कभी दिल्ली की झोपड़ियों में रहने वालों को मकान बनाकर देने के लिए राष्ट्रपति भवन खाली करवाने की बात करने वाले केजरीवाल आज वियतनामी संगमरमर से अपने बंगले का फर्श बनवा कर उस पर चलने के लिए 20 लाख के कालीन बिछा रहे हैं। इतना ही नहीं केजरीवाल ने साढ़े 11 करोड़ का इंटीरियर डेकोरेशन कराया और 8-8 लाख रुपये के 23 रिमोट संचालित पर्दे खरीदे हैं।
“ये बंद कराने आये थे तवायफों के कोठे…मगर सिक्कों की खनक देखकर खुद ही नाच बैठे”। इन दिनों सोशल मीडिया पर यह शेर खूब चर्चित हो रहा है तो इसका कारण दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सत्ता व धन लोलुपता है। कभी ढीले-ढाले कपड़ों, पांवों में हवाई चप्पल, गले में मफलर, जेब में दो रुपये का पेन लटकाकर अपने आपको आम आदमी बताने वाले अरविंद केजरीवाल अब खास आदमी बन चुके हैं।
जो लोग अन्ना आंदोलन के प्रत्यक्षदर्शी रहे हैं उन्हें अरविंद केजरीवाल का यह परिवर्तन रास नहीं आ रहा है। खुद अन्ना हजारे भी इस तरह की राजनीति की कल्पना नहीं किए होंगे। अन्ना आंदोलन और उससे उपजी आम आदमी पार्टी ने नई तरह की राजनीति, ईमानदार राजनीति, भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति का नारा दिया था लेकिन अब वे नारे चुनावी जुमले बन चुके हैं।
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि आम आदमी पार्टी के सिद्धांतों की धज्जियां कोई और नहीं बल्कि उसके संस्थापक ही उड़ा रहे हैं। स्पष्ट है नई तरह की राजनीति वाले नारे अब केजरीवाल के लिए बेमानी हो गए हैं। भ्रष्ट व्यवस्था में परिवर्तन का नारा लगाने वाले आज उस व्यवस्था के पोषक बन चुके हैं।
केजरीवाल की असलियत उजागर करने का काम हाल ही में टाइम्स नाउ नवभारत ने ऑपरेशन शीश महल के तहत लोक निर्माण विभाग के एक 27 पन्नों की रिपोर्ट को जारी करके किया। जो केजरीवाल कभी दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के 5000 वर्ग फीट के बंगले और उनके 10 एयर कंडीशनर पर कटाक्ष कर रहे थे वही केजरीवाल आज 25000 वर्ग फीट में बने बंगले में रहे हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि उसके रिनोवेशन पर 45 करोड़ रुपये की भारी भरकम धनराशि खर्च कर दिया।
उल्लेखनीय है कि 7 जून 2013 को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते समय केजरीवाल ने कहा था कि वे बंगला नहीं लेंगे, लग्जरी कार नहीं लेंगे, सुरक्षा नहीं लेंगे और उनके आवास के गेट चौबीसों घंटे आम आदमी के लिए खुले रहेंगे।
कभी दिल्ली की झोपड़ियों में रहने वालों को मकान बनाकर देने के लिए राष्ट्रपति भवन खाली करवाने की बात करने वाले केजरीवाल आज वियतनामी संगमरमर से अपने बंगले का फर्श बनवा कर उस पर चलने के लिए 20 लाख के कालीन बिछा रहे हैं। इतना ही नहीं केजरीवाल ने साढ़े 11 करोड़ का इंटीरियर डेकोरेशन कराया और 8-8 लाख रुपये के 23 रिमोट संचालित पर्दे खरीदे हैं।
दस-दस लाख के 85 इंच वाले 10 टेलीविजन खरीदा। टीवी खरीद में घोटाला करने से नहीं चूके। बाजार में जिस टीवी की कीमत महज 3.5 लाख रुपये है उसे दस लाख रुपये में खरीदा गया। इस प्रकार 35 लाख के टेलीविजन को केजरीवाल ने एक करोड़ में खरीदा और 65 लाख रुपये का घोटाला कर दिया।
शासन के हर कार्य में पारदर्शिता और हर स्तर पर जवाबदेही सुनिश्चित करने से करने के चुनावी वायदे के साथ मुख्यमंत्री बने केजरीवाल ने अपने बंगले के रिनोवेशन के लिए जो प्रक्रिया अपनाई वह उनके ईमानदार छवि के दावे को कटघरे में खड़े करने के लिए पर्याप्त है। केजरीवाल ने 45 करोड़ की भारी-भरकम राशि खर्च करने के लिए किसी तरह के ओपन टेंडर नहीं निकाला। पहला टेंडर 7.5 करोड़ का निकाला गया।
इसके बाद टेंडर के बजाए 5 बार वित्तीय स्वीकृतियां जारी की गईं जिनकी राशि 10 करोड़ से कम रखी गई। एक वित्तीय स्वीकृति तो 9 करोड़ 99 लाख रुपये की जारी की गई। स्पष्ट है यह सब इसलिए किया गया क्योंकि यदि कोई वित्तीय स्वीकृति 10 करोड़ या इससे अधिक की हो तो दिल्ली सरकार के नियमों के अनुसार उसकी फाइल उपराज्यपाल के पास जाती। इसीलिए यह चालाकी की गई।
अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी ने जिस व्यवस्था परिवर्तन और स्वराज का नारा दिया उसे समाज के सभी वर्गों का इसलिए भरपूर साथ मिला क्योंकि आम जनता एक अलग तरह की राजनीति चाहती थी। लेकिन आम आदमी की चिंता को लेकर गठित हुई पार्टी और सरकार में जैसे-जैसे केजरीवाल का भ्रष्टाचार उजागर हो रहा है वैसे-वैसे उस पार्टी से आम आदमी दूर होता जा रहा है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)