भारतीय राजनीति के करिश्माई व्यक्तित्व हैं अमित शाह

जुलाई, 2014 में पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने के बाद अमित शाह ने संगठन में कई नए प्रयोग किए। शाह के नेतृतव में भाजपा 10 करोड़ से भी अधिक सदस्यों वाली विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बनी। नए जुड़े सदस्यों को महासंपर्क अभियान के जरिये पार्टी की रीति-नीति से वाकिफ कराया। एकात्म मानववाद के प्रणेता पं. दीनदयाल उपाध्याय की जन्मशती वर्ष में उन्होंने पार्टी के छोटे से लेकर बड़े नेता को कम से कम 15 दिन पूरी तरह से पार्टी को देने का आह्वान किया।

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का दो दिवसीय उत्तराखण्ड दौरा न केवल अनूठा है, अपितु संपूर्ण राजनीतिक प्रतिष्ठान के लिए एक लंबी लकीर खींचने वाला भी साबित होगा। अमित शाह अपने दो दिनी प्रवास में पार्टी की सबसे छोटी इकाई ‘मडंल’ के पदाधिकारियों से लेकर प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं और मंत्रियों-विधायकों के साथ ताबडतोड़ बैठकें करेंगे। साथ ही, बुद्धिजीवियों से भी संवाद स्थापित करेंगे।

यह कवायद अधिकांश लोगों के लिए कौतुहल का विषय जरूर हो सकती है। मगर ‘‘पालिटिक्स ऑफ परफारमेंस’’ के एक नए युग की शुरूआत करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ सांगठनिक मोर्चे पर कदम से कदम मिलाकर चलने वाले पार्टी अध्यक्ष शाह की कार्यशैली में कुछ नया करना हमेशा शामिल रहा है। उनकी अनूठी और सफल कार्यशैली उन्हें भारतीय राजनीति के करिश्माई व्यक्तित्व के रूप में स्थापित करती है।

भाजपा की आज केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार है। 13 राज्यों की कमान पार्टी के पास है और 5 राज्यों में गठबंधन की सरकार। 330 सांसद व 1387 विधायकों के साथ आज देश में भाजपा को सबसे बड़े राजनीतिक दल की हैसियत प्राप्त है। इसके बावजूद पार्टी के प्रमुख अमित शाह देशभर के राज्यों का 2 से लेकर 3 दिन तक का दौरा कर रहे हैं।

अपने इस अभियान की शुरूआत अमित शाह ने इस वर्ष 25 अप्रैल को नक्सलवाड़ी आंदोलन के दौरान हिंसा के लिए कुख्यात रहे पश्चिम बंगाल के नक्सलवाड़ी गांव के एक वार्ड का दौरा कर की। तबसे लगातार राज्यों का प्रवास करने में जुटे हुए हैं। अपने अभियान के अंतिम चरण में वे उत्तराखण्ड पहुँच रहे हैं। जब उनका यह अभियान संपन्न होगा, तब तक वे 110 दिन में लगभग एक लाख किमी की यात्रा कर चुके होंगे।

कई लोगों के मन में यह सवाल उठ सकता है कि लगातार विजयश्री का वरण करने वाली पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को आखिर इतना घूमने की क्या जरूरत पड़ी? क्यों वे पार्टी के निचले स्तर तक के कार्यकर्ताओं से मिलने की कवायद कर रहे हैं? इतनी शक्ति संपन्न पार्टी के अध्यक्ष दिल्ली  में बैठे-बैठे भी तो फरमान जारी कर सकते थे। इन तमाम सवालों का आसान जवाब इस वर्ष अप्रैल माह में भुवनेश्वर में संपन्न हुई भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अमित शाह के अध्यक्षीय भाषण में मिलता है।

अपने भाषण में शाह ने कहा कि लगातार  मिल रही विजय कार्यकर्ताओं के मन में आलस्य निर्माण न करे दे, इसलिए कार्यकर्ता दृढ़ संकल्प के साथ संगठन विस्तार व देश के विकास के लिए आगे बढ़ने का प्रण लें।  उन्होंने कार्यकर्ताओं का आह्वान किया कि परिश्रम की ऐसी ‘पराकाष्ठा’ पर पहुंचें, जिससे देशभर में एक भी ऐसा बूथ न बचे जहां ‘कमल’ न खिला हो। उन्होंने संगठन व सरकार के स्वरूप को लेकर अपनी मंशा भी स्पष्ट की और कहा कि हम ऐसी व्यवस्था कायम करें कि बाकी पार्टियां भी इस रास्ते पर चलने को मजबूर हों तभी देश के राजनीतिक मानचित्र में बदलाव होगा।

दरअसल, अमित शाह के राजनीतिक इतिहास को देखा जाए तो वह लीक से हटकर चलने में विश्वास रखते हैं। बायो कैमेस्ट्री में स्नातक शाह छात्र जीवन के दौरान अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए। भाजपा में उनके राजनीतिक जीवन की शुरूआत अहमदाबाद में एक बूथ के पोलिंग एजेंट के रूप में हुई। मात्र 31 वर्ष की आयु में वे गुजरात की सरखेज विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए।

राजनीति में ऐसा दुर्लभ होता है कि कोई व्यक्ति एक क्षेत्र से लगातार चार-पांच बार विजयी हो और हर बार जीत का अंतर व मत प्रतिशत बढ़ता जाए। शाह ने यह रिकॉर्ड कायम किया है। सरखेज विधानसभा से चार बार चुनाव जीतने वाले शाह अपना पिछला रिकार्ड तोड़ते गए। परिसीमन के पश्चात पॉचवी बार वे नारनपुरा विधानसभा सीट से 69.19 प्रतिशत मतों के साथ विजयी हुए।

गुजरात में शाह की सबसे बड़ी राजनीतिक उपलब्धि सहकारी आंदोलन में कांग्रेसी किले को ध्वस्त करना रहा है। राजनीतिक क्षितिज पर तेजस्वी नक्षत्र की तरह उभरे शाह के करियर पर कांग्रेस ने सोहराबुद्दीन व इशरत जहॉ मुठभेड़ मामलों को लेकर ग्रहण लगाने का षडयंत्र रचा। मगर झूठ के पाँव नहीं होते, वो जल्दी लड़खड़ा जाता है। कोर्ट ने उन्हें ससम्मान बरी किया।

राष्ट्रीय राजनीति में उनके करिश्माई व्यक्तित्व से लोग 2014 के लोकसभा चुनावों में रूबरू हुए, जब पार्टी ने उत्तर प्रदेश में 80 में से 73 लोकसभा सीटों पर विजय प्राप्त की। वो लगातार अपनी सांगठनिक व प्रबंधकीय क्षमता का लोहा मनवाते रहे। माइक्रो मैंनेजमेंट व बूथ मैनेजमेंट में शाह को ऐसी महारथ हासिल है कि विरोधी परास्त ही नहीं होते हैं, अपितु विजय का रिकॉर्ड भी शाह के खाते में जाता है।

जुलाई 2014 में पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने के बाद उन्होंने संगठन में कई नए प्रयोग किए। शाह के नेतृतव में भाजपा 10 करोड़ से भी अधिक सदस्यों वाली विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बनी। नए जुड़े सदस्यों को महासंपर्क अभियान के जरिये पार्टी की रीति-नीति से वाकिफ कराया। एकात्म मानववाद के प्रणेता पं. दीनदयाल उपाध्याय की जन्मशती वर्ष में उन्होंने पार्टी के छोटे से लेकर बड़े नेता को कम से कम 15 दिन पूरी तरह से पार्टी को देने का आह्वान किया। स्वयं शाह 15 दिनों तक पश्चिम बंगाल, तेंलगाना, लक्षद्वीप, गुजरात व उड़ीसा में लगातार बूथों का दौरा करते रहे।

उन्होंने पार्टी में विस्तारक योजना शुरू की। इस योजना के तहत पूरे देश में 15 दिन, 6 माह व एक साल का समय पार्टी को समर्पित करने वाले करीब 4 लाख कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी हुई है। उम्मीद की जानी चाहिए कि लोक कल्याणकारी सरकार व सुदृढ़ संगठन को लेकर उनके व्यापक अनुभवों का लाभ दो दिवसीय दौरे के दौरान उत्तराखण्ड को भी मिलेगा।

(लेखक उत्तराखंड भाजपा के मीडिया विभाग के प्रमुख हैं।)