सत्ता में आते ही उजागर होने लगा कांग्रेस का असली चेहरा
गंगा जल लेकर कर्जमाफी का वादा कर सत्ता में आई कांग्रेस पार्टी का असली चाल-चरित्र उजागर होने लगा है। किसानों की कर्जमाफी के लक्षण तो नहीं दिख रहे हैं, उल्टे उन्हें तीन-तीन दिन से यूरिया के लिए लाइन में खड़ा रहना पड़ रहा है। कांग्रेस के सत्ता में आते ही मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में जमाखोर व बिचौलिए सक्रिय हो गए हैं। जो यूरिया भाजपा के शासन काल
‘इन चुनावों में कांग्रेस की नहीं, उसकी कुटिल नीतियों की जीत हुई है’
तीन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी को कांटे की टक्कर के साथ मिली पराजय ने कांग्रेस पोषित मीडिया और बुद्धिजीवियों को 2019 के लोक सभा चुनाव की भविष्यवाणी करने का मौका दे दिया। ये लोग यह नहीं देख रहे हैं कि इन चुनावों में कांग्रेस की नहीं बल्कि उसकी कुटिल नीतियों की जीत हुई है। कांग्रेस इस कड़वी हकीकत को जानती है कि युवा बेरोजगारों को सरकारी
हर गाँव के बाद हर घर तक बिजली पहुँचाने में जुटी मोदी सरकार
जिस देश में योजनाओं की लेट-लतीफी का रिकॉर्ड रहा हो वहां निर्धारित समय से पहले योजना पूरी हो जाए तो इसे चमत्कार ही कहा जाएगा। पंद्रह अगस्त, 2015 को लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक हजार दिनों के भीतर देश के सभी गांवों तक बिजली पहुंचाने का लक्ष्य रखा था। राजनीतिक इच्छाशक्ति और नौकरशाही की चुस्ती के कारण यह महत्वाकांक्षी लक्ष्य 988 दिन में ही पूरा हो गया अर्थात तय समय से 12 दिन पहले।
भारतीय राजनीति में परिवारवाद थोपने का श्रेय नेहरू-गांधी परिवार को जाता है!
अपने बयानों को लेकर सुर्खियां बटोरने वाले कांग्रेस नेता शशि थरूर ने इस बार नेहरू-गांधी परिवार की चाटुकारिता के बहाने भारतीय राजनीति में परिवारवाद पर एक नई बहस को जन्म दे दिया। पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की जयंती पर आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान शशि थरूर ने कहा कि आज अगर एक चायवाला देश का प्रधानमंत्री है, तो इसका श्रेय नेहरू
मोदी सरकार के ठोस उपायों से बढ़ रहा है उद्यमशीलता का दायरा
1991 में शुरू हुई नई आर्थिक नीतियों की प्रक्रिया गठबंधन सरकारों के दौर में आकर ठहर गई। यही कारण था कि उदारीकरण का रथ महानगरों और राजमार्गों से आगे नहीं बढ़ पाया। इसका नतीजा यह हुआ कि खेती-किसानी घाटे का सौदा बन गई और गांवों से शहरों की ओर पलायन बढ़ा। उद्यमशीलता के महानगरों तक सिमट जाने के कारण देश भर में बेरोजगारी तेजी से बढ़ी।
मोदी सरकार के प्रयासों से तैयार हो रहा ग्रामीण कृषि बाजारों का नेटवर्क
हमारे देश में खेती-किसानी की बदहाली की एक बड़ी वजह अविकसित कृषि बाजार की रही है। रिजर्व बैंक कई बार कह चुका है कि कृषि बाजार की प्रभावी उपस्थिति ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन का सशक्त हथियार है। इसके बावजूद जाति व धर्म की राजनीति करने वाली सरकारों ने इस ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया। नई आर्थिक नीतियों के दौर में देश में गठबंधन सरकारों
महंगाई काबू करने में कामयाब रही मोदी सरकार
महंगाई पर भारत बंद का आयोजन करने वाले यह नहीं देख रहे हैं सैकड़ों जीवनोपयोगी वस्तुओं-सेवाओं की कीमतों भारी कमी दर्ज की गई है। जो दालें सौ से डेढ़ सौ रूपये किलो बिक रही थीं वे आज साठ से सत्तर रूपये किलो में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। चीनी 45 रूपये किलो से घटकर 30 से 32 रूपये प्रति किलो तक आ गई है। जो एलईडी बल्ब साढ़े तीन सौ रूपये का मिल रहा
पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर भारत बंद करने वाली कांग्रेस पहले अपने गिरेबां में तो झांके!
वेनेजुएला की राजनीतिक उथल-पुथल, ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध, मुद्रा बाजार की उठा-पठक जैसे कारणों से कच्चे तेल की कीमतों में तेजी ने देश के सत्ताच्युत व जनाधार विहीन नेताओं को ऑक्सीजन देने का काम किया है। इन नेताओं से सबसे अहम सवाल यह है कि जब वे सत्ता में थे तब उन्होंने घरेलू तेल उत्पादन बढ़ाने, वैकल्पिक ईंधन के विकास, तेल की बचत जैसे दूरगामी
केरल की बाढ़ का एक बड़ा कारण कांग्रेस और वामपंथियों की वोट बैंक की राजनीति भी है!
केरल में आई भीषण बाढ़ का एक कनेक्शन तुष्टिकरण की राजनीति से भी जुड़ा है जिसकी ओर बहुत कम लोगों का ध्यान जा रहा है। केरल का सबसे बड़ा चर्च है सायरो-मालाबा कैथोलिक चर्च। केरल के पश्चिमी घाट पर रहने वाले ज्यादातर ईसाई इसी से जुड़े हैं और इनके बड़े-बड़े बागान हैं। इस चर्च ने 2013 में कम्युनिस्टों के साथ मिलकर गाडगिल समिति की सिफारिशों के
स्वामीनाथन के बाद अब नाबार्ड ने भी माना कि मोदी राज में बढ़ी है किसानों की खुशहाली!
भ्रष्टाचार, तुष्टीकरण, धनबल-बाहुबल और जाति-धर्म की राजनीति कर सत्ता हासिल करने वाली सरकारों ने कृषि क्षेत्र के दूरगामी विकास की ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया। यही कारण है कि खेती-किसानी की बदहाली बढ़ती गई। 1991 में शुरू हुई उदारीकरण की नीतियों में खेती-किसानी की घोर उपेक्षा हुई।