कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाओं और आतंकी वारदातों को किन ताकतों का गुप्त प्रश्रय मिला हुआ था, यह बात किसी से छुपी नहीं है। राष्ट्रपति शासन लगने के बाद वहां हालात अभी नियंत्रण में हैं। आतंकी घटनाएं कम हुईं हैं और पत्थरबाजी की वारदातें भी थमी हैं। लेकिन राष्ट्रपति शासन पर भी विपक्ष को तकलीफ है। अब शाह ने विपक्ष की इस तकलीफ को अपने वक्तव्य से और बढ़ा दिया। उन्होंने कांग्रेस को याद दिलाया कि अभी तक 132 बार संविधान की धारा 356 यानी राष्ट्रपति शासन लगाई गयी है। इनमें से अकेली कांग्रेस के शासन में यह धारा 93 बार लगाई गई। इसके बावजूद कांग्रेस जाने किस मुंह से राष्ट्रपति शासन पर सवाल खड़े कर रही है।
लंबे समय तक बीजेपी के अध्यक्ष रहे अमित शाह अब सत्तारूढ़ दल में केंद्रीय मंत्री हैं। उन्हें गृह मंत्रालय का जिम्मा मिला है और पहली बार वे इस नाते संसद में मौजूद हैं। चुनावी और दलगत मसलों पर देश भर में सार्वजनिक मंचों पर तो उन्हें जनता देखती-सुनती आई लेकिन संसद के बजट सत्र में एक मंत्री के तौर पर उनका जो रूप देखने को मिल रहा है, वह निश्चित ही कुछ अलग है। वे तथ्यों पर ना केवल बात कर रहे हैं बल्कि दृष्टांतों को मजबूती के साथ इस तरह रख रहे हैं कि विपक्ष के लिए प्रत्युत्तर तो दूर, कुछ भी कहना मुश्किल हो जा रहा।
इन दिनों संसद का बजट सत्र चल रहा है। इसमें अमित शाह शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की अवधि पर बोल रहे थे। लोकसभा में चर्चा के दौरान उन्होंने इसकी अवधि 6 माह और बढ़ाने की बात की। मनीष तिवारी को मुंहतोड़ जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि आप हमें इतिहास के बारे में जानकारी ना दें, हमें बेहतर पता है। शाह ने कुछ बुनियादी सवाल उठाए। उन्होंने पूछा कि कश्मीर में आखिर सीजफायर का निर्णय किसने लिया था?
शाह ने यह भी कहा कि विपक्ष हम पर आरोप लगाता है कि हम विपक्षी दलों को विश्वास में लेकर नहीं चलते हैं लेकिन नेहरू ने उस समय तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल को विश्वास में लिए बिना इतना बड़ा फैसला क्यों और कैसे ले लिया था? विश्वास में लेना तो दूर, उनसे सहमति भी नहीं ली गई। अमित शाह की बातों के निहितार्थ गहरे हैं। वे उन तथ्यों और घटनओं को गिना रहे थे, जिनसे आज सरकार को घेर रहे विपक्ष खासकर कांग्रेस को आईना दिखाया जा सके।
गौरतलब है कि कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाओं और आतंकी वारदातों को किन ताकतों का गुप्त प्रश्रय मिला हुआ था, यह बात किसी से छुपी नहीं है। राष्ट्रपति शासन लगने के बाद वहां हालात अभी नियंत्रण में हैं। आतंकी घटनाएं कम हुईं हैं और पत्थरबाजी की वारदातें भी थमी हैं। लेकिन राष्ट्रपति शासन पर भी विपक्ष को तकलीफ है। अब शाह ने विपक्ष की इस तकलीफ को अपने वक्तव्य से और बढ़ा दिया। उन्होंने कांग्रेस को याद दिलाया कि अभी तक 132 बार संविधान की धारा 356 यानी राष्ट्रपति शासन लगाई गयी है। इनमें से अकेली कांग्रेस के शासन में यह धारा 93 बार लगाई गई। इसके बावजूद कांग्रेस जाने किस मुंह से राष्ट्रपति शासन पर सवाल खड़े कर रही है।
शाह ने अपने इस ऐतिहासिक और शानदार भाषण में तथ्यों की मानो झड़ी लगा दी। उन्होंने बताया कि भारत सरकार ने 919 ऐसे लोगों की सुरक्षा वापस ले ली है जिन्हें यह सुविधा पुलिस द्वारा उपलब्ध कराई जाती थी। ये लोग कौन हैं। ये लोग वे नेता हैं जो भारत विरोधी बयानबाजी करते थे। आश्चर्य है कि इन लोगों को अभी तक उपकृत कैसे किया जा रहा था।
साथ ही, बीते 30 सालों में सुरक्षाबल अपने सैन्य ऑपरेशन केवल घाटी तक ही सीमित रख पाते थे लेकिन मोदी सरकार ने सेना का हौसला बढ़ाया है, उनमें विश्वास दिखाया है और उन्हें खुलकर कार्रवाई करने की छूट दी है, जिसके चलते ही उरी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक और पुलवामा हमले के बाद एयर स्ट्राइक जैसे महत्वपूर्ण ऑपरेशंस संभव हो सके हैं। धारा 370 पर शाह ने विपक्ष को करारा जवाब देते हुए इस आर्टिकल को ठीक से पढ़ने और समझने की नसीहत दी। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह धारा एक अस्थायी व्यवस्था है, इसलिए इस पर बोलने से पहले जानकारी दुरुस्त कर लेना चाहिये।
असल में, अमित शाह ने राष्ट्रपति शासन को लेकर जो तथ्य प्रस्तुत किए उनसे विपक्ष तिलमिलाया हुआ है। अहम सवाल यह भी उठता है कि आखिर कांग्रेस को कश्मीर में राष्ट्रपति शासन से क्या समस्या है। इसकी अवधि बढ़ाने का विपक्ष आखिर विरोध क्यों कर रहा है। शाह ने बारीकियों पर ध्यान दिलाते हुए कहा कि इन सब कार्यों का अधिकार और दायित्व चुनाव आयोग का है जो साल भर इन्हीं के लिए काम करता है। इस पर हमें नहीं बोलना चाहिये, यह आयोग के क्षेत्राधिकार का विषय है।
विपक्ष ने पिछले दिनों यह आशंका व्यक्त की थी कि सरकार वहां फिर से परिसीमन या किसी अन्य कारणों का हवाला देकर राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ा सकती है। यह आशंका भी नहीं, सीधा आरोप ही है। लेकिन कांग्रेस को बुनियादी नियमों की भी जानकारी नहीं है। वास्तव में चुनाव आयोग जब तय करेगा, तभी वहां पर चुनाव होंगे, ऐसे में हड़बड़ी मचाने और सवाल उठाने का कोई मतलब नहीं है। कश्मीर के मौजूदा हालातों के लिए कौन जिम्मेदार है, यह अब स्पष्ट हो चुका है। धर्म के आधार पर प्रांत को बांटने वाली कांग्रेस को अधिकार नहीं है कि अब वह इस मसले पर कुछ भी कहे।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)