जो दल ‘बलात्कार’ को ‘गलती’ मानता रहा हो, उसके लिए आजम का बयान आपत्तिजनक कैसे हो सकता है? आजम का बयान हो, चाहें अखिलेश-डिम्पल का उसके बचाव में उतरना हो, ये सब समाजवादी पार्टी के उसी बुनियादी संस्कार से प्रेरित आचरण है, जिसकी झलक सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के ‘लड़कों से गलती हो जाती है’ वाले बयान में दिखाई देती है। आज मुलायम भले हाशिये पर हों, मगर पार्टी में उनके संस्कार बोल रहे हैं। अतः समाजवादियों के इस आचरण पर शर्मिंदगी जरूर होती है, मगर आश्चर्य नहीं होता।
लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे हमारे नेताओं की भाषाई अभद्रता भी बढ़ती जा रही है। मोदी विरोध में लामबंद हो रहे विपक्षी दलों के नेताओं में जैसे होड़ मची है कि कौन भाजपा नेताओं के लिए कितना बुरा बोल सकता है। ऐसा ही एक बयान पिछले दिनों सपा के आज़म खान की तरफ से दिया गया।
आजम खान ने रामपुर लोकसभा सीट पर उनके मुकाबले में उतरी जया प्रदा को लेकर अत्यंत आपत्तिजनक बयान देते हुए कहा, ‘जिसको हम उंगली पकड़कर रामपुर लाए, आपने 10 साल जिनसे अपना प्रतिनिधित्व कराया…उसकी असलियत समझने में आपको 17 बरस लगे, मैंने 17 दिन में पहचान गया कि इनकी अंडरवियर खाकी रंग का है।’
आजम जब यह बयान दे रहे थे तो मंच पर अखिलेश यादव की मौजूदगी थी, लेकिन उन्होंने आजम को रोकने की जरूरत नहीं समझी बल्कि खामोश बैठे रहे। इस बयान के बाद आजम की हर तरफ आलोचना हुई, मुकदमे हुए, चुनाव आयोग ने उनके प्रचार पर तीन दिन के लिए प्रतिबन्ध लगा दिया, लेकिन अखिलेश यादव को तब भी इस बयान में कुछ गलत नहीं नजर आया।
वे आजम का बचाव करने उतर पड़े और कहा कि आजम ने किसीका नाम नहीं लिया। अखिलेश भले नाम न लेने का तर्क दें, पर ये जाहिर बात है कि आजम ने उक्त बयान जया प्रदा के लिए ही दिया था। अखिलेश तो अखिलेश, उनके साथ प्रेसवार्ता में पहुंची पत्नी डिम्पल यादव भी आजम खान के बचाव में उतर पड़ी। पति से भी एक कदम आगे बढ़ते हुए डिम्पल यादव ने आजम के बयान को ‘छोटी बात’ बता दिया। उन्होंने कहा कि ऐसी छोटी-छोटी बातों में उलझने की जरूरत नहीं।
डिम्पल यादव कन्नौज से सांसद हैं और अबकी पुनः उम्मीदवार भी हैं। सवाल उठता है कि डिम्पल यादव किस मानसिकता की महिला नेता हैं, जिनके लिए एक अन्य महिला का अपमान ‘छोटी बात’ है। यही बयान यदि किसीने उनके प्रति दिया होता तो भी क्या वे इसे ‘छोटी बात’ ही मानतीं?
हालांकि समाजवादी पार्टी का महिला सम्मान को लेकर जो इतिहास रहा है, उसे देखते हुए इन सपा नेताओं के बयान पर बहुत आश्चर्य नहीं होता। कभी इसी सपा के प्रमुख रहे अखिलेश के पिता और डिम्पल यादव क्व ससुर मुलायम सिंह यादव ने बलात्कारियों के लिए कहा था कि ‘लड़कों से गलती हो जाती है, तो क्या उन्हें फांसी पर चढ़ा देंगे’। अब जिस दल के संस्थापक नेता के ही विचार महिलाओं को लेकर इतनें उज्जवल रहे हों, उसके नए-नए नेताओं से महिला सम्मान की उम्मीद करना बेमानी ही है।
जो दल ‘बलात्कार’ को ‘गलती’ मानता हो, वो आजम के बयान को आपत्तिजनक मान ही कैसे सकता है? आजम का बयान हो, चाहें अखिलेश-डिम्पल का उसके बचाव में उतरना हो, ये सब समाजवादी पार्टी के उसी बुनियादी संस्कार से प्रेरित आचरण है, जिसकी झलक सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के उक्त बयान में दिखाई देती है। अतः इसपर शर्मिंदगी जरूर होती है, मगर आश्चर्य नहीं होता।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)