अरुण जेटली के निधन के पश्चात सभी राजनीतिक दलों की तरफ से आ रही सकारात्मक प्रतिक्रियाएं यह बताती हैं कि उन्होंनें सियासत में रहते हुए व्यक्तिगत रिश्तों पर कोई आंच नहीं आने दी। अपनी 66 वर्ष की आयु में उन्होंने जो ऊँचाई तथा सम्मान प्राप्त किया, वह विरले लोगों को ही प्राप्त होता है। अरुण जेटली का बहुआयामी व्यक्तित्व सबके लिए प्रेरणादायक है।
देश की राजनीति में अगस्त, 2019 का महीना भारतीय जनता पार्टी के लिए किसी गहरे आघात-सा साबित हो रहा है। सुषमा स्वराज को गए अभी एक पखवारा ही बीता था कि लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे अरुण जेटली का भी असमय ही निधन हो गया। अरुण जेटली का निधन देश की राजनीति में एक रिक्तता पैदा करने वाला है। जेटली एक विराट व्यक्तित्व के धनी राजनेता थे।
भारतीय राजनीति में अपने आप को संघर्षों से स्थापित करने के साथ–साथ हर राष्ट्रीय महत्व के विषय पर महत्वपूर्ण हस्तक्षेप के लिए जेटली जी को याद किया जाएगा। छात्र जीवन से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले अरुण जेटली कई उतारों-चढ़ावों को पार करते हुए शासन के अनेक ऊंचे पदों तक पहुंचे। नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वह वित्त, रक्षा एवं सूचना प्रसारण जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों के मंत्री रहे और सभी रूपों में अपने दायित्व का उत्तम प्रकार से निर्वहन किया।
भाजपा जब विपक्ष में थी, तब वह राज्यसभा में विरोधी दल के नेता थे। अपने तर्कों और वक्तव्यों से वे सामने वाले को निरुत्तर कर देते थे। उनकी वाक्पटुता, कानून की समझ और अध्ययन उन्हें विशिष्टता प्रदान करता है। यही कारण है कि भाजपा के नेता हों या किसी अन्य दल के नेता हों, वह जेटली जी को सुनने तथा उनकी सलाह एवं मार्गदर्शन के लिए आग्रही रहते थे।
चार दशक से अधिक के सार्वजनिक जीवन में उन्होंने कभी भी सामाजिक मर्यादा और राजनीतिक शुचिता का उल्लंघन नहीं किया। उन्होंने अपनी ईमानदारी, कर्मठता, विवेक, ज्ञान और अपने जुझारूपन से राजनीति में शून्य से शिखर तक का सफर तय किया।
भारतीय राजनीति में ऐसे कम नेता हैं जो राजनीति के साथ–साथ बौद्धिक जगत में भी अपनी सशक्त उपस्थिति रखते हों। अरुण जेटली ऐसे ही नेता थे। वे नियमित ब्लॉग लिखते थे और उनका ब्लॉग चर्चा का केंद्र भी बनता था। वह हर जरूरी विषय की गहरी जानकारी रखते थे। चाहें बोलने की बात हो अथवा लिखने की जेटली जी बड़ी स्पष्टता के साथ सम्बंधित विषय को समझा देते थे। समय-समय पर विविध मुद्दों पर उनके तर्कसंगत लेख उस मुद्दे पर लोगों को एक नयी दृष्टि प्रदान करते थे।
लोकसभा चुनाव के समय अस्वस्थ होने के बावजूद वे निरंतर 2019 चुनाव का एजेंडे यानी कि नरेंद्र मोदी सरकार की उपलब्धियों और विपक्ष की नाकामियों पर ब्लॉग लिखते रहे। अभी कुछ दिनों पहले जब अनुच्छेद-370 को केंद्र सरकार ने समाप्त किया, इस महत्वपूर्ण विषय पर भी उन्होंने ब्लॉग लिखा था, अब वही ब्लॉग उनके जीवन का आखिरी ब्लॉग बन गया है। क्योंकि उसके दो दिन के बाद ही उनकी तबियत बिगड़ गयी और उन्हें एम्स में भर्ती होना पड़ा।
नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में जब अरुण जेटली वित्त मंत्री थे, तब आर्थिक सुधारों से सम्बंधित कई साहसिक निर्णय लिए गए। इन निर्णयों में अरुण जेटली की अग्रणी भूमिका थी। चाहें नोटबंदी का साहसिक फैसला हो अथवा जीएसटी को लागू करने का ऐतिहासिक कदम हो, जेटली ने बड़ी सक्रियता के साथ इसका क्रियान्वयन किया और इन फ़ैसलों से होने वाले लाभ को भी लोगों को समझाने में सफ़ल हुए थे।
अरुण जेटली के निधन से उनके परिवार के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी को भी बड़ा आघात लगा है। अरुण जेटली एक समन्वयकारी व्यक्ति थे। मतभेदों के बीच एक राय बनाने की कला उनमें थी। हर मुद्दे पर पार्टी की लाइन क्या होगी अथवा पार्टी किस रणनीति के साथ आगे बढ़ेगी, इस पर जेटली की राय अत्यंत महत्वपूर्ण एवं प्रभावी होती थी। किसी विवादास्पद अथवा जटिल विषय पर भी पार्टी की तरफ से संतुलित बयान रखने में भी जेटली को महारथ हासिल था।
कई बार भाजपा की राजनीति में ऐसा समय आया जब पार्टी डगमगा गई थी, किन्तु उस डगमगाहट को संभालकर पार्टी को स्थिरता प्रदान करने वाली शख्सियत अरुण जेटली थे। इसके कई सारे उदाहरण हमें मिल जाएंगे, किन्तु दो मामलों का जिक्र समीचीन होगा।
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बिहार में एनडीए गठबंधन में सीटों को लेकर एक राय नहीं बन पा रही थी, तब यह मोर्चा जेटली ने संभाला और अपने रणनीतिक कौशल से कुछ ही मिनटों में राम बिलास पासवान से सहमति बन गई और गठबंधन बरकरार रहा। ऐसे ही राफ़ेल मामले में भी विपक्ष जब झूठ के दम पर एक ऐसा चक्रव्यूह रचने का प्रयास किया, जिसमें सरकार घिरकर बैकफुट पर आ जाए, उस समय अरुण जेटली ने ब्लॉग, प्रेस कांफ्रेंस, इंटरव्यू सहित संसद में अपने जवाब के द्वारा विपक्ष के इस चक्रव्यूह को भेद दिया। अरुण जेटली ने ऐसे तर्क दिए, जिससे कांग्रेस खुद अपने बचाव की मुद्रा में आ गई।
अरुण जेटली के निधन के पश्चात सभी राजनीतिक दलों से आ रही सकारात्मक प्रतिक्रियाएं यह बताती हैं कि उन्होंनें सियासत में रहते हुए व्यक्तिगत रिश्तों पर कोई आंच नहीं आने दी। अपने 66 वर्ष की आयु में उन्होंने जो ऊँचाई तथा सम्मान प्राप्त किया, वह विरले लोगों को ही प्राप्त होता है। अरुण जेटली का बहुआयामी व्यक्तित्व एवं भारतीय राजनीति में योगदान सबके लिए प्रेरणादायक है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)