अमित शाह के ‘चतुर बनिया’ वाले बयान के बाद कांग्रेस की प्रतिक्रिया बिलकुल स्वाभाविक है। देश के पहले प्रधानमंत्री से लेकर आज तक कांग्रेस ही ज़्यादातर देश की सत्ता पर काबिज़ रही है और कांग्रेस के शीर्ष पर नेहरू-गांधी परिवार का ही दबदबा रहा है। गांधी को ये अंदेशा था, इसीलिए वो कांग्रेस को भंग करने की बात कहे थे। मगर, कांग्रेस ने उनकी इस इच्छा का तो सम्मान नहीं किया, बल्कि उनके पुण्यों के दम पर देश की सत्ता का भोग करती रही। आज अमित शाह ने अपने बयान के ज़रिये इसी सच्चाई का आईना कांग्रेस के सामने रख दिया तो वो तिलमिला उठी है।
बीते दिनों बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने रायपुर में महात्मा गाँधी के बारे में एक बयान दिया कि “वह एक चतुर बनिया थे।” इसके बाद इस मुद्दे पर राजनीतिक बहस शुरू हो गई। कांग्रेस ने कहा कि अमित शाह इस बयान पर माफ़ी मांगे। दरअसल बीजेपी अध्यक्ष ने जिस परिपप्रेक्ष्य में यह बयान दिया था, उसका आशय कुछ और था।
महात्मा गाँधी उस वक़्त इस सच से वाकिफ थे कि देश की आज़ादी के बाद कांग्रेस के बने रहने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। शायद बापू ने यह भांप लिया था कि कांग्रेस अगर कायम रही तो उसके पीछे कोई त्याग, तपस्या और निःस्वार्थ सेवा जैसी भावना कतई नहीं रह जाएगी। बापू की दूरदर्शिता ने यह भांप लिया था कि उस वक़्त कांग्रेस को जिन लोगों ने जकड़ रखा था, उनका मकसद सिर्फ यही था कि सत्ता और रसूख को हर हाल में कायम रखा जाए। उनका यह अंदेशा आज सही साबित होता ही नज़र आ रहा है।
रही बनिया होने की बात तो महात्मा गाँधी बनिया थे, यह बात उन्होंने खुद एक बार नहीं कई मौके पर दोहराई थी। महात्मा को अगर इसमें आपत्ति होती तो वह बार-बार अपने बनिया होने का ज़िक्र नहीं करते। दरअसल गुजरात के समाज से अगर आप थोड़े बहुत भी वाकिफ हों, तो वहां बनिया होना हमेशा एक फख्र की बात मानी जाती है। गुजरात में इस समाज की साख किसी मायने में कम नहीं है।
सवाल उठता है कि आखिर कांग्रेस अमित शाह के इस बयान से इतना तिलमिलाई क्यों है ? कांग्रेस को अमित शाह के इस बयान से दुःख इसलिए पहुंचा, क्योंकि इस बयान के जरिये उन्होंने कांग्रेस की दुखती रग पर ऊँगली रख दी। शाह ने आज़ादी के बाद कांग्रेस को भंग कर देने की गांधी की मंशा का आईना एकबार फिर कांग्रेस के सामने रख दिया।
गांधी कांग्रेस के प्रति जो आशंकाएं रखते थे, आज वे सब सही साबित हुई हैं। कांग्रेस के अन्दर लोकतंत्र की सख्त कमी है, इसलिए कांग्रेस का सर्वसंचालन नेहरू-गांधी परिवार के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा है। अध्यक्ष पद की बात करें, तो यह निश्चित हो रखा है कि सोनिया गाँधी के बाद कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर राहुल गांधी बैठने वाले हैं। जिस पार्टी नेता ने भी कांग्रेस की इस संस्कृति पर सवाल उठाया, उसे हमेशा-हमेशा के लिए कांग्रेस से निकाल बाहर फेंका गया।
ऐसे में, अमित शाह के इस बयान के बाद कांग्रेस की प्रतिक्रिया बिलकुल स्वाभाविक है। देश के पहले प्रधानमंत्री से लेकर आज तक कांग्रेस ही ज़्यादातर सत्ता पर काबिज़ रही है और कांग्रेस के शीर्ष पर नेहरू-गांधी परिवार का ही दबदबा रहा है। गांधी को ये अंदेशा था, इसीलिए वो कांग्रेस को भंग करने की बात कहे थे। मगर, कांग्रेस ने उनकी इस इच्छा का तो सम्मान नहीं किया, बल्कि उनके पुण्यों के दम पर देश की सत्ता का भोग करती रही।
आज अमित शाह ने ‘चतुर बनिया’ वाले बयान के ज़रिये इसी सच्चाई का आईना कांग्रेस के सामने रख दिया तो वो सच को स्वीकारने की बजाय बयान के एक शब्द का बतंगड़ बनाकर मूल मुद्दे से ध्यान भटकाने में लगी है। अमित शाह के इस बयान से कांग्रेस की बिलबिलाहट का असल कारण यही है।
नमक सत्याग्रह के दौर में इस एक निहत्थे शख्स ने अंग्रेजों को झुका दिया, एक वैसे साम्राज्य को जिसमें कभी सूरज नहीं डूबता था। अहिंसा की ताक़त ने लार्ड इरविन को सत्याग्रहियों के सामने झुकने के लिए विवश कर दिया। गाँधी-इरविन समझौते ने अग्रेजों की ताबूत में जैसे आखिरी कील ठोंक दी।
जब जिन्ना ने खुद को मुसलमानों का रहनुमा बताना शुरू किया तब महात्मा गाँधी का ज़ोर हमेशा इस बात पर था कि उन्हें कुछ भी कमतर मंजूर नहीं; उन्होंने कहा कि वह चूँकि बनिया हैं, इसलिए जानते हैं कि उन्हें सिर्फ हिन्दुओं का नहीं, मुसलमानों का भी समर्थन चाहिए।
गाँधी ने अपनी किताब “एक्सपेरिमेंट्स विथ ट्रुथ” में अपने बनिया होने का ज़िक्र किया है। गाँधी ने लिखा है कि जिस मौढ बनिया समुदाय से वह आते हैं, उसमें से अभी तक कोई भी सात समंदर पार नहीं गया। दरअसल गाँधी जी पोरबंदर के पंसारी परिवार से ताल्लुक रखते थे और इस लिहाज़ से गाँधी जी को इस बात को बार बार दोहराने में कोई गुरेज़ नहीं था कि वह एक बनिया परिवार से थे, शायद उस समय जाति और वोट की राजनीति का कोई कांसेप्ट था भी नहीं।
स्पष्ट है कि गांधी ने हमेशा अपने बनिया होने का जिक्र सगर्व किया है। फिर अमित शाह ने अगर उन्हें ‘चतुर बनिया’ कह दिया तो इसपर इतना हंगामा मचाना समझ से परे है। बयान के एक-एक शब्द की मीन-मेख निकालने की बजाय उसके मूल भाव को देखने की ज़रूरत है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)