सेना पर सवाल उठाने वाले बताएं कि उन्हें पत्थरबाजों से इतना लगाव क्यों है ?

पत्थरबाज सेना के जवानों के साथ जिस तरह का बर्ताव कर रहे और जिस तरह उनके तार पाकिस्तान से जुड़े होने की बात सामने आ रही, उसके बाद यह कहना गलत नहीं है कि ये लोग किसी तरह की रहम के काबिल नहीं हैं पाकिस्तान की शह पर आतंकियों की मदद करने वाले ये चंद कश्मीरी पत्थरबाज देशद्रोही हैं, अतः इनके साथ कड़ाई से पेश आना ही समय की ज़रूरत है पत्थरबाजों पर कठोरता के लिए जो तथाकथित सेक्युलर जवानों पर सवाल उठा रहे हैं, उन्हें बताना चाहिए कि आखिर उन्हें इन पाकिस्तान परस्त कश्मीरी  पत्थरबाजों से इतना लगाव क्यों है ?

जम्मू-कश्मीर के बड़गाम में २८ मार्च  को एक घर में छिपे आंतकी को बचाने के लिए स्थानीय लोगों ने जमकर सुरक्षाबलों पर पथराव किया। इस वजह से सेना को दो मोर्चो पर लड़ना पड़ा। एक तरफ आंतकी सेना के जवानों को चुनौती दे रहे थे, तो दूसरी तरफ स्थानीय नागरिक पत्थरबाजी कर आंतकियों को  बचा  रहे थे। इससे सुरक्षाकर्मियों की मुश्किल बढ़ गई थी। 12 घंटे से भी ज्यादा चले इस ऑपरेशन के दौरान हुई पत्थरबाजी की वजह से कुल 63 जवान घायल हो गए। इस ऑपरेशन में घर में छिपे एक आतंकी को सेना ने मार गिराया।

कश्मीर में आए दिन आतंकियों से मुठभेड़ और उस दौरान सुरक्षा बलों और सेना के काम में खलल डालने की कोशिश अब नई बात नहीं, लेकिन यह चिंताजनक है कि उपद्रवी तत्व कहीं अधिक दुस्साहसी होते जा रहे हैं। हालांकि वे इस दुस्साहस की कीमत भी चुका रहे हैं, लेकिन यह ठीक नहीं कि आतंकियों की घेरेबंदी के वक्त सेना और सुरक्षा बलों को उपद्रवी भीड़ से निपटने में कहीं अधिक जोखिम का सामना करना पड़े। दरअसल भारतीय सेना को  कश्मीर में दो मोर्चे पर लड़ना पड़ रहा है; एक तो आतंकी और दूसरा स्थानीय नागरिक, इसी कारण  आतंकवाद-निरोधी अभियानों के दौरान युवाओं के हस्तक्षेप के खिलाफ सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत चेतावनी दे चुके हैं कि मुठभेड़ के दौरान जो लोग सेना के ऑपरेशन में खलल डालेंगे, उनको आतंकवादियों का सहयोगी माना जाएगा।

हाल ही में इंडिया टुडे के स्टिंग में सामने आया है कि इस पत्थरबाजी के लिए कश्मीरी युवाओं को 5,000 से 7,000 रुपए तक अदा किए जाते हैं। घाटी में जब पिछले वर्ष जुलाई में हिजबुल मुजाहिद्दीन कमांडर बुरहान वानी को मारा गया, तब से ही इस तरह की पत्थरबाजी का ट्रेंड चल निकला है।  इन पत्थरबाजों को उनके अंडरग्राउंड हो चुके आकाओं की ओर से सुरक्षाबलों, सरकारी अधिकारियों और संपत्ति को नुकसान करने के लिए कीमत अदा की जाती है। यह जगजाहिर है कि इन पत्थरबाजो को फंडिंग पाकिस्तान से अलगाववादियों के माध्यम से हो रही, जो कश्मीर की कथित आज़ादी और पैसे के बल पर युवावो को देशद्रोही बनाने का काम कर रहे हैं।

साभार: गूगल

हाल की घटनाओ में तो कश्मीर के पत्थरबाजों को उकसाने के लिए पाकिस्तान के आतंकी गुटों द्वारा सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने की बात सामने आई है। वो व्हाट्सअप ग्रुप और मोबाइल मैसेज के जरिए कश्मीर के पत्थरबाजों को एनकाउंटर वाली जगह की जानकारी देते हैं, जिसके बाद पत्थरबाज सुरक्षाबलों की कार्रवाई रोकने के लिए उनपर पत्थर बरसाना शुरू कर देते हैं। स्पष्ट है कि एक ओर हमारे जवान बरसती गोलियों के बीच आतंकियों से लोहा ले रहे हैं, तो दूसरी ओर इन देशद्रोहियों के पथराव का भी सामना कर रहे हैं।

बीते दिनों एक विडियो सामने आया जिसमें कश्मीर में उपचुनाव की ड्यूटी से वापस लौट रही सेना के जवानो पर कुछ लोग हमला कर रहे हैं। उन्हें पैरों से मारा जा रहा है, उनके सिर पर हमला कर हेलमेट फेंक दिया गया, इन सब के बावजूद जवान अपना संयम नहीं खोते। इस बात से समझा जा सकता है कि कश्मीर में सेना के जवानो के मनोबल और धैर्य को बनाये रखना कितना कठिन काम है, किन्तु  इस विडियो पर सेना के साथ देश में हमदर्दी बढ़ती देख नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला से शायद रहा नहीं गया। उन्होंने तुरंत ट्वीट कर एक विडियो जारी किया जिसमें एक पत्थरबाज को सेना ने अपनी जीप एक आगे बांधकर रखा है और जिसे पत्थरबाजों से निपटने के लिए ढाल के रूप में इस्तेमाल किया गया है। हालांकि इस वीडियो की सत्यता पर संदेह है, क्योंकि सेना ने इसकी जाँच की बात कही है।

उमर अब्दुल्ला (साभार: गूगल)

मगर सवाल यह है कि उमर अब्दुल्ला को ऐसी क्या बेचैनी थी कि बिना प्रामाणिकता के सेना के सम्बन्ध में ऐसा विडियो जारी कर दिए। पत्थरबाजों के प्रति उमर अब्दुल्ला की इस हमदर्दी का मतलब क्या है ? उमर अब्दुल्ला बताएं कि क्या उनके लिए सेना के जवानों से अधिक पत्थरबाज महत्वपूर्ण हैं ? दरअसल उमर अब्दुल्ला अकेले नहीं हैं, जो पत्थरबाजों के प्रेम में सेना के जवानों पर तरह-तरह के सवाल उठा रहे। उनके पिता फारुक अब्दुल्ला भी पत्थरबाजों के पक्ष में हाल ही में बयान देकर चर्चा में आए थे। ऐसे ही और भी तथाकथित सेक्युलर नेता और कथित बुद्धिजीवी हैं, जो पत्थरबाजों के बचाव और सेना पर सवाल उठाने में लगे हुए हैं।

साथ ही, भारत द्वारा कश्मीर के हालात के आकलन की मंज़ूरी नहीं दिए जाने पर इस्लामिक सहयोग  संगठन (ओआईसी ) के मानवाधिकार के सदस्यो ने भी कहा है कि कश्मीरी आजादी के लिए पत्थरबाजी कर रहे हैं और भारतीय सुरक्षा बल उन पर बुलेट और पेलेट बरसा रहे हैं, जिसमें सैकड़ों युवा मारे जा रहे और हजारो घायल हो रहे हैं। कहना न होगा कि इस्लामिक सहयोग  संगठन (ओआईसी ) का यह बयान पूरी तरह से हास्यास्पद है।

पत्थरबाज सेना के जवानों के साथ जिस तरह का बर्ताव कर रहे और जिस तरह उनके तार पाकिस्तान से जुड़े होने की बात सामने आ रही, उसके बाद यह कहना गलत नहीं है कि ये लोग किसी तरह के रहम के काबिल नहीं हैं पाकिस्तान की शह पर आतंकियों की मदद करने वाले ये चाँद कश्मीरी पत्थरबाज देशद्रोही हैं, अतः इनके साथ कड़ाई से पेश आना ही समय की ज़रूरत है पत्थरबाजों पर कठोरता के लिए जो  लोग जवानों पर सवाल उठा रहे, उन्हें बताना चाहिए कि उनके लिए देश की सेना महत्वपूर्ण है या पाकिस्तान परस्त कश्मीरी पत्थरबाज ?

(लेखक कॉर्पोरेट लॉयर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)