आम आदमी पार्टी अपना जनाधार तेज़ी से खोती जा रही है। यदि इस पार्टी को अपना वजूद बचाए रखना है, तो उसे नाटकीयता और भ्रामक बातों, दावों, नारों से ऊपर उठना होगा। याद कीजिये 2014 में दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के बाद सत्ता छोड़कर जब अगले साल फिर केजरीवाल चुनाव में उतरे तब उनके बड़े-बड़े वादों पर भरोसा कर दिल्ली के मतदाताओं ने उन्हें पूर्ण बहुमत दिया था। यह बात दूसरी है कि जनता के भरोसे का केजरीवाल ने सर्वथा दुरुपयोग किया और अपने शासन का अबतक का समय थोथी बातों और अनर्गल आरोप-प्रत्यारोप में ज़ाया कर दिया है। इसके फलस्वरूप अब मतदाता उन्हें लगातार खारिज़ कर रहे हैं, जिससे केजरीवाल बौखलाए हुए हैं।
इस बात को अधिक समय नहीं बीता था जब उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के चुनाव नतीजे घोषित हुए और सीटों पर भाजपा का दबदबा रहा। एक ओर जहां भाजपा को यूपी में मिले प्रचंड बहुमत का असर था, तो वहीं दूसरी ओर आम आदमी पार्टी के सूत्रधार अरविंद केजरीवाल की भृकुटियां तन गई थीं। उन्होंने भाजपा को भला बुरा बोलने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। और तो और, चुनाव आयोग पर भी उंगलियां उठा दीं और आयोग की विश्वसनीयता पर आरोपों से दाग लगाने की कोशिश की। इस बात को अभी केवल महीना भर ही हुआ था कि इधर देश के आठ राज्यों की दस सीटों पर उपचुनाव के परिणाम आ गए, जिनमें से राजौरी गार्डन समेत कुल पाँच सीटों पर भाजपा विजयी रही। इन उपचुनावों में सबसे ज्यादा चर्चित राजौरी गार्डन सीट रही; क्योंकि ये सीट पहले केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के पास थी, मगर इस उपचुनाव में बड़े ही अप्रत्याशित ढंग से न केवल आप के प्रत्याशी की पराजय हुई बल्कि जमानत भी ज़ब्त हो गयी।
निश्चित ही यह झटका केजरीवाल को औंधे मुंह गिराने के लिए काफी है। स्वयं केजरीवाल ने यह अपेक्षा नहीं की होगी कि इस चुनाव में उनकी पार्टी की इतनी दुर्दशा होगी। लेकिन यहां अरविंद का फिर से दोहरा मापदंड देखने को मिलता है। इस बार उन्होंने ईवीएम पर आरोप नहीं लगाए, ना ही चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली को कठघरे में खड़ा किया, बल्कि अपनी हार को सीधे न स्वीकारते हुए अपने ही प्रत्याशी पर इस हार का परोक्ष रूप से ठीकरा फोड़ दिया। उन्होंने कहा कि उनके प्रत्याशी हरजीत सिंह सिख समाज के होने के नाते अपने समाज की गतिविधियों में अधिक सक्रिय रहते हैं। यही कारण है कि वे अपने क्षेत्र पर ध्यान नहीं दे पाए और क्षेत्र का मतदाता नाराज़ है, इसलिए इस नाराज़गी का चुनाव परिणाम पर विपरीत असर पड़ा।
जब अरविंद ने यह बयान दिया तब उनका आत्मविश्वास डिगा हुआ मालूम पड़ रहा था और देहभाषा यूं बयां कर रही थी मानो वे अपनी हार का दबी जुबान इकरार तो करना चाहते हैं, लेकिन उतना नैतिक साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। नि:संदेह राजौरी गार्डन उपचुनाव के नतीजों ने आम आदमी पार्टी के जनाधार को जड़ से हिला डाला है। अरविंद के पैरों तले जमीन खिसक गई है और वे मन ही मन आक्रोशित मतदाताओं के इरादे भांप चुके हैं। उन्हें यह अंदाजा हो गया है कि एक उपचुनाव में यदि मतदाता इतनी बेदर्दी से आईना दिखा सकता है, तो एमसीडी सहित दिल्ली के विधानसभा चुनाव में क्या हश्र होगा।
इन सब बातों का जि़क्र यहां इसलिए किया जाना जरूरी और प्रासंगिक है कि आम आदमी पार्टी अपना जनाधार तेज़ी से खोती जा रही है। यदि इस पार्टी को अपना वजूद बचाए रखना है, तो उसे नाटकीयता और भ्रामक बातों, दावों, नारों से ऊपर उठना होगा। पिछले पांच वर्षों में देश के मतदाताओं का मिजाज तेजी से बदला है। पिछले एक साल में तो इसमें और बदलाव आया है। याद कीजिये 2014 में दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के बाद सत्ता छोड़कर जब अगले साल केजरीवाल दोबारा चुनाव में उतरे तब उनके बड़े-बड़े वादों को देखते हुए दिल्ली के मतदाताओं ने उन्हें पूर्ण बहुमत दिया। यह बात दूसरी है कि जनता के भरोसे का केजरीवाल ने सर्वथा दुरुपयोग किया और अपने शासन का अबतक का समय थोथी बातों और अनर्गल आरोप-प्रत्यारोप में ज़ाया कर दिया। इसके फलस्वरूप अब मतदाता उन्हें लगातार हर चुनाव में खारिज़ कर रहे हैं, जिससे वे बेहद बौखलाए हुए हैं और इस बौखलाहट में कभी विपक्षी दलों तो कभी चुनाव आयोग पर अनर्गल आरोप लगा रहे हैं।
इधर, पिछले दिनों एक मानहानि के केस में उनकी कलई फिर खुली जब पता चला कि वे अपनी फीस भी जनता की जेब पर डाका डालकर निकलवाने वाले हैं। इस वाकये से एक बार फिर केजरीवाल की अनीतियां सामने आ गईं। अब दिल्ली की जनता को पूरा यकीन हो गया कि केजरीवाल का मूल स्वरूप केवल झूठ और प्रपंच से पद, प्रतिष्ठा व धनबल अर्जित करना है एवं उनका लोकतंत्र से, सेवा से, कार्यों से, सुशासन से कोई लेना देना नहीं है। अपने दो साल से अधिक के इस शासन में वे दिल्ली की जनता से किया अपना कोई वा`दा ठीक ढंग से पूरा नहीं कर सके हैं। अवैध कॉलोनियों को नियमित करने, डिग्री कॉलेज खोलने, सीसीटीवी कैमरे लगवाने जैसे कुछ वादों की तो वे और उनकी पार्टी के नेता अब चर्चा तक नहीं करते। इसी का नतीजा है कि केजरीवाल को अब मतदाता मजा चखाने की ठान चुके हैं।
पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में ‘आप’ के प्रति मतदाताओं के गुस्से की एक झलक पंजाब और गोवा मिल ही चुकी थी कि इधर दिल्ली के राजौरी गार्डन उपचुनाव का दौर आ गया, तो दूध से जले मतदाता छाछ फूंककर पीने की तैयारी में दिखे। उन्होंने सही समय पर सही चोट की और आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी की जमानत जब्त करवा के आने वाले दिल्ली नगर निगम एवं असेंबली चुनावों में अपने इरादों का संकेत दे दिया। करारी हार मिलने के बाद लगातार कटु आलोचनाएं झेल रही आम आदमी पार्टी के लिए अब एमसीडी चुनाव निर्णायक चुनाव साबित होने वाले हैं। लेकिन हैरत है कि अब भी केजरीवाल आत्ममंथन करने की बजाय आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति में लगे हैं।
यूपी चुनाव के नतीजों से बौखलाए केजरीवाल ने आयोग पर ईवीएम से छेड़छाड़ जैसा सतही, बचकाना, बेतुका व हास्यास्पद आरोप तो लगा दिया, लेकिन आयोग ने इसे भी गंभीरता से लिया और आगामी एक मई से उन्हें चुनौती दी है कि वे ईवीएम टेंपरिंग साबित करके दिखाएं। आयोग ने खुलेआम चुनौती दी है कि कोई भी चाहे तो ईवीएम में गड़बड़ी करके दिखाए, क्योंकि आयोग को पता है कि स्वयं इसके निर्माता भी इसमें फेरबदल नहीं कर सकते। सारी चीजें उच्च रूप से पारदर्शी हैं।
केजरीवाल की इस अनर्गल राजनीति और लगातार मिलती हार के कारण अब तो उनकी पार्टी के लोग भी उनसे कटने लगे हैं। कुमार विश्वास भी समय-समय पर केजरीवाल पर कटाक्ष करने का मौका नहीं चूक रहे और इससे संकेत मिलता है कि पार्टी के अंदरखाने में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। यह निर्णायक घड़ी है। राजौरी उपचुनाव में आम आदमी पार्टी की हुई करारी हार, वहां के प्रत्याशियों की नहीं बल्कि स्वयं अरविंद केजरीवाल की हार है। यदि वे अब भी आत्म मूल्यांकन का नैतिक साहस नहीं जुटाते हैं, तो उन्हें अपने राजनीतिक जीवन के पतन के लिए भी तैयार हो जाना चाहिए।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)