योगी सरकार के इन निर्णयों से किसानों के आएंगे अच्छे दिन !
उत्तर प्रदेश की नवनिर्वाचित योगी सरकार की पहली बहुप्रतीक्षित कैबिनेट बैठक मंगलवार को हुई। जैसा कि अनुमान लगाया जा रहा था कि योगी सरकार अपने लोककल्याण संकल्प पत्र में किसानों की ऋण माफ़ी के वादे को पूरा करेगी, वैसा ही हुआ। जाहिर है कि चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व पार्टी अध्यक्ष अमित शाह बार–बार इस बात पर जोर दे रहे थे कि अगर यूपी में भाजपा सत्ता में आती है, तो
जनता के पैसे से अपनी छवि चमकाने के चक्कर में फँसे केजरीवाल, फिर खुली नयी राजनीति की पोल
अलग तरह की राजनीति का दावा करने वाले अरविंद केजरीवाल को दिल्ली में सत्तारूढ़ हुए दो वर्ष से अधिक का समय हो चुका है। जनता के हित के बड़े-बड़े काम करने का वादा करके सत्ता में आने वाले केजरीवाल इस दौरान काम तो कुछ नहीं किए हैं; मगर अपने विभिन्न कारनामों के लिए खूब चर्चा में रहे हैं। कभी अपने मंत्रियों की गिरफ़्तारी तो कभी नजीब जंग से लेकर अनिल बैज़ल तक दिल्ली के उपराज्यपालों से
यूपी चुनाव : अपने विकासवादी एजेंडे के साथ प्रदेश में सबसे मज़बूत नज़र आ रही भाजपा
उत्तर प्रदेश सात चरणों में से तीन चरण के चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं। प्रदेश की आवाम लोकतंत्र के इस पर्व को पूरे उत्साह के साथ मना रही है। यही कारण है कि जैसे -जैसे मतदान के चरण आगे बढ़ रहे है, वोटिंग फीसद भी 2012 के मुकाबले बढ़ रहा है। मतदान प्रतिशत बढ़ना अक्सर भाजपा के लिए फायदेमंद साबित होता है, इसलिए ये सपा-कांग्रेस गठबंधन की चिंता को बढ़ा रहा है, तो भाजपा की उम्मीदों को और
‘आप’ सरकार के दो साल : नहीं पूरे हुए वादे, ठप्प पड़ा दिल्ली का विकास
दिल्ली में आम आदमी पार्टी को सत्ता में आए दो वर्ष हो चुके हैं। इन दो वर्षों के कार्यकाल के दौरान दिल्ली की राजनीति में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं। दो साल के कार्यकाल के आधार पर यदि केजरीवाल सरकार का मूल्यांकन करें तो बेहद निराश करने वाली स्थिति नज़र आती है। यह बात तो जगजाहिर है कि केजरीवाल के अभी तक के कार्यकाल का अधिकाधिक समय केंद्र सरकार और दिल्ली के पूर्व
सिद्धांतों और विचारधारा से हीन अवसरवादी राजनीति का उदाहरण है सपा-कांग्रेस का गठबंधन
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए मतदान शुरू हो चुका है। गोवा और पंजाब की सभी सीटों पर मतदान होने के बाद अब आगामी ११ फ़रवरी को यूपी में प्रथम चरण का मतदान होने जा रहा। इसके मद्देनजर हमारे राजनेता अपनी राजनीतिक बिसात बिछाकर प्रचार–प्रसार करने में लगे हैं। यूपी में अगर सभी दलों के प्रचार पर नजर डालें तो स्पष्ट पता चलता है कि बीजेपी को छोड़ अधिकांश दल सिर्फ सियासी
देश की राजनीति बाद में करियेगा, पहले बंगाल संभालिये ममता मैडम!
आज बंगाल तथा बंगाल की मुख्यमंत्री दोनों चर्चा के केंद्र में हैं। बंगाल, रक्तरंजित राजनीति, साम्प्रदायिक हिंसा तथा शाही इमाम द्वारा जारी फतवे के लिए चर्चा में है, तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने मोदी विरोध के हठ तथा भ्रष्ट नेताओं के बचाव के चलते लगातार सुर्ख़ियों में हैं। दरअसल, नोटबंदी का फैसला जैसे ही मोदी सरकार ने लिया तभी से ममता, मोदी सरकार पर पूरी तरह से बौखलाई हुई हैं।
यूपी चुनाव : भाजपा के पक्ष में दिख रही लोकसभा चुनाव जैसी लहर
संभवतः इस सप्ताह चुनाव आयोग उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दे। सभी पार्टियाँ पूरी तैयारी के साथ प्रदेश के चुनावी दंगल में उतरने के लिए बेताब हैं, सभी दल अपनी–अपनी दावेदारी पेश करने में लगे हैं, किन्तु लोकतंत्र में असल दावेदार कौन होगा इसकी चाभी जनता के पास होती है। सत्ता की चाभी यूपी की जनता किसे सौंपती है यह भविष्य के गर्भ में छुपा हुआ है। लेकिन, यूपी में जो
संसद ठप्प करने की नकारात्मक राजनीति से बाज आयें विपक्षी दल
संसद का शीतकालीन सत्र समाप्त होने में चंद दिन शेष बचे हैं और अबतक का यह पूरा सत्र हंगामे की भेंट चढ़ता दिखाई दे रहा है। नोटबंदी को लेकर विपक्षी दल लोकतंत्र के मंदिर संसद मे जो अराजकता का माहौल बनाए हुए हैं, वह शर्मनाक है। सरकार नोटबंदी पर चर्चा को तैयार है, लेकिन विपक्षियों को तो चर्चा चाहिए ही नहीं, क्योंकि चर्चा में वे टिक नहीं पायेंगे, इसलिए बस फिजूल का हंगामा कर संसद का वक़्त और
हार्ट ऑफ़ एशिया सम्मेलन में भी अलग-थलग पड़ा पाक, अफगानिस्तान ने भी लगाई लताड़
अमृतसर में आयोजित 7वां हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन कई मायनों में अहम रहा। अफगानिस्तान के पुनर्गठन, सुरक्षा व आर्थिक विकास के साथ–साथ आतंकवाद तथा नशीले पदार्थों की तस्करी रोकने जैसे गंभीर विषय चर्चा के केंद्र में रहे। सम्मेलन के एजेंडे में आतंकवाद का मुद्दा प्रमुख था। जाहिर है कि जिस मंच पर पाकिस्तान के प्रतिनिधि मौजूद हों और बात आतंकवाद को उखाड़ फेकने की हो, वहां पाक प्रतिनिधि
नोटबंदी का फिजूल विरोध कर खुद को ‘संदिग्ध’ बना रहा विपक्ष
जबसे केंद्र सरकार ने पांच सौ और हजार के नोटों को बंद किया है, देश में एक विमर्श चल पड़ा है कि यह फैसला किसके हक में है ? सबसे पहले एक बात स्पष्ट होनी चाहिए कि इस फैसले से आम जनता को कुछेक दिन की थोड़ी दिक्कत है, जोकि सरकार भी मान रही है, लेकिन काले कारोबारियों, हवाला कारोबारियों, आतंकवाद के पोषकों के लिए यह फैसला त्रासदी लेकर आया है। सभी भ्रष्टाचार के अड्डो पर सन्नाटा