जयंती विशेष : भारत की राष्ट्रीयता के प्राणतत्व को आत्मसात किए थे अटल जी

अटल बिहारी वाजपेयी इस देश की राष्ट्रीयता के प्राणतत्व को आत्मसात किए हुए थे। भारत क्या है, अगर इसे एक पंक्ति में समझना हो तो अटल बिहारी वाजपेयी का नाम ही काफी है। वे लगभग आधी शताब्दी तक हमारी संसदीय प्रणाली के अविभाज्य अंग रहे। अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व व कार्य-क्षमता से उन्होंने लोगों के हृदय पर राज किया।

भारत की राजनीति के अजातशत्रु, अपना कार्यकाल पूरा करने वाले पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा ग्वालियर में ही हुई। उन्होंने पढ़ाई के बाद समाज सेवा में कदम रखा तथा ग्वालियर में आर्य समाज की युवा शाखा  आर्य कुमार सभा से जुड़े, वे वर्ष 1944 में आर्य समाज की युवा शाखा  के महासचिव भी बने। इसी क्रम में अटल जी  वर्ष 1939 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े एवं 1947 में उसके पूर्णकालिक प्रचारक बने।

संघ दायित्व के तहत उन्हें उत्तर प्रदेश भेजा गया, जिस दौरान उन्हें राजनीति का पाठ डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी से प्राप्त हुआ और फिर पंडित दीनदयाल उपाध्याय के राजनीतिक निर्देशन में वे आगे बढ़ते रहे। इस दौरान उन्होंने पांचजन्य, दैनिक स्वदेश, वीर अर्जुन और राष्ट्रधर्म जैसी पत्रिकाओ के सम्पादन का कार्य भी किया और महात्मा रामचन्द्र वीर द्वारा रचित महान कृति “विजय पताका” ने अटल जी के जीवन पर विशेष प्रभाव डाला।

साभार : DNA India

अटल जी के राजनीतिक जीवन की शुरुआत सन् 1955  के लोकसभा चुनाव से हुई थी, किन्तु उसबार वे हार गए। उन्होंने  दोबारा सन् 1957 में यूपी के गोंडा जिले के बलरामपुर लोकसभा से चुनाव लड़ा और विजयी भी हुए। इस तरह लगातार 20 वर्ष 1957 से 1977 तक जनसंघ के नेता रहे। मोरारजी देसाई की सरकार में वर्ष 1977 से 1979 तक विदेशमंत्री रहे और विदेश में भारत की एक अलग ही पहचान बनाई।

जनता पार्टी की स्थापना के बाद सन् 1980 में जनता पार्टी के विचारों से असंतुष्ट होने पर वाजपेयी जी ने अपने साथियो के साथ जनता पार्टी छोड़कर  भारतीय जनता पार्टी  की स्थापना की और 6 अप्रैल, 1980 को पार्टी के पहले अध्यक्ष के तौर पर कार्यभार संभाला।

भाजपा के चार दशक तक विपक्ष में रहने के बाद अटल जी 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बने, लेकिन संख्याबल नहीं होने से उनकी सरकार 13 दिन में ही गिर गई। फिर सरकार बनी लेकिन संख्याबल ने  एक बार पुनः अटल जी  के साथ लुका-छिपी का खेल खेला और स्थिर बहुमत नहीं होने के कारण 13 महीने बाद 1999 की शुरुआत में उनके नेतृत्व वाली दूसरी सरकार भी गिर गई।

लेकिन 1999 के चुनाव में अटल जी पिछली बार के मुकाबले एक अधिक स्थिर गठबंधन सरकार के प्रधानमंत्री बने, जिसने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। उन्होंने वर्ष  2004 तक प्रधानमंत्री पद को सुशोभित किया, पंडित जवाहरलाल नेहरु के बाद वे ही एक मात्र प्रधानमंत्री हैं जो कि इस पद पर तीन बार रहे।

अटल जी ने अपने कुशल नेतृत्व के दम पर भारत में गठबंधन सरकार चलाते हुए, संयुक्त राष्ट्र की शर्तो को पूरा करते हुए 11 मई और 13 मई को सम्पूर्ण विश्व को अचंभित करते हुए 5 भूमिगत परमाणु परिक्षण किये और इस तरह से भारत को विश्व के मानचित्र पर परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बना दिया। यह भारत का दूसरा परमाणु परीक्षण था। इससे पहले 1974 में पोखरण 1 का परीक्षण किया गया था।

विश्व  के कई संपन्न देशों के विरोध के बावजूद अटल जी की सरकार ने इस परीक्षण को पूर्ण किया, जिसके बाद अमेरिका, कनाडा, जापान और यूरोपियन यूनियन समेत कई देशों ने भारत पर कई तरह की रोक भी लगा दी थी। इस परमाणु परिक्षण की महानता का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बड़े बड़े दावे करने वाले महाशक्ति देशों को उनके उपग्रहों, तकनीकी उपकरणों से भी इस परिक्षण का पता नही लगा। अटल जी ने दुनिया के महाशक्ति देशों के आगे न झुकते हुए भारत को विश्व पटल पर अलग ही पहचान दिलाई

अटल जी ने एक कदम आगे बढ़ते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से बातचीत करते हुए सन 19 फरवरी 1999 को सदा ए सरहद नाम से नई दिल्ली और लाहौर के बीच बस  सेवा की शुरुआत कर  भारत पाकिस्तान के  संबंधों की दिशा में कदम बढ़ाये। इस राजनयिक सफलता को भारत-पाक संबंधों में एक नए युग की शुरुआत की संज्ञा देकर सराहा गया  किन्तु बदले में भारत को कुछ ही महीनो के पश्चात कारगिल युद्ध मिला।

सन 1999 के मई महीने में पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने धोखे से पाकिस्तानी सेना और कश्मीरी उग्रवादियों की मदद से भारत के जम्मू कश्मीर नियंत्रण रेखा को पार करते हुए युद्ध छेड़ दिया  जिसका  मुख्य उद्देश्य भारतीय जमीनों पर कब्जा करना था लेकिन भारतीय फौज के अदम्य साहस के बल पर अटल जी की  सरकार ने अंतरराष्टीय शर्तो को ध्यान में रखते हुए बिना नियंत्रण रेखा पार किए पाकिस्तानी सेना को वापस खदेड़ दिया।

इसके अतिरिक्त अटल जी  की सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान ऐसे अनेक कार्य किये जो कि आज भी अपने आप में ऐतिहासिक हैं। भारत को हर कोने तक सड़कों से जोड़ने का भी श्रेय अटल जी को जाता है, उन्होंने भारत के 4 महानगरों नई दिल्ली, कोलकाता, मुंबई और चेन्नई को स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना के द्वारा जोड़ा जो कि अपने आप में एक अनोखी पहल थी।

भारत में मोबाइल क्रांति की शुरुआत भी अटल जी सरकार के कार्यकाल में हुई थी, जिस कारण आज हर किसी के हाथ में मोबाइल है। अटल जी का मानना था, कि आधुनिक युग को बिना विज्ञान का सहारा लिए विकास की राह तक नही पहुंचाया जा सकता, जिसके लिए उन्होंने जय जवान जय किसान के नारे को आगे बढ़ाते हुए “जय जवान जय किसान जय विज्ञान” का नारा दिया जिसका मुख्य उद्देश्य भारत में टेक्नोलॉजी का सम्पूर्ण विकास था।

अटल बिहारी वाजपेयी इस देश की राष्ट्रीयता के प्राणतत्व को आत्मसात किए हुए थे। भारत क्या है, अगर इसे एक पंक्ति में समझना हो तो अटल बिहारी वाजपेयी का नाम ही काफी है। वे लगभग आधी शताब्दी तक हमारी संसदीय प्रणाली के अविभाज्य अंग रहे। अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व व कार्य-क्षमता से उन्होंने लोगों के हृदय पर राज किया।

एक सार्वजनिक मंच से उन्होंने कहा था कि मैं रहूं या ना रहूं, पर संसद में दो सदस्यों की संख्या वाली इसी भाजपा का हर तरफ साम्राज्य होगा। भाजपा कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाते हुए उन्होंने कहा था कि संख्या बल को लेकर चिंतित नहीं होना चाहिए। रास्ता कितना ही अंधेरा से घिरा क्यों नहीं हो, उसे दूर करने के लिए एक दीपक ही काफी है। आज उनकी कही  बातें वास्तविकता हैं और सम्पूर्ण देश में भाजपा का परचम लहरा रहा है। उन्होंने जिस विचार यात्रा की शुरुआत की थी, उसे आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगे बढ़ा रहे हैं।

(ये लेखक के निजी विचार हैं।)