जिस तरह से सरकारी संपत्ति को इरादतन नुकसान पहुँचाया गया है, उससे लगता है कि सरकारी बंगला जाने का जो गुस्सा था, उसे अखिलेश यादव ने बंगले पर ही उतार दिया है। एक पूर्व मुख्यमंत्री की ऐसी कारिस्तानी न केवल शर्मनाक है, बल्कि उनकी मानसिकता पर भी सवाल खड़े करती है।
उत्तर प्रदेश में बंगला विवाद अभी तक थमा नहीं है।सुप्रीम कोर्ट के फैसलें के पश्चात् यूपी के दो पूर्व मुख्यमंत्री एवं पार्टी अध्यक्षों ने बंगला खाली न हो इसके लिए जो पैतरें चले, उससे न केवल वे उपहास के पात्र बने, बल्कि उनकी मर्यादाहीनता को भी समूचे देश ने देखा। सरकारी बंगला हाथ से न फ़िसले, कोर्ट के फ़ैसले को कैसे ठेंगा दिखाया जाए, इसके हर संभव प्रयास किये गये। लेकिन सारे प्रयास निरर्थक साबित हुए और अंत में अखिलेश, मायावती और मुलायम सिंह ने किसी तरह से सरकारी बंगले का मोह छोड़ा।
हालांकि राजनाथ सिंह एवं कल्याण सिंह ने कोर्ट के फ़ैसले के अनुसार बिना किसी बहानेबाजी के तय मियाद से पहले ही बंगले की चाभी राज्य संपत्ति विभाग को सौंप दी थी। एनडी तिवारी अस्वस्थ होने के कारण बंगला नहीं खाली कर पाए हैं। खैर, ये सब बवाल बंगला खाली करने के पश्चात् थम जाएगा, ऐसा माना जा रहा था, किन्तु बड़ा बवंडर तो तब खड़ा हुआ, जब सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बंगला खाली करने के नामपर बंगले को तहस–नहस करके रख दिया। हैरान करने वाली बात यह है कि टाइल्स, पंखे , पौधे, टोटी और मार्बल सबको छिन्न–भिन्न कर दिया गया। यहाँ तक कि हरा भरा बगीचा पूरी तरह से बर्बाद कर दिया गया और स्विमिंग पूल को पाट दिया गया।
जिस तरह से सरकारी संपत्ति को इरादतन नुकसान पहुँचाया गया है, उससे लगता है कि सरकारी बंगला जाने का जो गुस्सा था, उसे अखिलेश यादव ने बंगले पर ही उतार दिया है। एक पूर्व मुख्यमंत्री की ऐसी कारिस्तानी न केवल शर्मनाक है, बल्कि उनकी मानसिकता पर भी सवाल खड़े करती है।
गौरतलब है कि अपने निवास से अलग होना किसी के लिए भी एक भावुक क्षण होता है, लेकिन उसे इस तरह से गुस्से में परिवर्तित करके निवास को बर्बाद कर देना कहाँ तक जायज है ? ये कैसे संस्कार हैं ? वह भी जब व्यक्ति सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन में सक्रिय हो, तब इस तरह के दोयम दर्जे का काम उसकी संकीर्ण मानसिकता का ही परिचायक है।
अखिलेश ने इस पूरे मसले पर कई दफ़ा मीडिया के सामने अपनी बात रखी। वह खुद अपने बयानों में घिर रहें है। कभी उनका वक्तव्य आता है कि जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई कर देंगे, तो कभी इसे राजनीतिक साजिश बताते हैं। लेकिन, अखिलेश को बताना चाहिए कि इस तरह की निचले स्तर के आचरण से राजनीति की मर्यादा का जो क्षरण हुआ है, उसकी भरपाई कौन करेगा ?
ऐसी अनेक घटनाए हैं जब स्पष्ट तौर पर लगता है कि लोहिया के विचारों की दुहाई देने वाले ये मुलायम ब्रांड समाजवादी लोहिया के विचारों का अनुसरण तो दूर की कौड़ी है, आम नैतिक मूल्यों का भी पालन नहीं करते। क्योंकि किसी भी व्यक्ति के अंदर एक सामान्य मानवीय भावना यह होती है कि जब वो अपने किसी निवास स्थान को छोड़ता है, तो उसे साफ़ सुथरा करके ही छोड़ता है। लेकिन, सबसे बड़े राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री, एक राजनीतिक दल के अध्यक्ष और लोहिया का अनुयायी होने का दावा करने वाले अखिलेश यादव ने बंगले को बर्बाद करने की जो ओछी हरकत की है, वो बेहद अशोभनीय एवं शर्मनाक है।
राज्य संपत्ति विभाग की माने तो अखिलेश यादव के सरकारी बंगले में 42 करोड़ की मोटी धनराशि खर्च हुई है। यह पैसा किसका था, जिसे गुस्से की भेंट चढ़ा दिया गया ? इस पूरे मामले में अखिलेश बेवजह राजनीति करके खुद अपनी और अधिक फजीहत करा रहे हैं। अच्छा होगा कि वे अपनी इस दोयम दर्जे की हरकत के लिए सखेद प्रदेश की जनता से माफ़ी मांगें।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)