‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ है कांग्रेसी सेकुलरिज्म का असल चेहरा
जुमे की नमाज के लिए मुस्लिम कर्मचारियों को 90 मिनट का अवकाश देकर उत्तराखंड सरकार ने सिद्ध कर दिया है कि कांग्रेस ने सेकुलरिज्म का लबादा भर ओढ़ रखा है, असल में उससे बड़ा सांप्रदायिक दल कोई और नहीं है। कांग्रेस के साथ-साथ उन तमाम बुद्धिजीवियों और सामाजिक संगठनों के सेकुलरिज्म की पोलपट्टी भी खुल गई है, जो भारतीय जनता पार्टी या किसी हिंदूवादी संगठन के किसी
प्रधानमंत्री के सवालों का जवाब दें नोटबंदी का विरोध कर रहे विपक्षी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आगरा में परिवर्तन रैली को जिस अंदाज में संबोधित किया है, उसे दो तरह से देखा जा सकता है। एक, उन्होंने विपक्ष पर करारा हमला बोला है। दो, नोटबंदी पर सरकार और प्रधानमंत्री को घेरने के लिए हाथ-पैर मार रहे विपक्ष से प्रधानमंत्री ने सख्त सवाल पूछ लिया है। ऐसा सवाल जिसका सीधा उत्तर विपक्ष दे नहीं सकता। नोटबंदी का विरोध कर रहे नेताओं की ओर प्रधानमंत्री मोदी ने
लोक मंथन : औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति का सार्थक प्रयास
लोकहित में चिंतन और मंथन भारत की परंपरा में है। भारत के इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण उपलब्ध हैं, जिनमें यह परंपरा दिखाई देती है। महाभारत के कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद से लेकर नैमिषारण्य में ज्ञान सत्र के लिए 88 हजार ऋषि-विद्वानों का एकत्र आना, लोक कल्याण के लिए ही था। भारत में चार स्थानों पर आयोजित होने वाले महाकुम्भ भी देश-काल-स्थिति के अनुरूप पुरानी रीति-नीति छोड़ने और
भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनर्स्थापित करने में जुटी मोदी सरकार
हमें स्वाधीनता जरूर 15 अगस्त, 1947 को मिल गई थी, लेकिन हम औपनिवेशिक गुलामी की बेड़ियाँ नहीं तोड़ पाए थे। अब तक हमें औपनिवेशिकता जकड़े हुए थी। पहली बार हम औपनिवेशिकता से मुक्ति की ओर बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। हम कह सकते हैं कि भारत नये सिरे से अपनी ‘डेस्टिनी’ (नियति) लिख रहा है। यह बात ब्रिटेन के ही सबसे प्रभावशाली समाचार पत्र ‘द गार्जियन’ ने 18 मई, 2014 को अपनी
विश्व की अनेक समस्याओं का एक समाधान है एकात्म मानव-दर्शन
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मानना है कि भारतीय चिंतन के आधार पर प्रतिपादित विचार ‘एकात्म मानवदर्शन’ ही दुनिया को सभी प्रकार के संकटों का समाधान दे सकता है। संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल ने हैदराबाद की बैठक में इस आशय का प्रस्ताव रखा है। संघ का मानना है कि आज विश्व में बढ़ रही आर्थिक विषमता, पर्यावरण-असंतुलन और आतंकवाद मानवता के लिए गंभीर चुनौती का कारण बन रहे
आरएसएस कार्यकर्ताओं के प्रति मार्क्सवादी हिंसा पर खामोश क्यों है असहिष्णुता गिरोह ?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं की हत्या और उन पर जानलेवा हमले की घटनाओं में वृद्धि हुई है। यह घटनाएं किसी षड्यंत्र की ओर इशारा करती हैं। केरल, पंजाब, कर्नाटक और अब भाजपा शासित मध्यप्रदेश में भी संघ के कार्यकर्ता पर हमला करने की घटना सामने आई है। अभी इन घटनाओं के पीछे एक ही कारण समझ आ रहा है। संघ की राष्ट्रीय विचारधारा के विस्तार और उसके बढ़ते प्रभाव से अभारतीय
राजनीति नहीं, राम-भक्ति से प्रेरित है रामायण संग्रहालय के निर्माण का फैसला!
भगवान श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या में ‘रामायण संग्रहालय’ के निर्माण का साहसिक और सराहनीय निर्णय केन्द्र सरकार ने लिया है। वहीं, राज्य सरकार ने भी सरयू नदी के किनारे रामलीला थीम पार्क बनाने का निर्णय लिया है। राम भक्तों पर गोली चलाने वाले और खुद को मौलाना मुलायम कहाने में गर्व की अनुभूति करने वाले मुलायम सिंह यादव के बेटे और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने थीम पार्क को
राष्ट्रीयता को मजबूत करेगा ‘लोक मंथन’ : विनय सहस्त्रबुद्धे
भोपाल, 18 अक्टूबर। एक नए भारत का उदय हो रहा है। इस उदीयमान भारत की कुछ आकांक्षाएं और अपेक्षाएं हैं। यह आकांक्षावान भारत किसी प्रकार के भ्रम में नहीं है, अपने गंतव्यों के प्रति पूर्णतः स्पष्ट है। जनमानस में अब तक यह धारणा बन रही थी कि सब हमें ठगने के लिए आते हैं। यह धारणा टूट रही है। पहली बार है जब यह धारणा बन रही है कि कुछ अच्छा होगा। देश में ऐसा वातावरण बनता दिख रहा है कि
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिल के करीब है मध्य प्रदेश
याद कीजिए उन दिनों को जब लोकसभा का चुनाव प्रचार चरम पर था, जब नतीजे भारतीय जनता पार्टी या कहें नरेन्द्र मोदी के पक्ष में आए, जब नरेन्द्र मोदी की ताजपोशी हो रही थी। याद आए वह दिन। गुजरात में मोदी और मध्यप्रदेश में शिवराज के विकास ने, दोनों को भाजपा का ‘पोस्टर बॉय’ बना दिया था। इसलिए उन दिनों गुजरात बनाम मध्यप्रदेश की बहस को जानबूझकर उछाला गया था। नरेन्द्र मोदी और शिवराज
मानसिक गुलामी को हटाएगा लोक मंथन : दत्तात्रेय होसबोले
भोपाल। पिछले कुछ समय में एक खास विचारधारा के लोगों ने सुनियोजित ढंग से राष्ट्र और राष्ट्रीयता पर प्रश्न खड़े करने का प्रयास किया है। उन्होंने राष्ट्रीय विचार को उपेक्षित ही नहीं किया, बल्कि उसका उपहास तक उड़ाया है। जबकि इस खेत में खड़े किसान, कारखाने में काम कर रहे मजदूर, साहित्य सृजन में रत विचारक, कलाकार और यहाँ तक कि सामान्य नागरिकों के नित्य जीवन में राष्ट्रीय भाव प्रकट होता है।