प्रणय कुमार

महाराणा प्रताप और वीर सावरकर की महानता राजस्थान सरकार के प्रमाणपत्र की मोहताज नहीं है

परन्तु, ऐसे दुष्प्रयासों से प्रताप और सावरकर जैसे धवल चरित्रों पर काज़ल की एक रेख भी न लगने पाएगी। लोकमानस अपने महानायकों के साथ न्याय करना खूब जानता है।

बात-बात में तानाशाही का रोना रोने वाले वामपंथी चीन के विस्तारवादी रुख पर चुप्पी क्यों साध लेते हैं?

जो वामपंथी कला-संस्कृति जैसे क्षेत्रों में भी तथाकथित साम्राज्यवाद आदि का आए दिन हौव्वा खड़ा किए रहते हैं, वे चीन की विस्तारवादी रवैय्ये पर एक शब्द भी नहीं बोलते!

मजदूरों के बहाने सरकार को घेरने वाले विपक्ष की मजदूर ही खोल रहे पोल

मजदूरों के बहाने विपक्ष ने सरकार पर खूब निशाना साधा और तरह-तरह के आरोप लगाए। रेलवे पर भी मजदूरों को ले जाने में बहुत अव्यवस्था बरतने के आरोप लगाए गए। लेकिन सच इन सबसे अलग था और वो समय के साथ सामने भी आ रहा है।

पिंजरा तोड़ अभियान से उपजते सवाल

छोटे-छोटे शहरों से बड़े सपने लेकर देश की राष्ट्रीय राजधानी आने वाले लड़के-लड़कियों को वामपंथी ताक़तें किस क़दर बहलाती-फुसलाती हैं, उसकी कहानी आप इस संगठन के बनने के पीछे की कहानी को जानकर समझ सकते हैं।

हिन्दू साम्राज्य दिवस : छत्रपति शिवाजी और उनका लोकाभिमुख शासन

शिवाजी का राज्याभिषेक जिसे आज हम हिन्दू साम्राज्य दिवस के रूप में मनाते हैं, केवल किसी व्यक्ति विशेष के सिंहासन पर बैठने की घटना भर नहीं थी बल्कि वह समाज और राष्ट्र की भावी दिशा तय करने वाली एक युगांतकारी घटना भी थी।

पालघर की हिंसा के पीछे मौजूद धर्मांतरण के कुचक्र को समझना होगा

धर्मांतरण के पीछे कितना बड़ा नेटवर्क काम करता है इसका अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि पालघर जैसे छोटे से तहसील में 18 ईसाई प्रार्थनाघर हैं।

रामजन्मभूमि से प्राप्त हो रहे ऐतिहासिक अवशेषों पर छद्म-धर्मनिरपेक्षों को सांप सूंघ गया है

बार-बार प्रमाण प्रस्तुत करने के बावजूद ऐसे लोगों ने राम मंदिर के अस्तित्व को अस्वीकार करने में कोई कोर कसर बाक़ी नहीं रखी। जो अयोध्या राममय है, जिसके पग-पग परa श्रीराम के चरणों की मधुर चाप सुनाई पड़ती है, वहाँ वे बाबर की निशानदेही तलाशते रहे।

‘सनातन संस्कृति ही अन्धकारग्रस्त विश्व को नवीन आलोक-पथ पर ले जाएगी’

हिंदुत्व की धारा से निकली राष्ट्रीयता अंतर्राष्ट्रीयता या अखिल मानवता के विरुद्ध कदापि नहीं जाती। बल्कि अखिल मानवता का चिंतन यदि कहीं हुआ है तो इसी हिंदू-चिंतन में हुआ है या उससे निकले भारतीय पंथों में ही उसके स्वर सुनाई पड़ते हैं।

राम और रामायण का विरोध करने वालों की मंशा क्या है?

राम केवल एक नाम भर नहीं, बल्कि वे जन-जन के कंठहार हैं, मन-प्राण हैं, जीवन-आधार हैं। उनसे भारत अर्थ पाता है। वे भारत के प्रतिरूप हैं और भारत उनका। उनमें कोटि-कोटि जन जीवन की सार्थकता पाता है। भारत का कोटि-कोटि जन उनकी आँखों से जग-जीवन को देखता है।

दो घटनाएं जो देश के तथाकथित बुद्धिजीवियों के चरित्र व चिंतन की कलई खोलती हैं

बीते दिनों ऐसी दो घटनाएँ हुईं जो इस देश के कथित बुद्धिजीवियों की सच्चाई बताने के लिए पर्याप्त हैं। इन घटनाओं के आलोक में इन बुद्धिजीवियों के चरित्र एवं चिंतन का यथार्थ मूल्यांकन किया जा सकता है। पहली घटना बीते कई सप्ताह से देश के शरीर पर फोड़ों की तरह जगह-जगह उभर आई है, जो अब नासूर बनती जा रही है।