जम्मू-कश्मीर में बह रही बदलाव की बयार

अनुच्छेद-370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर की तस्वीर ये है कि सरकारी कार्यों का ठेका अब महज कुछ खास रसूखदारों और राजनीतिक घरानों तक सीमित नहीं रहा है। पंचायतों का चुनाव कराकर पंचायत समिति एवं सरपंचों को अधिकार-संपन्न बनाने की दिशा में काम हुआ है। उनके माध्यम से स्थानीय स्तर पर सरकारी योजनाओं को लागू किया जा रहा है और वहाँ की आम जनता को उन योजनाओं का सीधा लाभ प्रदान कर उन्हें मुख्यधारा में शामिल किया जा रहा है। सरकारी नौकरियों से लेकर रोज़गार के नए-नए अवसर सृजित किए जा रहे हैं।

राम-मंदिर के शिलान्यास और भूमि-पूजन कार्यक्रम ने संपूर्ण देश-दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। यह सहज एवं स्वाभाविक था। परंतु यह दिवस (5 अगस्त) एक और दृष्टिकोण से ऐतिहासिक एवं उल्लेखनीय महत्त्व रखता है।

इसी दिवस को गत वर्ष जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 एवं 35 A को हटाने की घोषणा की गई थी। परंतु शिलान्यास एवं भूमि-पूजन के विश्वव्यापी प्रभाव-प्रसारण, आनंद-आह्लाद में इस अनुच्छेद को हटाए जाने के एक वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य पर उसके व्यापक प्रभाव एवं परिणामों पर पर्याप्त विमर्श-विश्लेषण नहीं हो सका।

साभार : India TV

अनुच्छेद 370 के हटने के बाद जम्मू-कश्मीर की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक स्थितियों से लेकर वहाँ के शासन-प्रशासन और उनकी दैनिक कार्यशैली में आए बदलावों को रेखांकित करने की आवश्यकता है। बीते एक वर्षों में वहाँ संचार और आधारभूत संसाधनों के विकास पर जोर दिया गया है। भ्रष्टाचार पर लगाम कसा गया है।

सरकारी कार्यों का ठेका अब महज कुछ खास रसूखदारों और राजनीतिक घरानों तक सीमित नहीं रहा है। पंचायतों का चुनाव कराकर पंचायत समिति एवं सरपंचों को अधिकार-संपन्न बनाने की दिशा में काम हुआ है। उनके माध्यम से स्थानीय स्तर पर सरकारी योजनाओं को लागू किया जा रहा है और वहाँ की आम जनता को उन योजनाओं का सीधा लाभ प्रदान कर उन्हें मुख्यधारा में शामिल किया जा रहा है। सरकारी नौकरियों से लेकर रोज़गार के नए-नए अवसर सृजित किए जा रहे हैं।

एक आँकड़े के अनुसार बीते एक वर्ष के दौरान लगभग दस हज़ार से भी अधिक लोगों को सरकारी नौकरियाँ दी जा चुकी हैं और पच्चीस हज़ार और नौकरियाँ दिए जाने की योजना है। इतना ही नहीं, जम्मू-कश्मीर में रह रहे चौवालीस हजार कश्मीरी प्रवासी परिवारों के लिए लगभग छह हजार पद आरक्षित किए गए हैं, जिनमें से चार हज़ार पर नियुक्ति हो भी चुकी है।

आईआईटी के आने से वहाँ के छात्रों को विज्ञान एवं आभियांत्रिकी की शिक्षा के लिए स्थानीय स्तर पर ही बेहतर विकल्प उपलब्ध हुआ है।  वहीं एम्स के आ जाने से स्वास्थ्य-सेवा में आमूल-चूल सुधार की आशा जगी है। चिकित्सालयों में आधुनिक चिकित्सा-उपकरण लगने के अलावा डॉक्टरों की भी कमी को दूर करने के प्रयास में तेज़ी आई है।

सरकार की योजना पर्यटन को भी बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने की है और शांति एवं सुव्यवस्था स्थापित करने के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे सतत प्रयासों एवं सार्थक पहल के परिणाम स्वरूप निकट भविष्य में यह संभव होता भी दिखाई देता है। कश्मीर की डल झील में नौकायन हर किसी का सपना होता है। पर बहुत कम लोग जानते होंगें कि वहाँ का वुलर झील ताजे पानी के स्रोतों वाले झीलों के रूप में संपूर्ण एशिया में विख्यात है।

साभार : Punjab Kesari

पिछले एक वर्ष में केंद्र सरकार की पहल पर वहाँ बहुत काम हुआ है। सैकड़ों करोड़ रुपये वुलर झील को पुनर्जीवित करने के लिए आवंटित किए गए हैं और उसके पुनर्जीवन पर बहुत तीव्र गति से कार्य ज़ारी है।

गत वर्ष केंद्र सरकार द्वारा लिए गए इस ऐतिहासिक और साहसिक निर्णय ने अलगाववादी विचारधारा एवं आतंकी गतिविधियों पर प्रभावी अंकुश लगाने का कार्य किया है। गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार 2019 की तुलना में 2020 में घाटी में आतंकी वारदातों में 36 प्रतिशत की कमी आई है। गत एक वर्ष से बड़ी आतंकी घटनाओं में आशाजनक कमी आई है।

2019 में जहाँ घाटी में 52 ग्रेनेड हमले और 6 आईआईडी अटैक हुए थे, वहीं 2020 में यह आँकड़ा घटकर क्रमशः इक्कीस और एक पर आया है। पहली बार जम्मू-कश्मीर के चार मुख्य आतंकी संगठनों- हिजबुल मुजाहिदीन, लश्कर-ए-तैय्यबा, जैश-ए-मुहम्मद और अंसर गजवत-उल-हिंद के टॉप कमांडर पिछले चार महीनों में मारे जा चुके हैं। मारे गए आतंकवादियों में स्थानीय से लेकर 50 खूँखार एवं ईनामी आतंकवादियों के नाम भी शामिल हैं।

गौरतलब है कि इन आतंकवादियों की गिरफ़्तारी या मारे जाने में सेना को स्थानीय प्रशासन एवं घाटी के आम नागरिकों का भी सहयोग प्राप्त होने लगा है, जो एक बड़ा सकारात्मक बदलाव है। पहले आतंकियों के जनाज़े पर भारी भीड़ जमा हो जाती थी, जो इन दिनों गुजरे ज़माने की बात जैसी लगती है। अब आतंकियों के शवों को उनके परिजनों की मौजूदगी में दफना भर दिया जाता है।

बीते एक वर्ष में जम्मू-कश्मीर के नौ जिले आतंकवाद-मुक्त घोषित किए गए हैं। पत्थरबाजी की घटनाओं में भी उल्लेखनीय कमी देखने को मिली है। एक आँकड़े के अनुसार वहाँ होने वाली पत्थरबाजी में लगभग 73 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।

अनुच्छेद 370 हटने के बाद सुरक्षाबलों की सख्ती से जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद में आई कमी (सांकेतिक चित्र, साभार : One India)

आतंकियों के मारे जाने या उनकी गिरफ़्तारी पर बुलाए जाने वाले हड़ताल-आंदोलन भी अब गाहे-बगाहे ही सुनने को मिलते हैं। सुरक्षा एजेंसियों और स्थानीय प्रशासन ने मिलकर अलगाववादियों एवं आतंकवादियों के वित्तीय स्रोत पर भी शिकंजा कसा है। वहाँ की अवाम को भी अब भली-भाँति समझ आने लगा है कि अलगाववादियों ने उन्हें आतंक और हिंसा की आग में धकेलकर स्वयं मलाई काटी है।

इसके साथ-साथ अलगाववादियों में आई फूट भी सरकार के लिए एक अवसर है। सैयद अली शाह गिलानी का हुर्रियत से अलग होना पुलिस-प्रशासन के लिए एक राहत भरी ख़बर है।

धारा 370 और अनुच्छेद 35 A के हटने का सर्वाधिक लाभ जम्मू-कश्मीर की महिलाओं और बेटियों-बहनों को प्राप्त हुआ है। वे आतंक और भय के साए से मुक्त शिक्षा एवं रोज़गार के लिए निडरता से आगे आ रही हैं। आत्मनिर्भरता के लिए उन्हें हस्तकला से लेकर तमाम परंपरागत एवं नवीन कौशलों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक गतिविधियों में उनकी बढ़ती भागीदारी महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक ठोस क़दम सिद्ध हो रहा है।

लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाकर केंद्र सरकार ने लद्दाखवासियों की दशकों पुरानी माँग पूरी की थी। वे बीते कई दशकों से इसके लिए संघर्षरत थे। स्वाभाविक है कि इस धारा के हटने की सर्वाधिक प्रसन्नता वहाँ के निवासियों में ही देखने को मिल रही है। वहाँ भी संचार, यातायात एवं अन्य आधारभूत ढाँचे पर तेजी से काम हो रहा है।

पहले जहाँ आवंटित राशि का न्यूनतम हिस्सा ही लेह-लद्दाख पहुँच पाता था, वहीं अब उनके लिए बजट में स्वतंत्र एवं मुकम्मल राशि की योजना की जा रही है।

जाहिर है, बीते एक वर्ष में जम्मू-कश्मीर एवं लेह-लद्दाख में बदलाव की बयार देखने को मिली है, परंतु अभी तो प्रारंभ है, आगे लंबी और कठिन यात्रा अभी शेष है। कोरोना से उत्पन्न संकट ने इसमें निश्चित ही व्यवधान डाला है।

उत्तर कोरोना-काल में सरकार को वहाँ युद्ध-स्तर पर विकास-कार्यों को गति प्रदान करनी होगी। लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले राजनीतिक दलों, नेताओं एवं उनके प्रतिनिधियों की सक्रियता एवं सहभागिता सुनिश्चित करनी होगी। शासन-प्रशासन से लेकर व्यवस्था के सभी घटकों के प्रति आम लोगों के भरोसे में आश्वस्तकारी वृद्धि करनी होगी। अच्छी बात है कि सरकार की पहल इस दिशा में देखने को मिल रही है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)