सलाहुद्दीन कश्मीर में पाक प्रायोजित आतंकवाद का चेहरा है और हिजबुल मुजाहिदीन घाटी में सक्रिय सबसे पुराना आतंकी संगठन है। आतंकी फंडिंग को लेकर पहले ही पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय संगठन फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की जांच का सामना कर रहा है। जाहिर है, ऐसे में अब सलाहुद्दीन के मुद्दे पर पाकिस्तान की असहजता व बेचैनी प्रकट हो रही है। वो सलाहुद्दीन के बचाव में दलीलें दे रहा, मगर अब इन दलीलों का कोई अर्थ नहीं है। सलाहुद्दीन पर लगाम कसना अब पाकिस्तान के लिए एक आवश्यक विवशता होगी, क्योंकि उस पर अब अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ने वाला है। यदि पाक ऐसा नहीं करता है तो उसे करीब चालीस देशों के वित्तीय प्रतिबंधों के रूप में खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
बीते सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका का बहुप्रतीक्षित दौरा किया। इस दौरे पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मिले बेहतर प्रतिसाद और सम्मान के अलावा यह दौरा दोनों देशों के कूटनीतिक, राजनीतिक व व्यापारिक संबंध मजबूत करने के लिए सार्थक तो रहा ही, साथ ही साथ आतंकवाद की रोकथाम को लेकर भी इस दौरे की एक बहुत बड़ी सफलता निकलकर सामने आई है। यह अनपेक्षित थी, लेकिन प्रभावी और बहुअर्थी प्रतीत हो रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुलाकात से ठीक पहले अमेरिका ने आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के सरगना सैयद सलाहुद्दीन को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित कर दिया। इसके लिए अमेरिका ने कश्मीर में हुए आतंकी हमलों को मुख्य आधार बनाया था।
मोदी से भेंट से ठीक पहले अमेरिका द्वारा उठाया गया ये कदम निश्चित रूप से मोदी के दौरे के ही एक प्रभाव के रूप में देखा जा सकता है। भारत ने अमेरिकी प्रशासन के इस फैसले का स्वागत किया। भारत के गृह सचिव ने एक बयान में अमेरिका के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह एक प्रभावी कदम है। अमेरिका के इस फैसले से अब निश्चित ही पाकिस्तान को झटका लगेगा। यह संदेश अब अंतरराष्ट्रीय जगत में भी जाएगा कि पाकिस्तान आतंकियों की शरणस्थली बना हुआ है। इस आतंकी सरगना को मोहम्मद यूसुफ शाह के नाम से भी जाना जाता है।
सैयद सलाहुद्दीन वैसे तो जम्मू-कश्मीर में सक्रिय है, पर रहता पाकिस्तान में है। वहीं से अपनी आतंकी गतिविधि चलाता है। कश्मीर में सेना से मुकाबले के लिए वह बड़े पैमाने पर युवकों को आतंकी बनने का प्रशिक्षण दे रहा है। वह सदा से कश्मीर समझौते के खिलाफ रहा और खुलेआम कहता रहा कि इस समझौते को न होने देने के लिए वह कुछ भी करेगा। उसने कश्मीर में कई बम धमाके कराए। अप्रैल 2014 में किए गए हमले में 17 लोग जख्मी हुए थे।
अब जबकि अमेरिका जैसी महाशक्ति ने इसे अंततराष्ट्रीय आतंकी घोषित कर दिया है, ऐसे में इसके लिए आतंक फैलाने के रास्ते अब धीरे-धीरे बंद हो जाएंगे। बहुत संभव है कि सलाउददीन भी अब छुपता, बचता फिरेगा और भूमिगत होकर अपनी नीतियां बनाएगा। यह भी संभव है कि वह बौखलाहट में आकर अपने कुत्सित कृत्यों को बढ़ावा दे, लेकिन यदि वह ऐसा करता है तो उसका परिणाम ओसामा बिन लादेन की भांति हो सकता है, क्योंकि अमेरिका के राडार पर आने के बाद आतंकी कहीं भी सुरक्षित नहीं रह सकता। इतिहास इस बात का गवाह है।
अमेरिका के इस निर्णय के बाद सलाहुद्दीन को अमेरिकी क्षेत्र में निषिद्ध कर दिया गया है। उसकी संपत्ति और बैंक खाते अमेरिका में जब्त माने जाएंगे। वहां के किसी नागरिक से अब वह आर्थिक लेनदेन भी नहीं कर सकेगा। भारत ने मई 2011 में पाकिस्तान को 50 मोस्ट वांटेड लोगों की सूची सौंपी थी। इसमें सलाहुद्दीन का भी नाम था। जनवरी 2016 में पठानकोट एयरबेस पर हुए हमले की जिम्मेदारी यूनाइटेड जिहाद काउंसिल ने ली थी। इसका प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन ही है। यूनाइडेट जिहाद काउंसिल दरअसल गुलाम कश्मीर में सक्रिय दर्जन भर से अधिक आतंकवादी संगठनों का गठबंधन है। इन संगठनों में हिजबुल मुजाहिदीन, अल-उमर मुजाहिदीन, तहरीक-उल मुजाहिदीन शामिल हैं।
हिजबुल के आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद सलाहुद्दीन और जमात-उद-दावा प्रमुख हाफिज सईद ने मिलकर पाक अधिकृत कश्मीर के मुजफ्फराबाद में हिजबुल बेस पर उसे श्रद्धांजलि दी थी। इस दौरान इन दोनों ने श्रद्धांजलि सभा को संबोधित भी किया है। सलाहुद्दीन ने लंबे समय तक घाटी में भारत विरोधी भावनाएं भड़काने का काम किया, लेकिन अब चूंकि उस पर लगाम कसी जा रही है तो उसके नापाक इरादों पर भी अंकुश लगेगा। दूसरी तरफ, अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित किए जाने के बाद सलाउद्दीन के खिलाफ कार्रवाई के लिए पाकिस्तान को मजबूर होना पड़ सकता है।
वास्तव में देखा जाए तो सलाहुद्दीन ही कश्मीर में पाक प्रायोजित आतंकवाद का चेहरा है और हिजबुल मुजाहिदीन घाटी में सक्रिय सबसे पुराना आतंकी संगठन है। आतंकी फंडिंग को लेकर पहले ही पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय संगठन फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की जांच का सामना कर रहा है। जाहिर है, ऐसे में अब सलाहुद्दीन के मुद्दे पर पाकिस्तान की असहजता व बेचैनी प्रकट हो रही है। सलाहुद्दीन पर लगाम कसना अब पाकिस्तान के लिए एक आवश्यक विवशता होगी, क्योंकि उस पर अब अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ने वाला है। यदि पाक ऐसा नहीं करता है तो उसे करीब चालीस देशों के वित्तीय प्रतिबंधों के रूप में खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
इधर, भारत भी सलाहुद्दीन के ग्लोबल टेरेरिस्ट घोषित होने के प्रभावों की पड़ताल में जुटा है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि अब सलाहुद्दीन की आर्थिक गतिविधियों पर रोक लगेगी और उसके लिए चंदा जुटाना मुश्किल होगा। अन्य देश में पाए जाने पर उसे गिरफ्तार भी किया जा सकता है। गृह सचिव राजीव महर्षि का भी मानना है कि अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित होने के बाद सलाहुद्दीन के विदेशों में किए जा रहे वित्तीय लेन-देन के बारे में ठोस जानकारी मिलनी आसान होगी। सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि अमेरिका के इस कदम से घाटी में आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई में वैश्विक समर्थन जुटाना आसान होगा।
असल में पाकिस्तान केवल ऊपरी तौर पर दिखावा करता है कि वह भी आतंकवाद से जूझ रहा है जबकि हकीकत ये है कि पाकिस्तान ही आतंकवाद को प्रश्रय देने वाला मुल्क है। भारत में सीमापार आतंकवाद को संरक्षण देने का काम पाकिस्तान बरसों से करता आ रहा है। सलाहुद्दीन जैसे आतंकी पाकिस्तान से शै पाकर ही अपने मंसूबों में कामयाब हो जाया करते थे। लेकिन अब यह दोहरी नीति चलने वाली नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अमेरिका का दौरा सलाहुद्दीन जैसे दुर्दांत आतंकवादी पर नकेल कसने में कामयाब रहा। निश्चित ही मोदी के अन्य विदेशी दौरों से आतंकवाद पर नियंत्रण रखने संबंधी कदम अन्य देशों द्वारा उठाए जाने की उम्मीद है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)