चाय को लेकर मणिशंकर अय्यर ने मजाक बनाया था। पकौड़े पर पी चिदंबरम ने अपनी बुद्धि का प्रदर्शन किया है। दोनों की नरेंद्र मोदी के प्रति कुंठा भी रही है। अय्यर के निशाने पर मोदी थे। चिदंबरम ने भी उनके बहाने गरीबों का मजाक उड़ाया। मोदी ने ठीक ही कहा था कि पकौड़ा बनाना भी रोजगार है। इसपर चिदंबरम का अर्थशास्त्र जाग उठा। वह बोले यदि पकौड़ा बनाना रोजगार है, तो भीख मांगना भी रोजगार है। क्या चिदंबरम या यूँ कहें कि कांग्रेस का यह मानना है कि देश के सभी छोटे व्यवसायी भीख मांग रहे हैं ?
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस ने चाय बेचने को लेकर मजाक बनाया था। इसके बाद कांग्रेस खुद मजाक बन गई थी। इस बार उसने पकौड़े पर मजाक बनाया है। कांग्रेस का राजनीतिक स्तर तो गिरा हुआ है ही, विरोध का यह तरीका कांग्रेस के वैचारिक स्तर को भी गिराता है। इसका लाभ नहीं, नुकसान ही होता है। बात नरेंद्र मोदी या भाजपा तक सीमित हो तो उस पर आपत्ति नहीं हो सकती। लेकिन, ऐसे बयानों में देश में असंगठित क्षेत्र में कार्य करने वाले करोड़ो लोग आ जाते हैं। लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के बड़े नेता मणिशंकर अय्यर ने नरेंद्र मोदी को नीचा दिखाने के लिए बयान दिया था। उनका कहना था कि मोदी चाहेंगे तो कांग्रेस के अधिवेशनों में उन्हें चाय बेचने का कार्य दिया जा सकता। मोदी उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे। लेकिन अय्यर की यह भाषा असंगठित क्षेत्र के सभी लोगों के लिए अपमानजनक थी।
मगर लगता है कि तबकी फजीहत और चुनाव में जनता द्वारा खारिज किए जाने के बाद भी कांग्रेस ने सबक नहीं लिया। उसने फिर उसी मानसिकता का परिचय दिया। केवल किरदार बदला है। चाय को लेकर मणिशंकर अय्यर ने मजाक बनाया था। पकौड़े पर पी चिदंबरम ने अपनी बुद्धि का प्रदर्शन किया है। दोनों की नरेंद्र मोदी के प्रति कुंठा भी रही है। अय्यर के निशाने पर मोदी थे। चिदंबरम ने भी उनके बहाने गरीबों का मजाक उड़ाया। मोदी ने ठीक ही कहा था कि पकौड़ा बनाना भी रोजगार है। इसपर चिदंबरम का अर्थशास्त्र जाग उठा। वह बोले यदि पकौड़ा बनाना रोजगार है, तो भीख मांगना भी रोजगार है। क्या चिदंबरम यह कहना चाहते हैं कि देश के सभी छोटे व्यवसायी भीख मांग रहे हैं।
चिदंबरम को पता होना चाहिए कि देश के गरीब नवजवानों का नसीब कार्ति चिदंबरम जैसा नहीं होता। उनके पिता पी. चिदंबरम यूपीए सरकार में देश के वित्तमंत्री थे। पिछले कुछ दिनों से कार्ति का आर्थिक साम्राज्य जांच के दायरे में आया है। तभी से उनके विषय मे लोगों को कुछ जानकारी मिली। राहुल गांधी लगातार मिल रही विफलता के बाबजूद कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये जाते हैं। लेकिन देश के गरीब तबके के युवाओं को संघर्ष से ही आगे बढ़ना होता है। उन्हें पका-पकाया खाने को अर्थात विरासत में सबकुछ नहीं मिल जाता।
गरीब व्यक्ति जब अपने जीवन यापन के लिए पकौड़ा बनाने का व्यवसाय शुरू करता है, तब उसके लिए यही सब कुछ होता है। वह कार्य शुरू करने से पहले अपने ठेले या कुछ फिट की जगह, तख्त आदि के साथ चूल्हे-बर्तन आदि का पूजन करता है। इस कार्य मे उसका पूरा परिवार जुटता है। तड़के जाग कर तैयारी करता है, तब जाकर वह अपना यह व्यवसाय प्रारंभ करता है। यह कार्य न केवल उसकी रोजी-रोटी का ईमानदार साधन होता है, बल्कि उसके लिए पूजा के बराबर होता है।
पी. चिदंबरम ने बड़ी आसानी से इस कार्य को भीख मांगने जैसा बता दिया। यह ठीक है कि ऐसा कहते समय उनके सामने अपने पुत्र का व्यवसाय रहा होगा। उनको लगता होगा कि रोजगार का मतलब यही है। लेकिन, एक बार वह पकौड़ा आदि बनाने वालों की भावनाओं को समझने का प्रयास करते तो , शायद ऐसा बयान न देते। यदि यह भीख मांगने जैसा है, तो उनकी सरकार द्वारा सौ दिन के रोजगार के लिए शुरू की गई मनरेगा को क्या कहा जाए।
बहरहाल, कांग्रेस के नेताओ ने यदि एक बार भी चिदंबरम की बात पर तार्किक चिंतन किया होता तो वह उससे किनारा कर लेते। लेकिन जब कुएं में भांग पड़ी हो तो ऐसी बातों में ही सबको आनन्द आता है। कांग्रेस में ऊपर से लेकर नीचे तक यही आलम दिखाई दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कर्नाटक में जनसभा थी। भीड़ के हिसाब से इसे ऐतिहासिक बताया गया। जनसैलाब का उत्साह पिछले लोकसभा चुनाव की याद दिला रहा था। मोदी-मोदी के वही नारे गूंज रहे थे। इस माहौल में भी कुछ कांग्रेसी पकौड़ा बनाने पहुंच गए। जनसैलाब के सामने उनके विरोध का कोई मतलब नहीं था। लेकिन वह यह बताने का प्रयास कर रहे थे कि पकौड़ा बनाना भीख मांगने जैसा है। पिछले लोकसभा चुनाव के पहले भी कांग्रेस ने गरीबों के रोजगार का ऐसे ही मजाक बनाया था। कांग्रेस के इस इतिहास ने अपने को दोहराया है।
नरेंद्र मोदी ने यह कभी नहीं कहा कि एमबीए, पीएचडी करने वाले पकौड़ा बेचने में लग जाएं। प्रत्येक नवजवान को उसकी योग्यता के अनुरूप जीवन यापन की सुविधा मिले, यह सरकार को देखना चाहिए और सरकार की नीतियां भी इसी अनुरूप हैं। इसके लिए उपयुक्त माहौल बनाना चाहिए। लेकिन यह भी सच है कि सभी युवकों को सरकारी नौकरी नहीं दी जा सकती।
नरेंद्र मोदी भी इस तथ्य को समझते हैं। इसलिए उन्होने दो स्तर पर प्रयास किये। पहले में मेक इन इंडिया जैसे अभियान को शामिल किया गया। दूसरे में मुद्रा बैंक और कौशल विकास को शामिल किया गया। मोदी को जो विरासत कांग्रेस ने दी उसमें भी बेरोजगारी कम नहीं थी। इसके अलावा अशिक्षित या कम पढ़े लिखे युवकों की संख्या भी कम नहीं थी। इनके लिए मुद्रा योजना एक बहुत उपयोगी कदम था। तीन करोड़ से ज्यादा लोगों ने इसका लाभ उठाया। प्रतीकात्मक रूप में पकौड़ा बनाना भी इसमें शामिल रहा है। ऐसे व्यवसाय में जब एक व्यक्ति मुद्रा योजना का लाभ लेता है, तब उसके परिवार के लोग भी उसमें शामिल होते हैं। वह भी उस रोजगार से जुड़ते हैं। इतना ही नहीं, इस पूरी श्रृंखला में कई अन्य लोग भी शामिल होते है।
असंगठित क्षेत्र में देश की बड़ी आबादी शामिल है। कांग्रेस ने इन सबको अपमानित किया है। इसकी जितनीं भी भर्त्सना की जाए कम है। बेरोजगारी, अशिक्षा, गांव में रोजगार का अभाव इन सबके लिए कांग्रेस ही सर्वाधिक जबाबदेह है। क्योंकि उसने ही देश पर सर्वाधिक समय तक शासन किया है। लेकिन दूसरों को अपमानित करते समय उसके नेता भूल गए कि उनके बयान उन्हीं पर भारी पड़ेंगे।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)