्छा माना जा सकता है, लेकिन गलत तथ्यों के आधार पर एक सम्मानित संगठन को बदनाम करना कतई उचित नहीं है। इसे राजनीतिक अपरिपक्वता ही कहा जाएगा कि पारदर्शिता के इस जमाने में वह न्यायालय में कुछ हलफनामा पेश करते हैं और न्यायालय से बाहर कुछ और बयानबाजी करते हैं। जनता उस व्यक्ति को संदेह की दृष्टि से देखती है, जिसकी कथनी में बार-बार अंतर दिखाई देता है। राहुल गांधी यदि यह सोच रहे हैं कि जनता को भ्रमित किया जा सकता है, तब वह बहुत बड़ी गलतफहमी का शिकार हैं। संघ के लोग भी संचार माध्यमों का उपयोग करने लगे हैं, इसलिए संघ के खिलाफ किसी झूठ को गढऩा अब पहले की तरह आसान नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में दिए माफीनामे जैसा हलफनामा प्रस्तुत करते समय राहुल गांधी को इस बात का अंदाजा नहीं रहा होगा कि समूचे देश में तत्काल उनके ‘यू-टर्न’ की खबर फैल जाएगी। इस ‘यू-टर्न’ को लेकर बने माहौल ने ही उन्हें फिर से संघ के खिलाफ बोलने के लिए मजबूर कर दिया। लेकिन, यहाँ भी राहुल गांधी गलत हैं। न जाने उन्हें क्यों लगता है कि उनका राजनीतिक करियर संघ को गरियाने से ही आगे बढ़ सकता है।
इसे राजनीतिक अपरिपक्वता ही कहा जाएगा कि पारदर्शिता के इस जमाने में राहुल गाँधी न्यायालय में कुछ हलफनामा पेश करते हैं और न्यायालय से बाहर कुछ और बयानबाजी करते हैं। जनता उस व्यक्ति को संदेह की दृष्टि से देखती है, जिसकी कथनी में बार-बार अंतर दिखाई देता है। राहुल गांधी यदि यह सोच रहे हैं कि जनता को भ्रमित किया जा सकता है, तब वह बहुत बड़ी गलतफहमी का शिकार हैं। संघ के लोग भी संचार माध्यमों का उपयोग करने लगे हैं, इसलिए संघ के खिलाफ किसी झूठ को गढऩा अब पहले की तरह आसान नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में दिए माफीनामे जैसा हलफनामा प्रस्तुत करते समय राहुल गांधी को इस बात का अंदाजा नहीं रहा होगा कि समूचे देश में तत्काल उनके ‘यू-टर्न’ की खबर फैल जाएगी। इस ‘यू-टर्न’ को लेकर बने माहौल ने ही उन्हें फिर से संघ के खिलाफ बोलने के लिए मजबूर कर दिया। लेकिन, यहाँ भी राहुल गांधी गलत हैं।
कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी यह भी स्मरण रखें कि अभी तो जनता यह भी पूछेगी कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के किन लोगों ने महात्मा गांधी की हत्या की थी? संघ से उनका किस प्रकार का संबंध था? जबकि गांधीजी की हत्या के मुख्य आरोपी गोडसे का न्यायालय में इकबालिया बयान दर्ज है कि वह संघ का स्वयंसेवक नहीं था और न ही वह संघ की विचारधारा को अपने अनुकूल मानता था। इसलिए राहुल गांधी के लिए यह भी साबित करना मुश्किल है कि गांधीजी की हत्या संघ के लोगों या संघ की विचारधारा से प्रेरित लोगों ने की थी। लोग यह भी पूछेंगे कि वर्ष 1948 में गठित विशेष न्यायालय और वर्ष 1966 में गठित कपूर आयोग ने संघ को इस मामले में किस आधार पर निर्दोष करार दिया था? स्पष्ट है कि महात्मा गांधी की हत्या के लिए आरएसएस को जिम्मेदार ठहराकर राहुल गांधी बुरी तरह फंस गए हैं।
गौरतलब है कि वर्ष 2014 में ठाणे में आयोजित राजनीतिक जनसभा में राहुल गांधी ने स्पष्टतौर पर कहा था कि आरएसएस के लोगों ने गांधी की हत्या की थी और आज उनके लोग (भाजपा) गांधीजी की बात करते हैं। राहुल गांधी के इस आपत्तिजनक और तथ्यहीन बयान के विरोध में संघ के एक स्वयंसेवक राजेश कुंटे की शिकायत पर आपराधिक मानहानि का मामला दर्ज किया गया। इस संबंध में पिछली सुनवाई में उच्चतम न्यायालय ने राहुल गांधी की जमकर फटकार लगाई थी और उनसे कहा था कि ‘उन्हें गलत ऐतिहासिक तथ्य के आधार पर संघ की सार्वजनिक निंदा नहीं करनी चाहिए। राहुल गांधी या तो संघ पर लगाए आरोप के लिए खेद प्रकट करें या फिर न्यायालय के ट्रायल का सामना करने के लिए तैयार रहें।’ निश्चित ही न्यायालय की इस चेतावनी का असर राहुल गांधी पर हुआ है, इसलिए भले ही उन्होंने प्रत्यक्ष तौर पर अपने बयान के लिए खेद प्रकट नहीं किया है, लेकिन न्यायालय में उन्होंने यह स्वीकार कर लिया है कि गांधी हत्या के लिए आरएसएस जिम्मेदार नहीं है।
न्यायालय ने राहुल गांधी के इस हलफनामे को रिकॉर्ड पर लेकर उनके खिलाफ आपराधिक मानहानि के मामले को खत्म करने के संकेत दिए हैं। इसके लिए न्यायालय ने संघ के स्वयंसेवक कुंटे की ओर से मामले की पैरवी कर रहे अधिवक्ता यूआर ललित को कहा है कि वह अपने मुवक्किल (कुंटे) से चर्चा करें। दूसरे दिन ही हलफनामे के विपरीत राहुल गांधी का सार्वजनिक बयान आने से यह तय लग रहा है कि राजेश कुंटे मुकदमा चलाए जाने के लिए न्यायालय से अनुरोध करेंगे। क्योंकि, संघ के स्वयंसेवक के तौर पर कुंटे के लिए यह लड़ाई राहुल गांधी के माफी मांगने से कही अधिक बड़ी है। यह लड़ाई इस बात की है कि गांधीजी की हत्या से संघ का कुछ भी लेना-देना नहीं था। गांधी हत्या के दोषी लोग भी न तो संघ के स्वयंसेवक थे और न ही संघ की विचारधारा से प्रेरित थे। यह प्रकरण संघ पर तथ्यहीन आरोप लगाने वालों के लिए सबक बनना चाहिए। ताकि भविष्य में संघ के बारे में अनर्गल बयानबाजी करने से पहले कोई सौ बार सोचे।
(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी पत्रिकारिता विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)