अगर आज केजरीवाल की तुलना लालू से की जा रही तो ये सिर्फ यूँ ही नहीं है, इसके कई कारण भी हैं। लालू भी एक जनांदोलन से निकले और केजरीवाल भी। लालू भी अपनी सरकार व पार्टी में सर्वेसर्वा थे और केजरीवाल भी हैं। लालू के लिए भी नियम-क़ानून का कोई महत्व नहीं था, केजरीवाल भी नियमों को ताक पर रखकर अक्सर निर्णय लेते हैं और फिर उसके कारण विवाद का सामना करते हैं। लालू के चारा घोटाले का जो ढंग था, दिल्ली के इस राशन घोटाले का भी तौर-तरीका वैसा ही है। लालू के साथ केजरीवाल का मेल भी देश देख चुका है। इन बातों के मद्देनजर ही आज केजरीवाल की तुलना लालू से की जा रही है।
दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार का तो जैसे विवादों से चोली-दामन का साथ हो गया है। एक विवाद के सुर जरा थमते नहीं कि अगला विवाद कोहराम मचा देता है। अभी पार्टी और सरकार के मुखिया अरविन्द केजरीवाल द्वारा अपने हवा-हवाई आरोपों के लिए लोगों से घूम-घूमकर माफ़ी मांगने के कारण पार्टी की फजीहत हो ही रही थी कि तभी कैग की रिपोर्ट में दिल्ली में राशन घोटाले का मामले ने आप सरकार की हवाइयां उड़ा दी। कैग रिपोर्ट की मानें तो भारतीय खाद्य निगम के गोदाम से राशन वितरण केंद्रों पर 1589 क्विंटल राशन की ढुलाई के लिए आठ ऐसी गाड़ियों का इस्तेमाल किया गया, जिनका रजिस्ट्रेशन नंबर बस, टेंपो और स्कूटर, मोटरसाइकिल का था।
उसपर गजब यह है कि 2016-17 में जिन 207 गाड़ियों से राशन ढुलाई का काम लिया गया, उनमें 42 के रजिस्ट्रेशन ही नहीं हैं। यह भी सामने आ रहा है कि राशन का वितरण हुआ ही नहीं, ऐसे में अनाज चोरी की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दिल्ली में भी बिहार के चारा घोटाले की तरह ही टेम्पो और मोटरसाइकिल पर अनाज ढोया गया है।
कैग की इस रिपोर्ट के बाद से दिल्ली की केजरीवाल सरकार आरोपों की बौछार से घिरी हुई है। भाजपा के दिल्ली अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा है कि बिहार में जानवरों का चारा खाया गया था और दिल्ली में गरीबों का राशन खा लिया गया है। उन्होंने केजरीवाल को छोटा लालू भी बताया। आप के निष्काषित बागी नेता कपिल मिश्रा ने भी केजरीवाल को निशाने पर लेते हुए इसे तीन साल के हिसाब से 5400 करोड़ का घोटाला बता दिया। लेकिन, केजरीवाल एंड कंपनी हर आरोप की तरह इस आरोप से भी अपना पल्ला झाड़ते हुए इसे भी एलजी के मत्थे मढ़ने की कोशिश में लग गयी है। अब केजरीवाल इसके लिए किसी पर सीधे-सीधे आरोप तो नहीं लगा रहे, मगर अपनी विफलता को भी स्वीकारने को तैयार नहीं हैं।
दरअसल केजरीवाल की तुलना अगर आज लालू से की जा रही, तो ये सिर्फ यूँ ही नहीं है, इसके कई कारण भी हैं। लालू भी एक जनांदोलन से निकले और केजरीवाल भी। लालू भी अपनी सरकार व पार्टी में सर्वेसर्वा थे और केजरीवाल भी हैं। लालू के लिए भी नियम-क़ानून का कोई महत्व नहीं था, केजरीवाल भी नियमों को ताक पर रखकर अक्सर निर्णय लेते हैं और फिर उसके कारण विवाद का सामना करते हैं। लालू के चारा घोटाले का जो ढंग था, दिल्ली के इस राशन घोटाले का भी तौर-तरीका वैसा ही है। लालू के साथ केजरीवाल का मेल भी देश देख चुका है। इन बातों के मद्देनजर ही आज केजरीवाल की तुलना लालू से की जा रही है।
हालांकि लालू की वर्तमान दशा देखते हुए केजरीवाल कभी नहीं चाहेंगे कि वे भारतीय राजनीति का अगला लालू साबित हों। ऐसे में, उन्हें चाहिए कि राशन घोटाले पर फिजूल में एलजी पर आरोप उछालने की बजाय मामले की हकीकत को जनता के सामने लाएं। क्योंकि, दिल्ली की जनता ने एलजी को नहीं, उन्हें चुना है और अपने बुरे-भले का हिसाब उन्हीं से लेगी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)