भारत के अंतरिक्ष इतिहास में पहली बार एक साथ 20 सैटलाइट लॉन्च करके इसरों ने इतिहास रच दिया। इसमें तीन स्वदेशी और 17 विदेशी सेटेलाइट शामिल है। एक साथ 20 सैटेलाईट सफलतापूर्वक प्रक्षेपित करने के बाद और हाल में ही स्वदेशी स्पेस शटल की सफल लॉंचिंग के बाद दुनियां भर में भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरों की धूम मची है। इस सफलता ने 200 अरब डॉलर के अंतरिक्ष बाजार में भी तेज हलचल पैदा कर दिया है,क्योंकि बेहद कम लागत की वजह से अधिकांश देश अपने उपग्रहों का प्रक्षेपण करने के लिए भारत का रूख करेंगे। लेकिन अब समय आ गया है जब इसरो व्यावसायिक सफलता के साथ-साथ अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की तरह अंतरिक्ष अन्वेषण पर भी यादा ध्यान दे। इसरो को अंतरिक्ष अन्वेषण और शोध के लिए दीर्घकालिक रणनीति बनानी होगी। क्योकि जैसे-जैसे अंतरिक्ष के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढेगी अंतरिक्ष अन्वेषण बेहद महत्वपूर्ण होता जाएगा। इस काम के लिए सरकार को इसरो का सालाना बजट भी बढ़ाना पड़ेगा जो फिलहाल नासा के मुकाबले काफी कम है। भारी विदेशी उपग्रहों को अधिक संख्या में प्रक्षेपित करने के लिए अब हमें पीएसएलवी के साथ-साथ जीएसएलवी रॉकेट का भी उपयोग करना होगा। पीएसएलवी अपनी सटीकता के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है लेकिन यादा भारी उपग्रहों के लिए जीएसएलवी का प्रयोग करना होगा।
वैसे तो भारत के सफल चंद्र मिशन और मंगल मिशन के बाद से ही इसरो व्यावसायिक तौर पर काफी सफल रहा है और इसरों के प्रक्षेपण की बेहद कम लागत की वजह से दुनिया भर के कई देश अब इसरो से अपने उपग्रहों की लांचिंग करा रहें है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री कार्यालय में राय मंत्री जितेन्द्र सिंह ने रायसभा में बताया था कि भारत इस साल सात देशों के 25 उपग्रहों को प्रक्षेपित करने वाला है जिसमें सबसे यादा अमेरिका का 12 उपग्रह शामिल हैं। जबकि भारत ने अभी तक पीएसएलवी के जरिये 21 देशों के 57 विदेशी उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण किया है। अंतरिक्ष बाजार में भारत के लिए संभावनाएं बढ़ रही है, इसने अमेरिका सहित कई बड़े देशों का एकाधिकार तोड़ा है। असल में, इन देशों को हमेशा यह लगता रहा है कि भारत यदि अंतरिक्ष के क्षेत्र में इसी तरह से सफलता हासिल करता रहा तो उनका न सिर्फ उपग्रह प्रक्षेपण के कारोबार से एकाधिकार छिन जाएगा बल्कि मिसाइलों की दुनिया में भी भारत इतनी मजबूत स्थिति में पहुंच सकता है कि बड़ी ताकतों को चुनौती देने लगे। पिछले दिनों दुश्मन मिसाइल को हवा में ही नष्ट करनें की क्षमता वाली इंटरसेप्टर मिसाइल का सफल प्रक्षेपण इस बात का सबूत है कि भारत बैलेस्टिक मिसाइल रक्षा तंत्र के विकास में भी बड़ी कामयाबी हासिल कर चुका है। दुश्मन के बैलिस्टिक मिसाइल को हवा में ही ध्वस्त करने के लिए भारत ने सुपरसोनिक इंटरसेप्टर मिसाइल बना कर दुनिया के विकसित देशों की नींद उड़ा दी है।
एक समय ऐसा भी था जब अमेरिका ने भारत के उपग्रहों को लॉच करने से मना कर दिया था। आज स्थिति ये है कि अमेरिका सहित तमाम देश खुद भारत के साथ व्यावसायिक समझौता करने को इछुक है। अब पूरी दुनिया में सैटलाइट के माध्यम से टेलीविजन प्रसारण , मौसम की भविष्यवाणी और का दूरसंचार का क्षेत्र बहुत तेज गति से बढ़ रहा है और चूंकि ये सभी सुविधाएं उपग्रहों के माध्यम से संचालित होती हैं, इसलिए संचार उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने की मांग में तेज बढ़ोतरी हो रही है। हालांकि इस क्षेत्र में चीन, रूस, जापान आदि देश प्रतिस्पर्धा में हैं, लेकिन यह बाजार इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि यह मांग उनके सहारे पूरी नहीं की जा सकती। ऐसे में व्यावसायिक तौर पर यहां भारत के लिए बहुत संभावनाएं है। कम लागत और सफलता की गारंटी इसरो की सबसे बड़ी ताकत है जिसकी वजह से अंतरिक्ष इंडस्ट्री में आने वाला समय भारत के एकाधिकार का होगा।
अब तो अमेरिका भी अपने सैटेलाइट लॉचिंग के लिए भारत की लगातार मदद ले रहा है जो अंतरिक्ष बाजार में भारत की धमक का स्पष्ट संकेत है, अमेरिका 20वां देश है जो कमर्शियल लांच के लिए इसरो से जुड़ा है। भारत से पहले अमेरिका, रूस और जापान ने ही स्पेस ऑब्जर्वेटरी लॉंच किया है। वास्तव में नियमित रूप से विदेशी उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण ‘भारत की अंतरिक्ष क्षमता की वैश्विक अभिपुष्टि’ है। अमेरिका की फ्यूट्रान कॉरपोरेशन की एक शोध रिपोर्ट भी बताती है कि अंतरिक्ष जगत के बड़े देशों के बीच का अंतरराष्ट्रीय सहयोग रणनीतिक तौर पर भी सराहनीय है। वास्तव में इस क्षेत्र में किसी के साथ सहयोग या भागीदारी सभी पक्षों के लिए लाभदायक स्थिति है। इससे बड़े पैमाने पर लगने वाले संसाधनों का बंटवारा हो जाता है। खासतौर पर इसमें होने वाले भारी खर्च का। यह भारतीय अंतरिक्ष उद्योग की वाणियिक प्रतिस्पर्धा की श्रेष्ठता का गवाह भी है।
वर्ष 1969 में प्रसिद्ध वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के निर्देशन में राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का गठन हुआ था। तब से अब तक चांद पर अंतरिक्ष यान भेजने की परिकल्पना तो साकार हुई। अब हम चांद पर ही नहीं, बल्कि मंगल पर भी सफलतापूर्वक पहुंच गए हैं। 19 अप्रैल, 1975 में स्वदेश निर्मित उपग्रह आर्यभट्ट के प्रक्षेपण के साथ अपने अंतरिक्ष सफर की शुरुआत करने वाले इसरो की यह सफलता भारत के अंतरिक्ष में बढ़ते वर्चस्व की तरफ इशारा करती है। भारत की पहली बड़ी सफलता थी 1975 में उपग्रह आर्यभट्ट का अंतरिक्ष में भेजा जाना और फिर उसके बाद 1984 में स्क्वायड्रन लीडर राकेश शर्मा बने अंतरिक्ष में जानेवाले पहले भारतीय। जब अंतरिक्ष विज्ञान की शुरुआत हुई तो सोवियत संघ और अमेरिका के बीच अंतरिक्ष दौड़ की शुरुआत हुई। सोवियत संघ ने पहले उपग्रह स्पूतनिक का प्रक्षेपण करने में सफलता हासिल की तो अमेरिका ने चांद पर आदमी पहले भेजकर उसका जवाब दिया लेकिन भारत का मामला दूसरा था। लंदन स्थित अंतरिक्ष वैज्ञानिक डॉक्टर एंड्रयू कोएट्स के अनुसार भारत ने आजादी के 15 साल के अंदर ही अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू करने के बाद लगातार प्रगति की और एकमात्र ऐसा प्रगतिशील देश बना जो अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में विकसित देशों के बीच जा खड़ा हुआ। उनके अनुसार भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम परिपक्व लगता है और साथ ही उसका खास ध्यान देश की प्रगति पर है, बात चाहे संचार उपग्रहों की हो या रिमोट सेंसिंग की, भारत ने इन संचार उपग्रहों का उपयोग लोगों की भलाई के लिए किया है।
भविष्य में अंतरिक्ष में प्रतिस्पर्धा और बढ़ने वाली है। भारत के पास कुछ बढ़त पहले से है, इसमें और प्रगति करके इसका बड़े पैमाने पर वाणियिक उपयोग संभव है। भारत अंतरिक्ष विज्ञान में नई सफलताएं हासिल कर विकास को अधिक गति दे सकता है। देश में गरीबी दूर करने और विकसित भारत के सपने को पूरा करने में इसरो काफी मददगार साबित हो सकता है।
(लेखक मेवाड़ यूनिवर्सिटी, राजस्थान में डिप्टी डायरेक्टर (रिसर्च) हैं)