उत्तर प्रदेश के 2012 के विधानसभा चुनावों में जब समाजवादी पार्टी को 224 सीटों का बहुमत प्राप्त हुआ था, तो जीत का जश्न इस कदर चला कि अखिलेश सरकार के तमाम मंत्रियों और समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं की जीत की खुमारी हफ़्तों तक नही उतरी थी। सपा कार्यकर्ताओं ने जश्न की खुमारी में काफी उत्पात मचाया था। यहाँ तक कि जश्न के दौरान एक व्यक्ति की मौत भी हो गयी थी; मगर उससे भी जश्न फीका नही पड़ा। अब पाँच साल बाद का मंजर देखिये। इसबार के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 325 सीटें हासिल की और जश्न भी मना; मगर उसमे कोई अराजकता नहीं हुई। अभी शपथ ग्रहण को एक हफ़्ता भी नही हुआ कि जश्न थम गया। कोई उपद्रव, कोई हिंसा नही और वर्तमान सरकार स्फूर्ति के साथ तुरंत अपने काम में लग गयी। इसे ही बदलाव कहते हैं, जो कि भाजपा को जनादेश मिलने के साथ ही दिखने लगा। भाजपा की जीत के साथ शुरू हुआ ये बदलाव अब योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद यूपी के प्रशासनिक गतिविधियों में भी दिखने लगा है। इस बदलाव के पीछे भाजपा की विचारधारा के साथ-साथ सीधे तौर पर योगी आदित्यनाथ के सुदृढ़ नेतृत्व का भी प्रभाव है।
उत्तर प्रदेश का तंत्र देश के सबसे लचर सरकारी तंत्रों में गिना जाता था; लेकिन योगी सरकार के आने के बाद जिस स्फूर्ति के साथ सरकारी महक़मे सक्रिय हुए हैं, उससे लोगो में एक नयी आशा की लहर जागी है। योगी सरकार द्वारा न केवल तेज़ी से निर्णय लिए जा रहे, बल्कि उसी तेज़ी से उनका क्रियान्वयन भी हो रहा है। इस स्थिति को देखते हुए कह सकते हैं कि अभी भले योगी को सत्ता संभाले बमुश्किल सप्ताह भर ही हुए हैं, लेकिन इतने कम समय में ही उत्तर प्रदेश के शासन-प्रशासन की कार्य-संस्कृति में बड़ा और सकारात्मक बदलाव नज़र आने लगा है। कह सकते हैं कि चुनाव के दौरान भाजपा राज्य में जिस बदलाव की बात कर रही थी, उसकी शुरूआत हो चुकी है।
ये बात किसी से छुपी नही है कि योगी बेहद कर्मठ और मेहनती नेता हैं तथा वे कठोर फैसले लेने में ज़रा भी हिचकते नहीं हैं। जो लोग उन्हें एक समुदाय-विशेष का नेता मानते हैं, उन्हें भी उनके भाषण गौर से सुनने चाहिए कि वे हमेशा न्याय और पक्षपात-रहित बात कहते हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद दिए गए अपने संबोधनों में भी उन्होंने पक्षपात-रहित शासन का उल्लेख करते हुए कहा कि विकास सबका होगा, मगर तुष्टिकरण किसीका नहीं होगा।
कार्यशैली की बात करें तो सरकार गठित होने के एक हफ्ते के भीतर ही योगी आदित्यनाथ ने कई अहम फैसले लिए हैं। प्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं के विवादित होने के कारण उनके नतीजों पर रोक, एंटी-रोमियो स्क्वाड का गठन, नक़ल पर रोक के लिए कदम, अवैध बूचड़खानों पर प्रतिबंध, सरकारी दफ्तरों एवं थानों का अचानक निरीक्षण करना आदि ऐसे काम हैं, जो बेहद सरलता से पिछली सरकार द्वारा भी किये जा सकते थे; मगर उन्हें तुष्टिकरण की राजनीति से शायद फुर्सत नही मिली कि इनपर ध्यान दे सकें। वहीं योगी को अपने कामो से फुर्सत नही मिल रही।
उत्तर प्रदेश का तंत्र देश के सबसे लचर सरकारी तंत्रों में गिना जाता था; लेकिन पिछले एक सप्ताह से जिस स्फूर्ति के साथ सरकारी महक़मे सक्रिय हुए हैं, उससे लोगो में एक नयी आशा की लहर जागी है। योगी सरकार द्वारा न केवल तेज़ी से निर्णय लिए जा रहे, बल्कि उसी तेज़ी से उनका क्रियान्वयन भी हो रहा है। गौर करें तो एंटी रोमियो स्क्वाड के गठन का आदेश देते ही गठन हो भी गया और इस स्क्वाड ने सक्रियता से काम भी शुरू कर दिया। इसी तरह बूचड़ख़ानों पर प्रतिबन्ध के निर्णय का भी तेज़ी से क्रियान्वयन हो रहा है। बोर्ड परीक्षाओं में नक़ल पर रोक के लिए निर्देश दिए गए, जिनका ज़मीनी तौर पर कमोबेश असर भी दिखने लगा है। स्पष्ट है कि योगी सरकार में सिर्फ निर्णय नहीं हो रहे, बल्कि एक-एक निर्णय और निर्देश का गंभीरतापूर्वक क्रियान्वयन भी हो रहा है।
दरअसल मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ का स्वयं अस्पताल से लेकर थानों तक विभिन्न सरकारी महकमों में अचानक पहुंचकर स्थिति का निरीक्षण करना सरकारी विभागों की सक्रियता का बड़ा कारण है। तेज़ाब हमले का शिकार हुई लड़की को देखने मुख्यमंत्री योगी अचानक ही अस्पताल पहुँच गए और तत्काल एक लाख की आर्थिक सहायता भी प्रदान किये। कहीं न कहीं इससे उन्होंने यह स्पष्ट सन्देश देने का प्रयास किया है कि उनके राज में महिलाओं के प्रति अपराधों को लेकर ज़रा भी ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी। निश्चित तौर पर इससे यूपी पुलिस पर दबाव बनेगा और वो इस दिशा में सक्रियता से काम करेगी। इसी तरह अन्य विभागों को भी हीला-हवाली से बचने, दफ्तरों में स्वच्छता रखने, कार्यालय में गुटखा न खाने के निर्देश आदि निर्णय भी बेहद महत्वपूर्ण हैं। इन सब बातों से स्पष्ट है कि अभी भले योगी को सत्ता संभाले बमुश्किल सप्ताह भर ही हुए हैं, लेकिन इतने कम समय में ही उत्तर प्रदेश के शासन-प्रशासन की कार्य-संस्कृति में बड़ा और सकारात्मक बदलाव नज़र आने लगा है। यह राज्य के लिए अत्यंत शुभ संकेत है। कह सकते हैं कि चुनाव के दौरान भाजपा राज्य में जिस बदलाव की बात कर रही थी, उसकी शुरूआत हो चुकी है।
(लेखिका पत्रकारिता की छात्रा हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)