संविधान और सेना के प्रति सम्मान से भरा है संघ प्रमुख का वक्तव्य !
मीडिया का एक वर्ग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति सदैव असहिष्णुता से प्रेरित रहता है। संघ से संबंधित किसी भी समाचार का अर्थ से अनर्थ करने में उसे आनंद आता है। इस जुनून में उसे सेना, समाज और संविधान की मर्यादा का भी ध्यान नहीं रहता। वह भूल जाते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक राष्ट्रवादी संगठन है। देश की रक्षा में लगे सभी लोगों के प्रति उसका सम्मान भाव रहता है।
दूर तक जाएगी संसद में मोदी के भाषण की गूँज !
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व्यापक लक्ष्यों को ध्यान में रखकर चलते हैं। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव की चर्चा का जवाब देते समय मोदी का यही अंदाज दिखाई दिया। जवाब तात्कालिक चर्चा के थे, किंतु उनका असर दूर तक जाएगा। आगामी लोकसभा चुनाव तक इसकी गूंज सुनाई दे तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। कांग्रेस ने सरकार पर हमला बोलने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उसे लगा होगा कि इन हमलों के बाद
पकौड़ा प्रकरण : क्या देश के सभी छोटे व्यवसायी भीख मांग रहे हैं, चिदंबरम साहब !
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस ने चाय बेचने को लेकर मजाक बनाया था। इसके बाद कांग्रेस खुद मजाक बन गई थी। इस बार उसने पकौड़े पर मजाक बनाया है। कांग्रेस का राजनीतिक स्तर तो गिरा हुआ है ही, विरोध का यह तरीका कांग्रेस के वैचारिक स्तर को भी गिराता है। इसका लाभ नहीं, नुकसान ही होता है। बात नरेंद्र मोदी या भाजपा तक सीमित हो तो उस पर आपत्ति नहीं हो सकती। लेकिन, ऐसे बयानों में देश
कासगंज : चन्दन गुप्ता की हत्या पर सेकुलर खेमे में सन्नाटा क्यों पसरा है !
सामाजिक हिंसा सभ्य समाज को कलंकित करती है। समाज और सियासत सभी को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। उत्तर प्रदेश के कासगंज की घटना ऐसी ही है। यहां कुछ अराजक तत्वों ने गणतंत्र दिवस के उत्साह को शोक में बदल दिया। राष्ट्रीय पर्व में जनभागीदारी प्रजातन्त्र, एकता और सौहार्द को जीवंत करती है। ऐसे प्रत्येक आयोजन से जागरूकता बढ़ती है। लेकिन, कासगंज में तिरंगा यात्रा में अवरोध पैदा कर
मोदी की ‘आसियान नीति’ से बढ़ेगी चीन की चिंता !
देश का प्रत्येक गणतंत्र दिवस अपने में खास होता है। लेकिन इस बार का मुख्य समारोह मील के पत्थर की भांति दर्ज होगा। पहले भी मुख्य अतिथि के रूप में विदेशी राष्ट्राध्यक्ष इसमें शामिल होते रहे है। किंतु इस बार एक सम्पूर्ण क्षेत्रीय संगठन मेहमान बना। आसियान के दस राष्ट्राध्यक्ष, गणतंत्र दिवस में मुख्य समारोह के गवाह बने। यह विदेश नीति का नायाब प्रयोग था। जिसे पूरी तरह सफल कहा जा सकता है। इसने
‘इन्वेस्टर्स समिट’ के द्वारा यूपी के विकास की नयी इबारत लिखने में जुटी योगी सरकार !
उत्तर प्रदेश की पिछली दोनों सरकार को पूर्ण बहुमत से अपना कार्यकाल पूरा करने का अवसर मिला था। उनके मुख्यमंत्रियों के लिए अपने कतिपय ड्रीम प्रोजेक्ट को पूरा करने में भी आसानी थी। शायद उन्होने कुछ ड्रीम प्रोजेक्ट बनाये भी थे और इनकी चर्चा भी खूब होती थी । लेकिन प्रदेश के सर्वांगीण विकास या बीमारू छवि से प्रदेश को बाहर निकालने के प्रति इन सरकारों में पर्याप्त गंभीरता दिखाई नहीं दी थी। वर्तमान
नेतन्याहू भारत आए तो वामपंथियों के सीने पर सांप क्यों लोटने लगा !
विदेश नीति का मुख्य तत्व राष्ट्रीय हित होता है। अन्य तत्वों में बदलाव हो सकता है, लेकिन राष्ट्रीय हित की कभी अवहेलना नहीं होनी चाहिए। इजरायल के साथ भारत की दोस्ती राष्ट्रीय हित के अनुरूप है। ऐसे में, यह अनुचित है कि भारत के कुछ विपक्षी राजनीतिक दलों और नेताओं ने इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की यात्रा का विरोध किया या उनसे मिलने के तरीके पर हल्की टिप्पणी की। ऐसा करने वाले नेताओं को
शिक्षण संस्थानों में सुधार के लिए मुख्यमंत्री योगी की सार्थक पहल !
शिक्षण संस्थानों के सुधार में प्राचार्य और कुलपति की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। सभी परिस्थितियां समान होने के बावजूद इन पदों पर तैनात व्यक्ति अलग अलग परिणाम देते हैं। कई बार पर्याप्त संसाधन नहीं होते, फिर भी प्राचार्य या कुलपति बेहतर परिणाम देते हैं। ऐसा वह अपनी इच्छाशक्ति और प्रबंधन क्षमता से कर दिखाते हैं। इसमें पहला तथ्य अनुशासन का होता है। एक बार अनुशासन दुरुस्त हो जाता है, तब
मोदी लम्बे समय से जो कहते रहे हैं, ट्रंप ने अब उसे समझा है !
अमेरिका ने लंबी अवधि के बाद अपनी पाकिस्तान नीति में अपरिहार्य बदलाव किया है। राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने इसका प्रारंभिक सन्देश भी दे दिया है। फिलहाल उसको मिलने वाली एक लाख छह हजार अट्ठाइस करोड़ रुपये की सहायता पर रोक लगा दी गई है। ट्रम्प ने कहा भी है कि आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्यवाई के बाद ही उसे सहायता बहाली संभव होगी। ट्रंप ने यह कार्रवाई अपने ट्वीट के बाद की है, जिसमें
तीन तलाक प्रकरण में दिखी मोदी सरकार की दृढ़ता और संवेदनशीलता !
कुछ वर्ष पहले तक यह कल्पना करना भी मुश्किल था कि मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक पर न्याय मिलेगा। वोट बैंक से प्रेरित कथित सेक्युलर सियासत ऐसा होने नहीं देती। इसके लिए शाहबानों प्रकरण तक पीछे लौटकर देखने की जरूरत भी नहीं है। तीन तलाक के मसले पर कांग्रेस, कम्युनिस्ट, राजद, सपा, तृणमूल, बसपा आदि सभी ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी इसे