घाटी में 190 प्राथमिक स्कूल आज खुल गए हैं और जनजीवन पटरी पर आ गया है। शासकीय कार्यालयों में भी कामकाज शुरू हो गया है। प्रशासन का दावा है कि जम्मू से राजौरी-पुंछ तक हालात एकदम सामान्य हैं। सरकार ने सभी जिलों से प्रतिबंध हटा लिए हैं। अब लैंडलाइन फोन की सेवाएं भी बहाल कर दी गई हैं। यानी कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि सब कुछ नियंत्रण में है और अवाम का सरकार को भरपूर सहयोग मिल रहा है।
जम्मू और कश्मीर में अब हालात सामान्य हो गए हैं। गत 5 अगस्त को केंद्र सरकार ने कश्मीर से अनुच्छेद-370 समाप्त करते हुए विशेष राज्य का दर्जा हटा दिया था। इसके पहले ही घाटी में सुरक्षा प्रबंध चौकस थे और इसके बाद भी यहां लगातार व्यवस्थाएं पुख्ता बनी हुईं हैं।
अब अच्छी बात यह हुई है कि घाटी में 190 प्राथमिक स्कूल आज खुल गए हैं और जनजीवन पटरी पर आ गया है। शासकीय कार्यालयों में भी कामकाज शुरू हो गया है। प्रशासन का दावा है कि जम्मू से राजौरी-पुंछ तक हालात एकदम सामान्य हैं। सरकार ने सभी जिलों से प्रतिबंध हटा लिए हैं। अब लैंडलाइन फोन की सेवाएं भी बहाल कर दी गई हैं। यानी कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि सब कुछ नियंत्रण में है और अवाम का सरकार को भरपूर सहयोग मिल रहा है।
लेकिन इन सब जमीनी, तथ्यगत बातों से अलग कांग्रेस जिस तरह से राज्य को लेकर गलत दावे कर रही है, उसपर गुस्सा भी आता है, हंसी भी और तरस भी। कांग्रेस नेता राहुल गांधी का मानसिक दिवालियापन ही है कि कश्मीर जैसे संवेदी मसले को भी वे मनोरंजन समझ रहे हैं।
कुछ दिनों पहले कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने सोशल मीडिया पर राहुल को आड़े हाथों लेते हुए कश्मीर को लेकर दुष्प्रचार ना किए जाने की हिदायत दी थी। उन्होंने साफ शब्दों में कहा था कि कश्मीर के हालात पूरी तरह सामान्य हैं, यदि स्वयं आकर देखना चाहें तो यहां आकर देखें और उसके बाद कहें। मैं इसके लिए विमान की व्यवस्था कर दूंगा लेकिन सुनी सुनाई बातों को इस तरह ना फैलाएं।
अभी जम्मू-कश्मीर में कोई बंदिश नहीं है, बंदिश तो गत 70 साल से वहां थी, जो अब हटाई गई है। कश्मीर के लिए तो सही मायनों में आजादी अब आई है। हालिया 15 अगस्त को लद्दाख में तिरंगा फहराया गया तो यह एक अभूतपूर्व दृश्य था। सब कुछ तो वहां पहली बार हो रहा है। सच्चे अर्थों में स्वतंत्रता अब मिली है, तो ऐसे में आश्चर्य होता है कि राहुल किस आजादी की बात कर रहे हैं। क्या कश्मीर में बेखौफ घूमना पहले इतना सहज था?
कश्मीर में चरणबद्ध रूप से सारे स्कूल खोले जाने की तैयारी है। पुलिस के पास हिंसा की एक भी घटना नहीं आई है। इतना बड़ा परिवर्तन होने के बावजूद कश्मीर में सब कुछ सामान्य होना वास्तव में किसी चमत्कार से कम नहीं लगता। यह सरकार की बड़ी सफलता ही है कि अनुच्छेद-370 हटाने जैसा ऐतिहासिक फैसला होने के बाद उसके संभावित प्रभावों पर पूरी तरह से काबू कर लिया गया और कोई अराजकता नहीं होने दी गयी।
एक जिम्मेदार विपक्ष के रूप में कहाँ तक कांग्रेस और राहुल गांधी इसमें सरकार के साथ खड़े होते, मगर वे तो राज्य की स्थिति के विषय में अफवाहें ही फैलाने लगे। बेहतर होता, ट्वीटर पर अपनी बेसिर-पैर की बातें करने से पहले राहुल गांधी अपने गिरेबान में झांककर देखते।
कश्मीर में जाने के लिए तो नेहरू ने पाबंदियां लगाई थीं। मौजूदा केंद्र सरकार ने ऐसा कोई फरमान नहीं निकाला है। बस राज्य में हालात न बिगड़ें, इसलिए एहतियातन कुछ प्रतिबन्ध लगाए गए थे, जो कि अब हटा दिए गए हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में कहीं भी अराजकता की खबरें नहीं हैं, इसके बावजूद यदि राहुल गांधी को लगता है कि कश्मीर में कुछ भी ठीक नहीं है तो उन्हें स्वयं कश्मीर जाकर देखना चाहिये और बात की तस्दीक करना चाहिये। सत्यपाल मलिक ने भी तो उनसे यही कहा था।
राहुल के पुरखे नेहरू और मौजूदा मोदी सरकार में यह बुनियादी अंतर है कि नेहरू कश्मीर में जाने के लिए परमिट रखते थे और वहां बिना परमिट जाने पर गिरफ्तार करवा दिया करते थे, जबकि मोदी सरकार में राज्यपाल स्वयं खुलेआम कह रहे हैं कि आओ और जमीनी हकीकत देखो। यदि राहुल मसखरी के इरादे से निराधार बहस करते रहेंगे तो मुंह की खाएंगे।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)