रिज़र्व बैंक की स्वायत्तता को लेकर बेजा हंगामा
नोटबंदी के मुद्दे पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की स्वायत्तता को लेकर इन दिनों खूब सवाल उठ रहे हैं । रिजर्व बैंक के कुछ पूर्व गवर्नर, नोबेल सम्मान से सम्मानित अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन आदि रिजर्व बैंक की स्वायत्तता और उसकी आजादी को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं । इनका कहना है कि विमुद्रीकरण के दौरान सरकार ने रिजर्व बैंक के कामकाज में दखल दिया और सरकार के कहने पर ही बैंक के बोर्ड ने छियासी
जायरा वसीम को मिल रही धमकियों पर वामपंथी बौद्धिकों की शर्मनाक ख़ामोशी
कश्मीर की सोलह साल की लड़की जायरा वसीम ने फिल्म ‘दंगल’ में अपनी भूमिका से लोगों का दिल जीत लिया था । गीता फोगट के बचपन का रोल करनेवाली जायरा ने अपने सशक्त अभिनय से ना केवल आमिर खान को प्रभावित किया था बल्कि दर्शकों पर भी अपने अभिनय की छाप छोड़ी थी । हाल ही में जायरा नसीम जब फिल्म की सफलता के बाद जब अपने घर कश्मीर गईं तो सूबे की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती से
बरकती के फतवे से सवालों के घेरे में ममता सरकार और वामपंथी बुद्धिजीवी
कोलकाता के एक मस्जिद के कथित शाही इमाम बरकती ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ फतवा जारी किया । बरकती ने बकायदा एक प्रेस कांफ्रेंस में अपमानजनक फतवा जारी किया जिसके पीछे बैनर पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की बड़ी-सी तस्वीर लगी थी । बरकती ने हिंदी और अंग्रेजी में अपमानजनक फतवा जारी किया । यह मानना मेरे लिए मुमकिन नहीं है कि इस मसले की जानकारी पुलिस
नोटबंदी की विफलता का बेसुरा राग
नोटबंदी को लेकर पिछले पचास दिनों में जमकर सियासत हुई । व्यर्थ के विवाद उठाने की कोशिश की गई । केंद्र सरकार पर तरह-तरह के इल्जाम लगाए गए । केंद्र सरकार पर एक आरोप यह भी लग रहा है कि इस योजना से कालाधन को रोकने में कोई मदद नहीं मिलेगी क्योंकि उसका स्रोत नहीं सूखेगा । इस तरह का आरोप लगाने वाले लोग सामान्यीकरण के दोष के शिकार हो जा रहे हैं । अर्थशास्त्र का एक बहुत ही
भ्रम और नेतृत्वहीनता के भँवर में घिरी कांग्रेस
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस इस वक्त उस दौर से गुजर रही है जहां पार्टी नेतृत्व के सम्बन्ध में उसके नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं तक में एक भ्रम और उलझन लक्षित किया जा सकता है । अपनी बीमारी और राहुल गांधी को आगे बढ़ाने की रणनीति के तहत कांग्रेस अध्यक्षा ने खुद को नेपथ्य में रखा था । उनके नेपथ्य में रहने की वजह से पुरानी पीढ़ी के नेता स्वत: परिधि पर चले गए थे और राहुल गांधी के आसपास के
नये सेनाध्यक्ष की नियुक्ति का बेजा विरोध कर रहे विपक्षी दल
पिछले दिनों से एक खतरनाक राजनीतिक प्रवृत्ति देखने को मिल रही है। यह प्रवृत्ति है भारतीय सेना को सियासत में खींचने की। अपनी सियासी चाल के लिए सेना के इस्तेमाल की। आज़ादी के बाद से हमारे देश में सेना सियासत से ऊपर रही है। जिस तरह से विदेश नीति को लेकर कमोबेश सभी दल एक धरातल पर रहते हैं, उसी तरह से सेना को लेकर भी सभी दलों में लगभग मतैक्य रहता आया है। लेकिन अब
गरीबों-मजदूरों के लिए लाभकारी है नोटबंदी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी के फैसले को लागू करके बड़ा रिस्क लिया है जो अगर वो नहीं भी लेते तो कोई फर्क नहीं पड़ता और उनकी राजनीति निर्बाध गति से चलती रहती । नोटबंदी के पहले हो रहे तमाम सर्वे के नतीजे यह बता रहे थे कि मोदी सबसे लोकप्रिय नेता हैं । बावजूद ये जोखिम उठाना इस बात का संकेत देता है कि नरेन्द्र मोदी देश के लिए कुछ बड़ा करने की दिशा में कदम उठा चुके हैं ।
क्या अमेरिकी राष्ट्रपति कैनेडी की हत्या के बारे में झूठ बोले थे फिदेल कास्त्रो ?
क्रांतिकारी फिडेल कास्त्रो के निधन के बाद क्यूबा की क्रांति और उनको लेकर कई लेख लिखे गए। खासतौर पर अमेरिका में। अमेरिका में तो फिडेल कास्त्रो और जॉन एफ कैनेडी पर सैकड़ों किताबें लिखी गईं। कास्त्रो के निधन के बाद अब एक बार फिर से उनपर लगातार लेख लिए जा रहे हैं। किताबें भी आएंगी ही नए खुलासे भी होंगे, तथ्य भी सामने आ सकते हैं। दशकों तक फिडेल के क्यूबा और अमेरिका में