इस्लामिक कट्टरपंथ को बौद्ध धर्म के लिए खतरा मानते थे अम्बेडकर!

इस्लाम जहां-जहां गया वहां पर पूरे के पूरे समाज और उसकी चेतना को एकदम इस्लाम मय करने की उसने हर तरह से कोशिश की। इस्लाम के आने के पूर्व मध्य एशिया बौद्घ था, ईरान अग्निपूजक था और दक्षिण पूर्व के मलयेशिया तथा इंडोनेशिया बौद्घ थे या वैष्णव मत के अनुयायी थे, मगर आज वहां इन मतों को मानने वाले ढूंढने पर भी नहीं मिलेंगे। इसकी वजह थी कि इस्लाम कोई शांतिदूत बनकर नहीं आया था और न ही वह अपने साथ कोई दर्शन या तर्कशास्त्र लेकर गया था, वह गया था तलवार और कुठार लेकर। इसलिए जिस किसी समाज पर वह कुठार पड़ा पूरे समाज को छिन्न-भिन्न कर दिया। ईरान के अग्निपूजकों में से जो बच गए वे भागकर भारत आ गए और बच गए। इसी तरह मध्य एशिया के मंगोलिया आदि देश भले चंगेज खान को अपना आदर्श मानें पर चंगेज की तलवार के आगे इस्लाम की तलवार भारी पड़ गई और वे समाप्त हो  गए। आज वहां पर इस्लाम ही मुख्य धर्म है। मगर, अगर भारत ने इस्लाम के तलवार की वार झेलकर भी स्वयं को बचा लिया तो इसकी एक वजह भारतीय समाज का जातियों में विभक्त रहना भी था। भारत में अलग-अलग जातियों में रह रहे समाज का एक व्यक्ति अगर इस्लाम पंथ में चला भी गया तो उसे उसके परिवार ने, उसके जाति की पंचायत ने जाति से निकाल दिया और बाकी के समाज को बचा लिया। इसके विपरीत बौद्घ समाज बना तो पूरा का पूरा इस्लाम में ढल गया।

बौद्घ मठों को जब इस्लाम मतानुयायी तुर्क बर्बरों ने गिराया तो बौद्घ मत स्वत ढह गया क्योंकि उनका धर्म और उनका दर्शन उनके मठ और विहारों पर ही निर्भर था। मठों के ढहते ही उस के अनुयायी अपने मत पर ठहर नहीं सके और बौद्घ मत न सिर्फ भारत से बल्कि उन सब मुल्कों से बाहर हो गया जहां-जहां इस्लाम का कुठार गिरा। मशहूर चिंतक और बौद्घ धर्म के ज्ञाता बाबा साहेब अंबेडकर ने इस्लाम के इस कुठार के बारे में लिखा है कि इस्लामी हमलावरों ने बौद्ध पुरोहितों की इतनी बड़े पैमाने पर हत्या की कि उसकी जड़ें ही कट गईं। क्योंकि बौद्ध पुरोहितों की हत्या कर इस्लाम ने बौद्ध धर्म की ही हत्या कर दी। भारत पर बौद्ध धर्म पर पड़ी ये सबसे बड़ी विपत्ति थी। लेकिन मजा देखिए कि अम्बेडकरवादी इसकी चर्चा तक नहीं करते।

इसके अलावा एक बात और थी वह ये कि बौद्घ मठों को जब इस्लाम मतानुयायी तुर्क बर्बरों ने गिराया तो बौद्घ मत स्वत ढह गया क्योंकि उनका धर्म और उनका दर्शन उनके मठ और विहारों पर ही निर्भर था। मठों के ढहते ही उस के अनुयायी अपने मत पर ठहर नहीं सके और बौद्घ मत न सिर्फ भारत से बल्कि उन सब मुल्कों से बाहर हो गया जहां-जहां इस्लाम का कुठार गिरा। मशहूर चिंतक और बौद्घ धर्म के ज्ञाता बाबा साहेब अंबेडकर ने इस्लाम के इस कुठार के बारे में लिखा है कि इस्लामी हमलावरों ने बौद्ध पुरोहितों की इतनी बड़े पैमाने पर हत्या की कि उसकी जड़ें ही कट गईं। क्योंकि बौद्ध पुरोहितों की हत्या कर इस्लाम ने बौद्ध धर्म की ही हत्या कर दी। भारत पर बौद्ध धर्म पर पड़ी ये सबसे बड़ी विपत्ति थी। लेकिन मजा देखिए कि अम्बेडकरवादी इसकी चर्चा तक नहीं करते। इसके विपरीत हिंदू मत सिर्फ उसके पुजारी, पुरोहितों या ब्राहमणों पर ही निर्भर नहीं था। यहां पर हर हिंदू स्वयं अपने आप में हिंदू समाज और धर्म का प्रतीक था इसलिए हिंदू समाज पर इस्लाम के हमले का वैसा असर नहीं पड़ा। यही कारण है कि हिंदू आज भी लगभग उतने ही हैं जितने कि वे 12 वीं सदी में थे।

464416-buddha-ambedkar-wiki
साभार:गूगल

हिंदू धर्म को नुकसान देखा जाए तो ब्रिटिशर्स ने ज्यादा किया। उन्होंने हिंदुओं के अंदर यह हीनता ग्रंथि विकसित की कि उनके अंदर के जातीय पूर्वाग्रहों ने शूद्र व दलित जातियों पर घोर अत्याचार किए हैं। उन्होंने यहां की ब्राह्मण जाति को तो कठघरे में ही खड़ा कर दिया और हर ब्राह्ण मानने लगा कि उनके पूर्वजों ने समाज को बाटा है और खामखाँ में ऐसे प्रतीक बनाए जो वैज्ञानिकता और तर्क पर खरे नहीं उतर पाते। अंग्रेजों ने पुष्यमित्र शुंग को वृहद्रक का हत्यारा बताकर यह प्रचारित किया कि अशोक के मौर्य वंश का नाश वैदिक मत को मानने वाले ब्राह्मण पुष्यमित्र शुंग ने किया था और उसने सम्राट अशोक के पौत्र वृहद्रक का वध किया। अंग्रेजों ने भारत के उसी इतिहास को पैमाना माना जो उनके लिए हितकर और हिंदू जाति का दुश्मन हो सकता था। शुंग वंश कौन था, वह ब्राह्मण था या नहीं था, यह सब कुछ अस्पष्ट सा है अथवा बौद्घों के अपने जातकों में मिलता है। बौद्घ जातक वैसे ही मिथकों का प्रसार करते हैं, जैसे कि हिंदू कथाएं। पर अंग्रेजों ने बौद्घ जातकों को तो इतिहास माना, लेकिन हिंदू महाभारत को गल्प साहित्य में रखा।

अब इसी शुंग को आधार मानकर यह सिद्घ किया गया कि हिंदुओं ने बौद्घों का संहार किया। मगर हिंदू ग्रंथ कुछ और किस्सा बताते हैं। उनके मुताबिक बृहद्रक बौद्घ विहारों के संघ स्थिवरों के माध्यम से यूनानी सेनाओं और उपरिकों से संबंध साधे था। जब बृहद्रक का पतन हुआ तब यही संघ स्थिवर पाटिलपुत्र में बौद्घ राज लाने के लिए वह सम्राट पुष्यमित्र शुंग को खत्म करना चाहता था इसलिए पुष्यमित्र शुंग को बृहद्रथ के बाद संघ स्थिवर को पकड़वाना पड़ा था। पर आज के इतिहासकार अंग्रेजों के इसी कुचक्र के शिकार हैं और वे शुंग को बौद्घ हत्यारा बताकर इस्लाम मतानुयायी तुर्कों को शांतिदूत बता देते हैं और ब्राह्मणों को खलनायक। यह एक तरह से हिंदू समाज के अंदर जातीय द्वेष फैलाकर उसको खत्म करने की चाल है। और इस दुष्चक्र में वामपंथी बुद्घिजीवियों का रोल और भी खतरनाक है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)