नयी और ईमानदार राजनीति का स्वप्न दिखाकर काफी कम समय में ही केजरीवाल ने जनता के मन में अपने प्रति भरोसा पैदा किया और इसी भरोसे के बलबूते दिल्ली की सत्ता पर काबिज भी हुए। मगर, वर्तमान परिस्थितियों पर अगर हम नज़र डालें तो देखते हैं कि अरविन्द केजरीवाल ने जनता के भरोसे के साथ बुरी तरह से खिलवाड़ किया है। खुद को सर्वाधिक ईमानदार नेता का ख़िताब देने वाले केजरीवाल और उनकी सरकार आज सरकारी संपत्ति का निजी उपभोग, प्रशासनिक पदों पर मनमानी नियुक्ति, अवैध वेतन बढ़ोतरी, पद के दुरूपयोग समेत कई मसलों पर चारों ओर से घिरे हुए हैं।
वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा दायर मानहानि केस में केजरीवाल के वकील रामजेठ मलानी को सरकारी खजाने से दी गयी फीस के मामले में ही अभी केजरीवाल उलझे हुए थे कि हाल ही में आई शुंगलु कमिटी की रिपोर्ट ने उनकी मुश्किल और बढ़ा दी है। अब इससे पहले कि केजरीवाल इसे एक बार फिर केंद्र सरकार द्वारा उनको बदनाम करने का हथकंडा बताते यह साफ़ हो गया कि यह रिपोर्ट उस शुंगलू समिति की है, जिसका गठन पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग ने सितम्बर 2016 में केजरीवाल सरकार द्वारा उनकी गैर-जानकारी में लिए गये फैसलों की समीक्षा हेतु किया था। पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक वीके शुंगलु की अध्यक्षता वाली इस कमिटी में पूर्व चुनाव आयुक्त – एन गोपालस्वामी एवं पूर्व मुख्य सतकर्ता आयुक्त प्रदीप कुमार भी शामिल थे। इसी शुंगलू समिति की रिपोर्ट अब सामने आई है।
शुंगलू समिति की रिपोर्ट से यह साफ हो गया कि खुद को एकमात्र ईमानदार राजनेता बताने वाले केजरीवाल किस प्रकार से अपने निजी स्वार्थ हेतु अपने पद और शक्ति का दुरूपयोग किए हैं। निश्चित रूप से शुंगलू कमिटी की रिपोर्ट ने केजरीवाल की स्वघोषित ईमानदार राजनीति की पोल पट्टी खोल के रख दी है और उनका असल चेहरा एकबार फिर दिल्ली की जनता के सामने उजागर हो गया है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि इस तरह की राजनीति को देखते हुए क्या दिल्ली के आगामी नगर निगम चुनाव में जनता उनका साथ देगी या वे गोवा और पंजाब की तरह फिर किसी कोने में सिमटकर रह जायेंगे ?
राजनैतिक गलियारे में हडकंप मचा देने वाली इस रिपोर्ट ने आप सरकार के कई अहम फैसलों पर सवाल उठाये है। कमिटी की रिपोर्ट में यह दर्ज है कि किस प्रकार अप्रैल 2016 में केजरीवाल ने तमाम नियुक्तियां बिना उपराज्यपाल की अनुमति लिए कीं। मोहल्ला क्लिनिक के सलाहकार के पद पर सतेन्द्र जैन की पेशे से आर्किटेक्ट बेटी की नियुक्ति को कमिटी ने गलत बताया। साथ ही स्वास्थ्य मंत्री के विशेष कार्य अधिकारी (ओ एस डी) निकुंज अग्रवाल जो केजरीवाल के रिश्तेदार हैं, समेत पर्यटन मंत्रालय में नियुक्त ओ एस डी रोशन शंकर की नियुक्ति पर यह आरोप है कि जिन पदों पर इन सबकी नियुक्ति की गयी, वे पद दरअसल पहले थे ही नही। इतना ही नही इन पदों पर नियुक्ति समेत मंत्रियों की विदेश यात्राओ के लिए उपराज्यपाल से अनुमति भी नही ली गयी जो कि स्थापित प्रावधान का हिस्सा है।
साथ ही आम आदमी पार्टी को मुख्यालय हेतु आवंटित जगह को भी इस रिपोर्ट में अवैध बताया गया है। परिणामस्वरूप उपराज्यपाल ने कार्रवाई करते हुए आप के मुख्यालय के आवंटन को रद्द कर दिया है। कमिटी ने दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल को आवास आवंटित करने के फैसले को भी यह कहते हुए गलत बताया है कि इस पद के लिए आवास का प्रावधान नियमों में नहीं है । रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि किस प्रकार आप सरकार ने केजरीवाल के नेतृत्व में मुख्य सचिव, विधि एवं वित्त सचिव आदि के परामर्शों को दरकिनार करते हुए संवैधानिक प्रावधान एवं प्रशासनिक आदेश व कानून का पूरी तरह से उल्लंघन करते हुए अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाते हुए फैसले लिए हैं। गौरतलब है कि यह पहली बार नही है, जब कि केजरीवाल सरकार सवालों के कठघरे में खड़ी पायी गयी है। इससे पहले भी 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति को लेकर दिल्ली सरकार के फैसले को दिल्ली उच्च न्यायालय ने गलत करार कर दिया था। वर्तमान उपराज्यपाल अनिल बैजल ने भी प्रचार हेतु आवंटित 97 करोड़ की राशी को दिल्ली सरकार से वसूलने का फैसला लिया है, जिससे कि केजरीवाल सरकार के कारनामे हर तरफ से उजागर हो गये हैं।
इस रिपोर्ट से यह साफ हो गया कि खुद को एकमात्र ईमानदार राजनेता बताने वाले केजरीवाल किस प्रकार से अपने निजी स्वार्थ हेतु अपने पद और शक्ति का दुरूपयोग किए हैं। निश्चित रूप से शुंगलू कमिटी की इस रिपोर्ट ने केजरीवाल की स्वघोषित ईमानदार राजनीति की पोल पट्टी खोल के रख दी है और उनका असल चेहरा एकबार फिर दिल्ली की जनता के सामने उजागर हो गया है। ऐसे में बड़ा सवाल यह भी है कि इस तरह की राजनीति को देखते हुए क्या दिल्ली के आगामी नगर निगम चुनाव में जनता उनका साथ देगी या वे गोवा और पंजाब की तरह फिर किसी कोने में सिमट कर रह जायेंगे ?
(लेखिका पत्रकारिता की छात्रा हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)