डीआईसीजीसी अधिनियम में संशोधन से संकटग्रस्त बैंकों के जमाकर्ताओं को मिलेगी राहत

अभी दबाव वाले बैंकों के जमाकर्ताओं को अपनी बीमित राशि और अन्य दावे पाने में 8 से 10 साल लग जाते हैं, लेकिन इस कानून को अमलीजामा पहनाने के बाद संकटग्रस्त बैंक के जमाकर्ताओं को 90 दिनों में अपना जमा पैसा वापस मिल जाएगा।

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम (डीआईसीजीसी) अधिनियम में संशोधन के प्रस्ताव को 28 जुलाई को मंजूरी दे दी थी। तदुपरांत, इस अधिनियम को 9 अगस्त 2021 को लोकसभा में पारित किया गया। राज्यसभा में इस विधेयक को पहले ही पारित कर दिया गया था। इस प्रकार, यह विधेयक अब कानून बन गया है।

डीआईसीजीसी, भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्ण स्वामित्व वाली अनुषंगी इकाई है, जो बैंक जमा पर बीमा सुरक्षा देती है। संशोधित विधेयक के प्रावधानों के मुताबिक बैंक डूबने की स्थिति में लोगों को 5 लाख रुपये तक की जमा राशि पर बीमा गारंटी दी जाएगी या बैंक के संकट में फंसने पर जमाकर्ताओं को 90 दिनों के अंदर 5 लाख रुपये तक की अपनी जमा राशि को बैंक से निकालने की अनुमति होगी। 

इस विधेयक को संसद के दोनों सदनों में पारित करके निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम (डीआईसीजीसी) अधिनियम, 1961 में संशोधन किया गया है, ताकि जमाकर्ताओं में अपने धन की सुरक्षा के बारे में विश्वास पैदा किया जा सके।

इसका उद्देश्य बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 के विभिन्न उपबंधों के तहत बीमित बैंक के बैंकिंग व्यवसाय के निलंबन की स्थिति में जमाकर्ताओं को समयबद्ध तरीके से निक्षेप बीमा के माध्यम से उनकी बचत तक पहुंच को आसान बनाना है। उल्लेखनीय है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम अधिनियम, 1961 में संशोधन की घोषणा 1 फरवरी 2021 को आम बजट में की थी। 

साभार : Business Standard

वित्त मंत्री श्रीमती सीतारमण ने कहा कि अभी दबाव वाले बैंकों के जमाकर्ताओं को अपनी बीमित राशि और अन्य दावे पाने में 8 से 10 साल लग जाते हैं, लेकिन इस कानून को अमलीजामा पहनाने के बाद संकटग्रस्त बैंक के जमाकर्ताओं को 90 दिनों में अपना जमा पैसा वापस मिल जाएगा।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यह भी कहा कि 2019 के दौरान पंजाब एवं महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव  बैंक (पीएमसी) समेत 23 सहकारी बैंक संकट में आ गये थे, जिसके कारण जमाकर्ताओं को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा था। अब इस संशोधन का तत्काल लाभ इन सहकारी बैंकों के ग्राहकों को मिलेगा 

गौरतलब है कि पीएमसी बैंक के डूबने के बाद लाखों की संख्या में इस बैंक के ग्राहकों को वित्तीय दबाव का सामना करना पड़ा था। अभी भी भारतीय रिजर्व बैंक ने इस बैंक पर लगाई गई सभी पाबंदियों को नहीं हटाया है। पीएमसी संकट के बाद डीआईसीजीसी द्वारा बैंकों के जमाकर्ताओं को दिये जा रहे 1 लाख रुपए के बीमा कवर को बढ़ाने की माँग लगातार की जा रही थी, अब सरकार ने मौजूदा विधेयक में संशोधन करके बीमा कवर की राशि को 1 लाख रुपए से बढ़ाकर 5 लाख रुपए कर दिया है।  

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के अनुसार इस संशोधन के बाद कुल जमा खातों का 98.3 प्रतिशत और कुल जमा मूल्य का 50.9 प्रतिशत संशोधित बीमा कवर के दायरे में आ जायेगा। वित्त मंत्री ने कहा कि जमा बीमा गारंटी में संशोधन का एकमात्र उद्देश्य बैंक ग्राहकों को राहत देना है।

अधिनियम में किए गए संशोधन के अनुसार किसी भी बैंक के लेनदेन पर भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा पाबंदी लगाने के 45 दिनों के बाद सभी जमाकर्ताओं के दावों की जानकारी ली जाएगी और उसे डीआईसीजीसी को सौंपा जाएगा। डीआईसीजीसी 90 दिनों के अंदर सभी दावों का निपटारा करेगा। इससे जमाकर्ताओं को अपनी जमा राशि में से 5 लाख रुपये तक बैंकों के लेनदेन पर रोक लगाने के दिन से 90 दिनों के अंदर वापिस मिल जाएंगे।

सभी अनुसूचित व्यावसायिक बैंकों के 30 जून 2021 के आंकड़ों के अनुसार सावधि जमा के रूप में औसत राशि प्रति खाता 2.54 लाख रुपये है, जबकि कुल मिलाकर औसत राशि, जिसमें बचत खाते, चालू खाते और सावधि जमा खाते शामिल हैं, केवल 58316 रूपये है। सावधि जमा खातों के 67 प्रतिशत खातों में जमा राशि 1 लाख रुपये से कम है, जबकि 1 लाख रूपये से अधिक राशि केवल 8.6 प्रतिशत है। 

इसी तरह, चालू खाता में औसत जमा राशि 1.51 लाख रुपए और बचत खाते में 0.19 लाख रुपए है, जबकि हमारे देश में 15 लाख से ऊपर के जमाकर्ताओं की जमा राशि महज 1.3 प्रतिशत है, जो कि बैंकिंग प्रणाली में उपलब्ध सावधि जमा राशि का 55 प्रतिशत है। इस तरह, किसी बैंक के दिवालिया होने पर अब छोटे जमाकर्ता किसी भी तरह से प्रभावित नहीं होंगे, क्योंकि वे लगभग शत-प्रतिशत संशोधित बीमा कवर के दायरे में आ गए हैं.  

विश्व के विभिन्न देशों, जैसे, अमेरिका और यूरोप में बैंकों के दिवालिया होने पर निवेशकों की समस्याओं को सुलझाने के लिये एक विशेष प्लेटफॉर्म को विकसित किया गया है। निक्षेप बीमा एवं प्रत्यय गारंटी निगम (संशोधन) विधेयक 2021” को पारित करने से पहले तक भारत में बैंकों के दिवालिया होने की स्थिति में निवेशकों की समस्याओं को सुलझाने के लिये कोई ठोस प्रावधान उपलब्ध नहीं था। इस दृष्टिकोण से पूर्व के विधेयक को संशोधित करना एक स्वागत योग्य कदम है। 

साभार : Bimabazaar.com

भारत के बैंकों में मई 1993 से 1 लाख रुपये प्रति जमाकर्ता के हिसाब से एक निश्चित किस्त की दर पर बीमा कवर उपलब्ध कराया जा रहा है, लेकिन यहाँ अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं के अनुसार बैंक के जोखिम रेटिंग को बीमा किस्त से जोड़ने के लिए एक लंबे समय से मांग की जा रही है। बीमा किस्त की दर को तार्किक बनाने के लिए आज जरूरत इस बात की है कि बैंकों को  पूंजी की पर्याप्त उपलब्धता, ऋण की गुणवत्ता और ग़ैर निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) के आधार पर जोखिम श्रेणी में वर्गीकृत किया जाये और फिर इनके आधार पर बीमा किस्त की  अलग-अलग दर निर्धारित की जाये।

ऐसा करने से उच्च जोखिम श्रेणी वाले बैंक को ज्यादा बीमा किस्त देना होगा. जाहिर तौर पर ज्यादा बीमा क़िस्त देने वाले बैंक अपने खर्च में कटौती करने के लिए बीमा किस्त की दर को कम करना चाहेंगे और इसके लिए वे योजनाबद्ध तरीके से अपने जोखिम के कारकों को शिथिल करने या ख़त्म करने के लिये निरंतर प्रयासरत रहेंगे।  कहा जा सकता है कि निक्षेप बीमा एवं प्रत्यय गारंटी निगम (संशोधन) विधेयक 2021 अधिनियम का उद्देश्य बैंकों के विफल होने पर बैंकों और उनके निवेशकों के हितों की सुरक्षा को सुनिश्चित करना है।  

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)