भले ही अन्ना हजारे कह रहे हों कि इस बार आंदोलन में शामिल लोगों से एक शपथ पत्र लिया जाएगा कि वे कोई राजनीतिक पार्टी नहीं बनाएंगे लेकिन इस बात की क्या गारंटी कि शपथ लेकर दूसरा केजरीवाल पैदा नहीं होगा। इसलिए अन्ना हजारे को सबसे पहले अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी (अरविंद केजरीवाल) की जनविरोधी नीतियों और भ्रष्टाचार के विरूद्ध जनांदोलन करना चाहिए।
इसे विडंबना ही कहेंगे कि एक ओर अन्ना हजारे भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के दूसरे चरण का आगाज कर रहे हैं तो दूसरी ओर उनकी राजनीतिक पैदाइश (अरविंद केजरीवाल) भ्रष्टाचार के नित नए कीर्तिमान बना रहे हैं। इतना ही नहीं, एक नई तरह की राजनीति करने का दावा करने वाले अरविंद केजरीवाल आजकल माफीनामा लेकर घूम रहे हैं। गौरतलब है कि ईमानदारी और स्वच्छता के नए प्रयोग के दावे और वादे के साथ राजनीति में उतरने वाले केजरीवाल पर जनता ने इसलिए विश्वास जताया कि वे किसी झूठ या अफवाह के सहारे राजनीति न करने का वादा किया था। लेकिन, आगे चलकर वे अपने वादों-दावों पर खरे नहीं उतरे।
पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले अपनी राजनीति चमकाने के लिए केजरीवाल ने शिरोमणि अकाली दल के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया को मादक पदार्थों के तस्करों का सरगना कहा था और पंजाब में सरकार बनने के एक महीने के भीतर उन्हें जेल में ठूसने का वादा किया था; लेकिन, आज उन्हीं मजीठिया से केजरीवाल लिखित माफी मांग रहे हैं। देखा जाए तो जाति-धर्म-क्षेत्र-भाषा से परे एक नई तरह की राजनीति का आगाज करने वाली आम आदमी पार्टी केजरीवाल की राजनीतिक महत्वाकांक्षा का शिकार बनकर रह गई। यही कारण है कि व्यवस्था बदलने का नारा लगाने वाले लोग व्यवस्था के रंग और गाढ़ा करने लगे हैं।
अन्ना हजारे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरूद्ध नहीं, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ आंदोलन करना चाहिए क्योंकि, केजरीवाल उन्हीं के सिद्धांतों-आदर्शों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। दूसरे, केजरीवाल किसी राजनीतिक आंदोलन की नहीं, बल्कि कांग्रेसी काल में हुए लाखों करोड़ रूपये के घोटालों के खिलाफ चले व्यापक सामाजिक आंदोलन की उपज थे।
केजरीवाल ने सबसे बड़ा अपराध यह किया कि आम आदमी के नाम पर देश में वैकल्पिक राजनीति की सशक्त धारा को सत्ता की राजनीति में बदलकर उसका गला घोंट दिया। कांग्रेसी काल में राज्यसभा की एक-एक सीट सौ-सौ करोड़ में बिकने के विरूद्ध आंदोलन चलाने वाले केजरीवाल खुद ही राज्यसभा की सीट बेचने लगे। आखिर राज्यसभा में नामांकन के महज 35 दिन पहले तक केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की सरकार के विरूद्ध आंदोलन करने वाले सुशील गुप्ता में ऐसी कौन सी खासियत थी जो केजरीवाल ने उन्हें दिल्ली से राज्य सभा का टिकट देकर संसद सदस्य बनवाया।
भले ही अन्ना हजारे कह रहे हों कि इस बार आंदोलन में शामिल लोगों से एक शपथ पत्र लिया जाएगा कि वे कोई राजनीतिक पार्टी नहीं बनाएंगे लेकिन इस बात की क्या गारंटी कि शपथ लेकर दूसरा केजरीवाल पैदा नहीं होगा। इसलिए अन्ना हजारे को सबसे पहले अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी (अरविंद केजरीवाल) की जनविरोधी नीतियों और भ्रष्टाचार के विरूद्ध जनांदोलन करना चाहिए।
रही बात स्वामिनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू कराने के लिए जनांदोलन की, तो मोदी सरकार किसानों को उनकी उपज की लाभकारी कीमत दिलाने की दिशा में ठोस पहल कर रही है। हां, इसके नतीजे आने में समय लगेगा क्योंकि, आजादी के बाद कृषि उपजों के विपणन के ठोस ढांचागत उपाय किए ही नहीं गए। उदारीकरण के दौर में जिस गति से विदेशों से कृषि उपजों का आयात बढ़ा, उस गति से भारत से निर्यात नहीं बढ़ पाया।
इसके लिए ढांचागत खामियों के अलावा ऊंची परिवहन लागत की मुख्य भूमिका रही है। इसे आलू के उदाहरण से समझा जा सकता है। चिली से नीदरलैंड की दूरी 13000 किमी है जबकि भारत से नीदरलैंड के बीच की दूर महज सात हजार किमी है। इसके बावजूद नीदरलैंड के बाजारों में चिली का आलू सस्ता पड़ता है जबकि उंची क्वालिटी के बावजूद महंगे परिवहन लागत के चलते भारतीय आलू पिछड़ जाता है। यही हालत सेब व गेहूं की भी है। ऊंची परिवहन लागत के कारण दक्षिण भारतीय बाजारों में घरेलू सेब और गेहूं महंगे पड़ते हैं जबकि आयातित सेब और गेहूं सस्ते। कमोबेश यही हाल दूसरे कृषि उपजों का भी है। स्पष्ट है किसानों की बदहाली की एक बड़ी वजह ऊची परिवहन लागत भी है।
लेकिन, किसानों को सस्ते आयात की मार से बचाने और उपज की लाभकारी कीमत दिलाने हेतु मोदी सरकार एक ओर आयात शुल्क बढ़ा रही है, तो दूसरी ओर परंपरागत मंडी व्यवस्था को इलेक्ट्रानिक नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट (ई-नाम) में बदल रही है। कृषि उपजों के कारोबार को बढ़ावा देने हेतु देश के इतिहास में पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाजिस्टिक लागत घटाने की पहल की है। इसके तहत अपर सचिव की अध्यक्षता में लॉजिस्टिक डिवीजन का गठन किया गया है। यह डिवीजन माल भाड़ा लागत में कमी लाने के उपाय कर रहा है।
इसके अलावा मोदी सरकार खेती की लागत घटाने और 2022 तक किसानों की आमदनी दो गुनी करने के लिए कृषिगत आधारभूत ढांचा बना रही है। इसके लिए कई योजनाएं शुरू की गईं हैं जैसे प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, यूरिया पर नीम का लेपन, सोलर पंप सेट, ग्रामीण विद्युतीकरण, जैविक खेती और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना।
कई भाजपा शासित राज्य सरकारों ने भी किसानों को उपज की वाजिब कीमत दिलाने की अनूठी पहल की है, जैसे मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री भावांतर भुगतान योजना और हरियाणा की भावांतर भरपाई योजना। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी सरकारी खरीद का दायरा बढ़ाया है जिससे किसानों को अपनी उपज की लाभकारी कीमत मिलने लगी है। स्पष्ट है, अन्ना हजारे को आंदोलन की बजाय सहयोग का रास्ता अपनाना चाहिए ताकि किसानों की बेहतरी के लिए ठोस उपाय किए जा सकें। दुर्भाग्यवश अन्ना हजारे राजनीति से प्रेरित होकर जनांदोलन की राह चल पड़े हैं।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)