मोदी सरकार का नारा रहा है – सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास। इस मूलमंत्र पर आगे बढ़ते हुए, दशकों पुराने इस विवाद का अंत करते हुए सभी पक्षों ने एक साथ बैठाकर वार्ता की और समझौते की रूपरेखा तय होने के बाद इस विवाद का भी अंत हो गया। दरअसल सरकार की सख्ती के बाद अलग राज्य की मांग करने वालों को यह आभास हो गया कि सिवाय समझौते के कोई मार्ग नहीं है।
अपने स्कूली दिनों को याद कीजिए। गणित विषय में एक सवाल जिसका सामना लगभग हम सभी ने किया होगा, वो ये कि किसी काम को कुछ लोग मिलकर इतने दिनों में कर रहे हैं, उसी काम को कुछ और लोग मिलकर कितने दिनों में पूरा कर पाएंगे? इस प्रश्न के उत्तर को प्राप्त करने के लिए हम कुछ स्थापित गणितीय सूत्रों का सहारा लेते थे। यह तो बात हुई शैक्षिक व्यवस्था की, लेकिन यदि यही प्रश्न देश की राजनीतिक व्यवस्था को लेकर करें तो?
मान लीजिए कांग्रेस ने किसी काम 60 सालों से नहीं किया उस काम को मोदी सरकार कितने दिनों में करेगी? मोदी सरकार का अबतक का प्रदर्शन देखते हुए इसका जवाब समझने में कोई कठिनाई नहीं है और इसीलिए अक्सर मोदी सरकार कहती है कि जो काम 60 सालों से नहीं हुआ उस काम को हमने 60 महीने में कर दिखाया।
ताजा मामला है असम में हुए ऐतिहासिक बोडोलैंड समझौते का, जिसमें एक बार फिर से प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में गृहमंत्री अमित शाह ने अपनी दृढ़ता और मजबूत इच्छा-शक्ति के द्वारा इस ऐतिहासिक समस्या को समाधान का मार्ग दिखाया है। आइए पहले बोडोलैंड विवाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को समझें और जानें कि इस विवाद के चलते अब तक असम सहित देश को कितनी क्षति उठानी पड़ी है।
दरअसल बोडो ब्रह्मपुत्र घाटी के उत्तरी हिस्से में बसी असम की सबसे बड़ी जनजाति है। ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मपुत्र घाटी में धान की खेती बोडो जनजाति के लोगों ने ही शुरू की। 1960 के दशक से वे पृथक राज्य की मांग करने लगे। इसकी मुख्य वजह थी राज्य में बोडो जनजाति की जमीनों पर दूसरे समुदायों का अनधिकृत प्रवेश कर वहीं बस जाना। इससे हुआ ये कि उनकी भूमि पर अन्य समुदायों का दबाव बढ़ता गया और बोडो में असंतोष फैलने लगा।
1980 के दशक के बाद बोडो आंदोलन हिंसक हो गया और इसी के साथ-साथ यह तीन धाराओं में बंट गया। पहली धारा का नेतृत्व नेशनल डेमोक्रैटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) ने किया, जो अपने लिए अलग राज्य चाहता था। दूसरा समूह बोडोलैंड टाइगर्स फोर्स (बीटीएफ), जिसने ज्यादा स्वायत्तता की मांग की और गैर-बोडो समूहों को निशाना बनाया। तीसरी धारा ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन यानी एबीएसयू की है, जिसने मध्यमार्ग पर चलते हुए इस विवाद के पटाक्षेप के लिए राजनीतिक समाधान की मांग की।
इस बीच 1993 से बोडो और असम मुसलमानों के बीच रिश्ते तल्ख़ होने शुरू हो गए। तीन धाराओं में बंट चुके आंदोलन में बोडोलैंड टाइगर्स फोर्स (बीटीएफ) ने दूसरी जनजातियों को निशाना बनाने लगा। इस पूरे विवाद के पीछे यह भी माना जाता है कि बोडो अपने क्षेत्र की राजनीति, अर्थव्यवस्था और प्राकृतिक संसाधन पर वर्चस्व चाहते थे।
2003 में जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे, तब बोडो लिबरेशन टाइगर्स यानी बीएलटी ने हिंसा का रास्ता छोड़ बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट नामक राजनीतिक पार्टी बनाई। यहां से एक उम्मीद जगी कि हिंसक हो चुके आंदोलन का एक समाधान निकल सकता है, लेकिन केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी और यह विषय एक बार ठंडे बस्ते में चला गया।
अलग बोडोलैंड आंदोलन की वजह से लाखों लोग विस्थापित हुए और दर्जनों की मौत हुई। आंदोलन के दौरान हजारों लोगों को शिविरों में शरण लेनी पड़ी। 2014 दिसंबर में हुई हिंसा में बोडो अलगाववादियों ने असम के सोनितपुर और कोकराझार जिले में 52 आदिवासियों को मार डाला था। लगभग 60 साल की हिंसा के दौरान करीब 2829 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इसके अलावा 239 सुरक्षाकर्मी और असम काडर के करीब 900 से ज्यादा लोग मारे गए।
मोदी सरकार का नारा रहा है – सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास। इस मूलमंत्र पर आगे बढ़ते हुए, दशकों पुराने इस विवाद का अंत करते हुए सभी पक्षों ने एक साथ बैठाकर वार्ता की और समझौते की रूपरेखा तय होने के बाद इस विवाद का भी अंत हो गया। दरअसल सरकार की सख्ती के बाद अलग राज्य की मांग करने वालों को यह आभास हो गया कि सिवाय समझौते के कोई मार्ग नहीं है। परिणामतः यह समझौता सामने आया है।
इस समझौते में मुख्य रूप से नेशनल डेमोक्रैटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) ने अलग राज्य या अलग केंद्र शासित प्रदेश की मांग को छोड़ दिया है। इसके एवज में केंद्र सरकार द्वारा बोडो आदिवासियों 1500 करोड़ रुपए के विशेष आर्थिक पैकेज का ऐलान किया गया है, जिससे बोडो क्षेत्र के विकास की नई परियोजनाएं शुरू की जा सकें। इस त्रिपक्षीय समझौते में प्रमुख रूप से केंद्र सरकार, असम सरकार और एनडीएफबी के सभी समूहों का सर्वोच्च नेतृत्व शामिल हुए।
प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर कहा कि बोडो समझौते के बाद अब शांति, सद्भाव और एकजुटता का नया सवेरा आएगा। समझौते से बोडो लोगों के लिए परिवर्तनकारी परिणाम सामने आएंगे। निःसंदेह यह उम्मीद की जा सकती है कि इतने बड़े समझौते के बाद असम में शांति, स्थिरता और विकास के एक नए युग की शुरुआत होगी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)